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Kahani Satyajeet Ray kiकॉर्वस, सत्यजीत रे, सत्यजीत राय

Kahani Satyajeet Ray ki कॉर्वस- सत्यजीत रे
घनी कहानी छोटी शाखा: सत्यजीत रे की कहानी “कॉर्वस” का पहला भाग
घनी कहानी छोटी शाखा: सत्यजीत रे की कहानी “कॉर्वस” का दूसरा भाग
घनी कहानी छोटी शाखा: सत्यजीत रे की कहानी “कॉर्वस” का तीसरा भाग
घनी कहानी छोटी शाखा: सत्यजीत रे की कहानी “कॉर्वस” का चौथा भाग

भाग- 5

(अब तक आपने पढ़ा…इस कहानी में हम एक वैज्ञानिक श्रीमान शोंकू की डायरी की बातें पढ़ रहे हैं। जिससे हमें पता चलता है कि श्रीमान शोंकू को बचपन से ही पक्षियों और उनकी विलक्षण प्रतिभाओं में रुचि थी, जिसके चलते उन्होंने बाद में एक मशीन बनायी। इस मशीन के ज़रिए उन्होंने अपने चुने हुए कौवे “कॉर्वस” को अलग-अलग भाषाओं का ज्ञान दिया और उसे इंसानी तौर-तरीक़े भी सिखाए। कॉर्वस उनके लिए अपने बेटे की तरह ही था। उसकी इस प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए वैज्ञानिक श्रीमान शोंकू उसे विश्व पक्षी सम्मेलन में सेंटियागो लेकर जाते हैं। जहाँ सभी कॉर्वस को देखकर बहुत ख़ुश और आश्चर्यचकित होते हैं। उसकी तस्वीर भी पेपर में छपती है। दूसरी ओर श्रीमान शोंकू अपने साथियों के साथ उनके मनोरंजन के लिए आयोजित एक जादूगर के शो में जाते हैं। जादूगर ऑर्गस की ख़ास बात है कि वो पक्षियों से ही अपना शो चलाते हैं। उसी रात जादूगर ऑर्गस वैज्ञानिक श्रीमान शोंकू के होटल में उनसे और कॉर्वस से मुलाक़ात करने आते हैं। कॉर्वस को देखकर वो उसे ख़रीदने का प्रस्ताव रखते हैं लेकिन वैज्ञानिक उसकी बात को टालते हैं। इस पर जादूगर पहले तो उन्हें सम्मोहित करने की कोशिश करता है किंतु सफल न होने पर ख़ूब पैसे देने की बात कहता है। नाराज़ होकर श्रीमान शोंकू उसे वहाँ से जाने के लिए कहते हैं। अगले दिन सम्मेलन में शामिल होने के बाद लंच के लिए जाते समय हर दिन की तरह कॉर्वस को आराम करने के लिए रूम। में छोड़ जाते हैं। पर जब श्रीमान शोंकू रूम में वापस आते हैं तो कॉर्वस पिंजरे के साथ ग़ायब होता है। अब आगे…)

तूफ़ान के बगूले की तरह मैं बाहर कॉरीडोर में आया। कुछ ही दूर दो कमरों के नीचे रूम बॉय का कमरा था। वहाँ मैं भागता हुआ पहुँचा। दो रूमबॉय वहाँ गुमसुम खड़े थे – भावरहित। उनकी फट-फटी आँखें इस बात की गवाह थीं कि उन्हें हिप्नोटाइज़ किया गया था। मैं ग्रेनफैल के कमरे 107 की तरफ दौड़ पड़ा। उसे संक्षेप में जल्दी-जल्दी सारी बातें कह सुनाईं। हम दोनों तेज़ी से नीचे स्वागत कक्ष तक पहुँचे।

“आपके कमरे की चाबियाँ किसी ने हमसे नहीं माँगी। कमरे की डुप्लीकेट चाबी रूमबॉय के पास रहती है। हो सकता है उसी ने किसी को दी हो”- क्लर्क ने हमसे कहा

लेकिन ऐसा कैसे हो सकता था कि रूमबॉय किसी और को मेरे कमरे की चाबी दे दे। मैं समझ गया कि ऑर्गस ने उस पर जादू डाल कर चाबियाँ हथिया लीं थीं और गुपचुप अपना काम कर डाला था।

अन्त में होटल के दरबान से असल कहानी का पता लगा। उसने बतलाया कि कोई आधा घण्टा पहले ऑगर्स अपनी सिल्वर कैडलक में होटल आया था। कोई दस मिनट बाद वह हाथ में एक सेलोफेन बक्स लेकर बाहर निकला और वापस लौट गया था।

“सिल्वर कैडलक! वह कहां गया होगा? अपने घर या कहीं और?”- हमने सोचा।

अन्ततः हमने कॉवेरूबियस की मदद लेने का फैसला किया। उसने कहा “ऑर्गस कहां रहता है यह जानना कोई कठिन काम थोड़े ही है। पर उसका घर का पता जानकर भी क्या होगा? वह कॉर्वस को चुरा कर कोई घर थोड़े ही गया होगा। कॉर्वस पर हाथ साफ कर तो वह कहीं छिप जाने की सोचेगा। हाँ, अगर वह शहर से बाहर कहीं जाना चाहता है तो इसका केवल एक ही मार्ग है। मैं तुम्हें एक बढ़िया कार, ड्राइवर तथा पुलिस की मदद दिलवाए देता हूँ। आधे घण्टे के भीतर-भीतर रवाना हो जाओ। राजमार्ग पकड़ लो। अगर तुम्हारी क़िस्मत तेज़ हुई तो अब भी शायद ऑर्गस हाथ आ सकता है”

