ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा “जूठन” की समीक्षा
Joothan Review पता ही नहीं था क्या होगा उसमें..कैसी होगी..अमूमन किताबों के पहले पाँच पन्नों से अनुमान लगाने की आदत है कि ये किताब कैसी होगी..शायद ये अच्छी आदत नहीं है..लेकिन जब पहले पाँच पन्ने बिना रुके पढ़े जाएँ तो मुझे लगता है कि आगे बढ़ना चाहिए..वैसे एक बार पढ़ने के लिए किताब उठाने के … Read more