दो शा’इर दो रूबाई (8): शाद अज़ीमाबादी और भारतेंदु हरिश्चंद्र
शाद अज़ीमाबादी की रूबाई चालाक हैं सब के सब बढ़ते जाते हैं अफ़्लाक-ए-तरक़्क़ी पे चढ़ते जाते हैं मकतब बदला किताब बदली लेकिन हम एक वही सबक़ पढ़ते जाते हैं __________________________ __________________________ भारतेंदु हरीश्चन्द्र की रूबाई रहमत का तेरे उम्मीद-वार आया …
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