कोई सवा तीन बजे हम निकल चले। चलने से पहले मैंने होटल से फ़ोन किया और पता लगाया कि ऑर्गस- जिसका असली नाम डोमिगो बार्टोलेम सरमैंन्टो था – अपने घर पर नहीं था। हम दो सशस्त्र पुलिसमैनों के साथ पुलिस कार में थे। पुलिस वालों में से एक नौजवान का नाम था कैरिरस और उसे ऑर्गस के बारे में कई उपयोगी बातों की जानकारी थी। उसने बतलाया कि सेन्टियागो शहर में और उसके आसपास ऑर्गस के छिपने के बहुत से ठिकाने हैं। ऑर्गस उन्नीस साल की उम्र ही से जादू के प्रोग्राम दे रहा है। उसने पिछले कोई चार साल से ही अपने कार्यक्रमों में पक्षियों का इस्तेमाल शुरू किया है और इसी से वह एकाएक बहुत लोकप्रिय हो उठा है। Kahani Satyajeet Ray ki

“क्या वह वास्तव में करोड़पति है?”

“लगता तो ऐसा ही है” कैरिरस बोला “ पर इस आदमी का स्वभाव इतना शक्की और अजीब है कि इसके सब दोस्तों ने इससे किनारा कर लिया है”

शहर पीछे छोड़ कर हम राजमार्ग पर आ तो गए पर एक और नई समस्या उठ खड़ी हुई। एकाएक सड़क दो अलग-अलग हिस्सों में बँट गई थी और हम दोराहे पर खड़े थे। दो सड़कों के बीच एक रास्ता तो जाता था उत्तर में लॉस ऐंडीज़ के पहाड़ों की ओर और दूसरा जाता था वाल्पराइसो। पर सौभाग्य से सड़कों के मुहाने पर बीच में बने एक पैट्रोल पम्प से जब पूछताछ की तो पता लगा कुछ ही देर पहले सिल्वर रंग की एक कैडलक वाल्पराइसो की तरफ जाने वाली सड़क पर गई तो है।

हमारी मर्सडीज़ फिर बन्दूक से निकली गोली की तरह भाग छूटी। मैंने सोचा कि कॉर्वस को आर्गस कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगा क्योंकि उसे तो उसकी सख़्त ज़रूरत है। पर कल रात को कॉर्वस के व्यवहार को देख कर मैं समझ चुका था कि उसे जादूगर फूटी आँखों नहीं सुहाया था। मेरे सामने कॉर्वस की मानसिक-यंत्रणा मूर्त हो उठी। एक शैतान के शिकंजे में फंसकर वह किस क़दर हताश और दुखी होगा मैं अनुभव कर सकता था।

रास्ते में हमें दो पैट्रोल पम्प और मिले और दोनों ने इस बात की पुष्टि की कि उन्होंने एक सिल्वर कैडलक को उधर से गुजरते देखा है।

स्वभाव से मैं आशावादी हूँ। पहले भी बड़ी से बड़ी परेशानियों से मैं अप्रभावित निकला हूं। मैंने आज तक अपने किसी भी अभियान में नाकामयाबी का मुँह नहीं देखा। पर मेरे साथ बैठा ग्रेनफैल निराशा में डूबा सिर हिला रहा था। “भूलो मत शंकु ….. तुम्हारा साबका एक बेहद शातिर आदमी से पड़ा है। उसने कॉर्वस पर हाथ साफ़ कर ही डाला है तो इतनी आसानी से वह उससे जुदा होने वाला भी नहीं”

“और सीनोर ऑर्गस हथियारों से भी तो लैस होगा” केरिरस ने मानो जलती आग में घी डाला- “मैंने उसे अपने जादू के खेलों में असली रिवाल्वर चलाते भी देखा है”

रास्ता ढलवाँ था। एक हजार छः सौ फुट ऊंचे सैन्टियागो शहर की तुलना में अब हम इस समय क़रीब एक हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर थे। हमारे पीछे पहाड़ों की शृंखलाएँ सघन से सघनतर हो रही थीं। हम चालीस मील तो चल ही चुके थे। और अगले चालीस मील का मायना था कि हम वाल्पराइसो में होते। ग्रैनफैल का लटका हुआ चेहरा देखकर मुझ पर भी निराशा तारी होने लगी। अगर वह राजमार्ग में ही पकड़ में नहीं आता तो हमें उसे शहर में खोजना होगा जो कि इससे भी सौ गुना कठिन काम होता। अचानक सड़क की ऊँचाई बढ़ने लगी। ऐसा लगा जैसे गाड़ी किसी पहाड़ी पर चढ़ रही हो। फिर गहरी ढलान का दौर शुरू हुआ। सड़क के किनारे ऊँचे-ऊँचें पेड़ थे और वे हवा में सिर हिला रहे थे। कुछ पर आदमी नाम की कोई चीज़ हमें देखने को नहीं मिली। रास्ता बिल्कुल सुनसान था। कोई चौथाई मील दूर नीचे हमें सड़क पर एक चीज़ चमकती दिखलाई पड़ी।

करीब चार सौ गज़ से दृश्य और भी साफ़ हुआ। धूप में चमचमाती हुई एक कार सड़क के किनारे रूकी हुई थी।

हम और नज़दीक पहुँचे।

“कैडलक। सिल्वर कैडलक” हाँ, वही थी यह”

हमारी मर्सडीज इसके पीछे आकर थम गई। हमें अब पता लगा कि वह कार रूकी हुई क्यों थी? वह पेड़ के तने से टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। सामने का हिस्सा तो एकदम चकनाचूर ही हो गया था।

क्रमशः Kahani Satyajeet Ray ki

घनी कहानी छोटी शाखा: सत्यजीत रे की कहानी “कॉर्वस” का अंतिम भाग

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