मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है – सलीम कौसर

सलीम कौसर

मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है मैं किसी के दस्त-ए-तलब में हूँ तो किसी के हर्फ़-ए-दुआ में हूँ मैं नसीब हूँ किसी और का मुझे माँगता कोई और है अजब ए’तिबार ओ बे-ए’तिबारी के दरमियान है ज़िंदगी मैं क़रीब हूँ किसी और … Read more

सफ़र के वक़्त – जौन एलिया

Jaun Elia Best Sher

तुम्हारी याद मिरे दिल का दाग़ है लेकिन सफ़र के वक़्त तो बे-तरह याद आती हो बरस बरस की हो आदत का जब हिसाब तो फिर बहुत सताती हो जानम बहुत सताती हो मैं भूल जाऊँ मगर कैसे भूल जाऊँ भला अज़ाब-ए-जाँ की हक़ीक़त का अपनी अफ़्साना मिरे सफ़र के वो लम्हे तुम्हारी पुर-हाली वो … Read more

ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम – मोमिन ख़ाँ मोमिन

ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम पर क्या करें कि हो गए नाचार जी से हम हँसते जो देखते हैं किसी को किसी से हम मुँह देख देख रोते हैं किस बे-कसी से हम हम से न बोलो तुम इसे क्या कहते हैं भला इंसाफ़ कीजे पूछते हैं आप ही से … Read more

अब इतनी सादगी लाएँ कहाँ से – परवीन शाकिर

Parveen Shakir Best Sher

अब इतनी सादगी लाएँ कहाँ से ज़मीं की ख़ैर माँगें आसमाँ से अगर चाहें तो वो दीवार कर दें हमें अब कुछ नहीं कहना ज़बाँ से सितारा ही नहीं जब साथ देता तो कश्ती काम ले क्या बादबाँ से भटकने से मिले फ़ुर्सत तो पूछें पता मंज़िल का मीर-ए-कारवाँ से तवज्जोह बर्क़ की हासिल रही … Read more

दिल धड़कने का सबब याद आया – नासिर काज़मी

दिल धड़कने का सबब याद आया वो तिरी याद थी अब याद आया आज मुश्किल था सँभलना ऐ दोस्त तू मुसीबत में अजब याद आया दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से फिर तिरा वादा-ए-शब याद आया तेरा भूला हुआ पैमान-ए-वफ़ा मर रहेंगे अगर अब याद आया फिर कई लोग नज़र से गुज़रे फिर कोई शहर-ए-तरब … Read more

भली सी एक शक्ल थी – अहमद फ़राज़

Ahmad Faraz Best Shayari

भले दिनों की बात है भली सी एक शक्ल थी न ये कि हुस्न-ए-ताम हो न देखने में आम सी न ये कि वो चले तो कहकशाँ सी रहगुज़र लगे मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे कोई भी रुत हो उसकी छब फ़ज़ा का रंग-रूप थी वो गर्मियों की छाँव थी … Read more

तेरी ख़ुश्बू का पता करती है – परवीन शाकिर की ग़ज़ल

Parveen Shakir Best Sher

तेरी ख़ुश्बू का पता करती है मुझ पे एहसान हवा करती है चूम कर फूल को आहिस्ता से मो’जिज़ा बाद-ए-सबा करती है खोल कर बंद-ए-क़बा गुल के हवा आज ख़ुश्बू को रिहा करती है अब्र बरसे तो इनायत उस की शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है ज़िंदगी फिर से फ़ज़ा में रौशन मिशअल-ए-बर्ग-ए-हिना करती है … Read more

दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ – शकील बदायूँनी

Aaj Phir Gardish e Taqdeer Pe Rona Aaya - Shakeel Budanyuni Shakeel Badayuni Shayari

दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ छेड़ो न मुझे मैं कोई दीवाना नहीं हूँ इस कसरत-ए-ग़म पर भी मुझे हसरत-ए-ग़म है जो भर के छलक जाए वो पैमाना नहीं हूँ रूदाद-ए-ग़म-ए-इश्क़ है ताज़ा मिरे दम से उनवान-ए-हर-अफ़्साना हूँ अफ़्साना नहीं हूँ इल्ज़ाम-ए-जुनूँ दें न मुझे अहल-ए-मोहब्बत मैं ख़ुद ये समझता हूँ कि दीवाना नहीं … Read more

वो हँसती है तो उसके हाथ रोते हैं – अब्बास ताबिश

किसी के ब’अद
अपने हाथों की बद-सूरती में खो गई है वो

मुझे कहती है ‘ताबिश’! तुमने देखा मेरे हाथों को
बुरे हैं नाँ?

अगर ये ख़ूबसूरत थे तो इनमें कोई बोसा क्यूँ नहीं ठहरा”
अजब लड़की है

पूरे जिस्म से कट कर फ़क़त हाथों में ज़िंदा है
सुराही-दार गर्दन नर्म होंटों तेज़ नज़रों से वो बद-ज़न है

कि इन अपनों ने ही उसको सर-ए-बाज़ार फेंका था
कभी आँखों में डूबी

और कभी बिस्तर पे सिलवट की तरह उभरी
अजब लड़की है

ख़ुद को ढूँढती है
अपने हाथों की लकीरों में

जहाँ वो थी न है, आइंदा भी शायद नहीं होगी
वो जब उँगली घुमा कर

‘फ़ैज़’ की नज़्में सुनाती है
तो इसके हाथ से पूरे बदन का दुख झलकता है

वो हँसती है तो उसके हाथ रोते हैं
अजब लड़की है

पूरे जिस्म से कट कर फ़क़त हाथों में ज़िंदा है

Read more

हवा का लम्स जो अपने किवाड़ खोलता है – मोहसिन नक़वी

हवा का लम्स जो अपने किवाड़ खोलता है तो देर तक मिरे घर का सुकूत बोलता है हम ऐसे ख़ाक-नशीं क्या लुभा सकेंगे उसे वो अपना ‘अक्स भी मीज़ान-ए-ज़र में तोलता है जो हो सके तो यही रात ओढ़ ले तन पर बुझा चराग़ अँधेरे में क्यों टटोलता है उसी से माँग लो ख़ैरात अपने … Read more