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Bahadur Shah Zafar Shayari Humko Mita Sake Ye Zamane Mein Dum Nahin Motivational Shayari Mirza Jafar Ali Hasrat Sher Urdu Interesting FactsGood Neighbours (or Gossip), 1885 painting by John William Waterhouse

Mirza Jafar Ali Hasrat Sher मिर्ज़ा जाफ़र अली ‘हसरत’ लखनऊ के थे. वो रायस्वरुप सिंह ‘दीवाना’ के शिष्य थे. उन्होंने दो दीवान छोड़े हैं. ‘जुरअत’ और ‘हसन’ इनके शिष्य थे.
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तुम्हें ग़ैरों से कब फ़ुर्सत हम अपने ग़म से कब ख़ाली,
चलो बस हो चुका मिलना, न तुम ख़ाली न हम ख़ाली

मिर्ज़ा जाफ़र अली ‘हसरत’

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मस्त मैं तो हो गया तेरी निगह से साक़िया
अब नहीं मुझ में रहा है और पैमाने का होश

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आख़िर तेरे ग़म में मर गए हम,
भरना था जो दुःख सो भर गए हम
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ख़ुदा हाफ़िज़ है क्यूँ महफ़िल में उसका नाम आता है,
तड़पने से मेरे दिल को अभी आराम आया था

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बहारें हमको भूलीं, याद है इतना कि गुलशन में,
गिरेबाँ चाक करने का भी एक हंगाम आया था

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किस-किस तरह से हमने किया अपना जी निसार,
लेकिन गईं न दिल से तेरे बदगुमानियाँ

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जो बेताबी दिले उश्शाक़ की बातिल समझते थे,
मेरे सीने पे आकर इन दिनों वे हाथ धर देखें

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हुए हम बेतुके बन्दे बिरहमन से राह करते हैं,
हरम के रहने वालों तुमसे इश्क़ अल्लाह करते हैं

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दश्त में कर चलने की तदबीर होना हो सो हो,
तोड़ दीवाने तू अब ज़ंजीर होना हो सो हो

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सुराग़ पूछूँ मैं क्या अश्को-आह्का दिल से,
कि इस दयार से हो कितने क़ाफ़िले निकले
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मौत आ जाए कहीं इस दिले शैदाई को,
रोज़ समझाए कहाँ तक कोई सौदाई की

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आती है बात बात पर हरदम,
रंजिशें दरम्यान क्या कीजे ?
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न जाने क्या तुझे उल्फ़त थी गुल से ए बुलबुल,
कि अपने जी से गई, पर चमन से तू न गई

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पटकने दे मुझे सर उसके आस्ताने का,
ख़बर करूँ हूँ मैं अपनी इसी बहाने से
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तेरा तो तब ऐतबार कीजे,
जब होवे कुछ ऐतबार अपना
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ए दिल अगर तड़पना तेरा यही रहेगा,
काहे को तू जियेगा, काहे को जी रहेगा

Mirza Jafar Ali Hasrat Sher

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