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(हिंदी की पहली कहानी कौन-सी है? इस सवाल पर अलग-अलग जानकारों के अलग-अलग मत हैं..और उन मतों के अनुसार ही कुछ कहानियों को हिंदी की पहली कहानी माना जाता  है। अभी कुछ दिन “घनी कहानी छोटी शाखा” में शामिल कर रहे हैं ऐसी ही कुछ कहानियों को, जो मानी जाती हैं हिंदी की पहली कहानियों में से एक..इन दिनों आप पढ़ रहे हैं, “किशोरीलाल गोस्वामी” की लिखी कहानी “इन्दुमती”..आज पढ़िए दूसरा भाग) Kishorilal Goswami Ki Indumati

इन्दुमती- किशोरीलाल गोस्वामी
घनी कहानी छोटी शाखा: किशोरीलाल गोस्वामी की लिखी कहानी “इन्दुमती” का पहला भाग
भाग-2

(अब तक आपने पढ़ा..दुनिया के वजूद से बेख़बर इन्दुमती अपने बूढ़े पिता के साथ विंध्याचल के घने जंगल में रहती है। उसने अब तक अपने पिता के अलावा किसी और मनुष्य को देखा तक नहीं है, इसलिए जब उसे जंगल में घूमते समय एक युवक नज़र आता है तो वो पहले उसे देवता समझती है, लेकिन उसके आश्वासन दिलाने पर इन्दुमती को यक़ीन होता है कि वो भी एक मनुष्य है, पिता से अतिरिक्त इस युवक को देखकर वो मन ही मन ख़ुश होती है और जब वो युवक उसका अतिथि बनने का प्रस्ताव रखता है तो वो उसे अपने पिता से मिलाने और अतिथि सत्कार के लिए घर ले आती है। पिता के ख़ुश होने की बात मन ही मन सोचते हुए आयी इन्दुमती को पिता के क्रोध का सामना करना पड़ता है, जो उसके लिए एक नया अनुभव है, इससे पहले इन्दुमती ने पिता को इतना क्रोधित नहीं देखा। अब आगे…)

वह अपने पिता का ऐसा अनूठा क्रोध देख पहले तो डरी, फिर अपने ही लिए युवा बटोही बिचारे का प्राण जाते देख जी कड़ा कर बुड्ढ़े के पैरों पर गिर पड़ी और रो-रो, गिड़गिड़ा-गिड़गिड़ाकर युवक के प्राण की भिक्षा माँगने लगी, और अपने पिता को अच्छी तरह समझा दिया कि- “‘इसमें युवक का कोई दोष नहीं है, उसे मैं ही कुटी पर ले आयी हूँ। यदि इसमें कोई अपराध हुआ तो उसका दण्ड मुझे मिलना चाहिए”

कन्या की ऐसी अनोखी विनती सुनकर बुड्ढ़ा कुछ ठण्डा हुआ और युवक की ओर देखकर बोला कि – “सुनो जी, इस अज्ञानी लड़की की विनती से मैंने तुम्हारा प्राण छोड़ दिया, परंतु तुम यहाँ से जाने न पाओगे। कैदी की तरह जन्म-भर तुम्हें यहाँ रहकर हमारी ग़ुलामी करनी पड़ेगी, और जो भागने का मंसूबा बाँधोगे तो तुरंत मारे जाओगे”

इतना कहकर बूढ़े ने ज़ोर से सीटी बजायी, जिसकी आवाज दूर-दूर तक वन में गूँजने लगी और देखते-देखते बीस-पच्चीस आदमी हट्टे-कट्टे यमदूत की सूरत, हाथ में ढाल-तलवार लिए बुड्ढे के सामने आ खड़े हुए। उन्हें देखकर उसने कहा- “सुनो वीरों, इस युवक को (अँगुली से दिखाकर) आज से मैंने अपना बँधुवा बनाया है। तुम लोग इस पर ताक लगाए रखना, जिससे यह भागने न पावे और इसकी तलवार ले लो। बस जाओ”-  इतना सुनते ही वे सब के सब युवक से तलवार छीन, सिर झुकाकर चले गए पर इस नए तमाशे को देख इन्दुमती के होश-हवास उड़ गए।

जबसे उसने होश सँभाला तब से आज तक बुढ्ढे को छोड़ किसी दूसरे मनुष्य की सूरत तक नहीं देखी थी, पर आज एकाएक इतने आदमियों को अपने पिता के पास देख वह बहुत ही सकपकाई पर डर के मारे कुछ बोली नहीं। बुड्ढे ने युवक की ओर आँख उठाकर कहा- “देखों अब, तुम मेरे बँधुवे हुए, अब से जो-जो मैं कहूँगा तुम्हें करना पड़ेगा। उनमें पहिला काम तुम्हें यह दिया जाता है कि तुम इस सूखे पेड़ को (दिखलाकर) काट-काटकर लकड़ी को कुटी के भीतर रखो। ध्यान रखो, यदि ज़रा भी मेरी आज्ञा टाली तो समझ लेना कि तुम्हारे धड़ पर विधाता ने सिर बनाया ही नहीं और इन्दुमती! तू भी कान खोलकर सुनले। इस युवक के साथ यदि किसी तरह की भी बातचीत करेगी तो तेरी भी वही दशा होगी”-  इतना कहकर बुड्ढा कुटी के भीतर चला गया और फिर उसी गीता की पुस्तक को ले पढ़ने लगा।

