1.
दोनों जहान देके वो समझे यह ख़ुश रहा
याँ आ पड़ी यह शर्म कि तकरार क्या करें
मिर्ज़ा ग़ालिब
2.
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
ओबैदुल्लाह अलीम
3.
ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना
ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते
अख़्तर शीरानी
4.
छुप गए वो साज़-ए-हस्ती छेड़ कर
अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है
असरार उल हक़ “मजाज़”
5.
अदब ता’लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
बृज नारायण “चकबस्त”
6.
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई
परवीन शाकिर
7.
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
राहत इन्दौरी
8.
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया
बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया
निदा फ़ाज़ली
9.
अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया
कि एक उम्र चले और घर नहीं आया
इफ़्तिख़ार आरिफ़
10.
हमने दिल दे भी दिया अहद ए वफ़ा ले भी लिया,
आप अब शौक़ से दे लें जो सज़ा देते हैं
साहिर लुधियानवी
[फ़ोटो क्रेडिट (फ़ीचर्ड इमेज): नेहा शर्मा]