बुड्ढे का विचित्र रंग-ढंग देखकर हमारे युवक के हृदय में कैसे-कैसे भावों की तरंगें उठी होंगी, इसे हम लिखने में असमर्थ हैं। पर हाँ इतना तो उसने अवश्य निश्चय किया होगा कि “यदि सचमुच यह सुंदरी इस बुड्ढे की लड़की हो तो विधाता ने पत्थर से नवनीत पैदा किया है”

निदान विचारा युवक अपने भाग्य पर भरोसा रखकर कुल्हाड़ा हाथ में ले पेड़ काटने लगा और इन्दुमती पास ही खड़ी-खड़ी टकटकी लगाए उसे देखने लगी। दो ही चार बार के टाँगा चलाने से युवक के अंग-अंग से पसीने की बूँदें टपकने लगीं और वह इतने जोर से साँस लेने लगा जिससे जान पड़ता था कि यदि यों ही घण्टे-दो घण्टे यह टाँगा चलावेगा तो अपनी जान से हाथ धो बैठेगा। उसकी ऐसी दशा देखकर इन्दुमती ने उसके लिए फल और जल ला, आँखों में आँसू भरकर कहा- “सुनो जी, ठहर जाओ, देखो यह फल और जल मैं लायी हूँ, इसे खा लो, जरा ठण्डे हो लो, फिर काटना; छोड़ो, मान जाओ” Kishorilal Goswami Ki Indumati

युवक ने उसकी प्रेम भरी बातों को सुन कर कहा- “सुंदरी, मैं सच कहता हूँ कि तुम्हारा मुँह देखने से मुझे इस परिश्रम का कष्ट ज़रा भी नहीं व्यापता, यदि तुम यों ही मेरे सामने खड़ी रही तो मैं बिना अन्न-जल ग्रहण किए सारे संसार के पेड़ काटकर रख दूँ और सुनो तो सही, अपने पिता की बातें याद करो, क्यों नाहक मेरे लिए अपने प्राण संकट में डालती हो? यदि वे सुन लेंगे तो क्या होगा? और मैं जो सुस्ताने लगूँगा तो लकड़ी कौन काटेगा? जब वे देखेंगे कि पेड़ नहीं कटा तो कैसे उपद्रव करेंगे! इसलिए हे सुशीले! मुझे मेरे भाग्य पर छोड़ दो” Kishorilal Goswami Ki Indumati

युवक की ऐसी करुणा-भरी बातें सुनकर इन्दुमती की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने बरजोरी युवक के हाथ से कुठार ले लिया और कहा- “भई चाहे कुछ भी हो, पर ज़रा  तो ठहर जाओ, मेरे कहने से मेरे लाए हुए फल खाकर ज़रा दम ले लो, तब तक तुम्हारे बदले मैं लकड़ी काटती हूँ”-  युवक ने बहुत समझाया पर वह न मानी और अपने सुकुमार हाथों से कुठार उठा कर पेड़ पर मारने लगी। युवक ने जल्दी-जल्दी उसके बहुत कहने से कई एक फल खाकर दो घूँट जल पिया इतने ही में हाथ में नंगी तलवार लिए बुड्ढा कुटी से निकलकर युवक से बोला –

“क्यों रे नीच! तेरी इतनी बड़ी सामर्थ्य कि आप तो बैठा-बैठा सुस्ता रहा है और मेरी लड़की से पेड़ कटवाता है? रह, अभी तेरा सिर काटता हूँ”- फिर इन्दुमती की ओर घूमकर बोला- “क्यों री ढीठ, तैंने मेरे मना करने पर भी इस दुष्ट से बातचीत की! रह जा, तेरा भी वध करता हूँ”

बुड्ढे की बातें सुन युवक उसके पैरों पर गिर पड़ा और कहने लगा- “महाशय, इस बिचारी का कोई अपराध नहीं है, इसे छोड़ दीजिए, जो कुछ दण्ड देना है वह मुझे दीजिए”

इन्दुमती भी उसके पैर पर गिरकर कहने लगी, “नहीं, नहीं, इसका कोई दोष नहीं है, मैंने बरजोरी इससे कुठार ले ली थी, इसलिए हे पिता! अपराधिनी मैं हूँ, मुझे दण्ड दीजिए, इन्हें छोड़ दीजिए”

उन दोनों की ऐसी बातें सुनकर बुड्ढे ने कहा, “अच्छा, आज तो मैं तुम दोनों को छोड़े देता हूँ, पर देखो फिर मेरी बातों का ध्यान ना रखोगे तो मारे जाओगे”- इतना कह बुड्ढा कुटी में चला गया और वे दोनों एक-दूसरे का मुँह देखने लगे।

क्रमशः
घनी कहानी छोटी शाखा: किशोरीलाल गोस्वामी की लिखी कहानी “इन्दुमती” का तीसरा भाग
घनी कहानी छोटी शाखा: किशोरीलाल गोस्वामी की लिखी कहानी “इन्दुमती” का अंतिम भाग
Kishorilal Goswami Ki Indumati

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