इस दौर के सबसे मक़बूल शायरों में से एक राहत इन्दौरी साहब का आज जन्मदिन है. राहत साहब का जन्म 1 जनवरी, 1950 को मध्यप्रदेश के इंदौर में हुआ. राहत साहब ने देश-विदेश के कई शहरों में मुशा’इरे पढ़े हैं और इसके अलावा उन्होंने कई फ़िल्मों में गीत भी लिखे हैं. उर्दू लिटरेचर में पीएचडी करने वाले डॉ राहत इन्दौरी युवाओं के पसंदीदा शायर तो हैं ही, साथ ही उन्हें अदब के ख़ास जानकार भी ख़ूब पसंद करते हैं. उनके जन्मदिन के मौक़े पर हमने कुछ लोगों से बात की.
शायर नूर उज़ ज़माँ कहते हैं,”दिलों पे राज करने वाले शायर हैं राहत इन्दौरी- हालात ए हाज़िरा पे पैनी नज़र रखते हैं और आम आदमी के जज़्बात को इस ख़ूबसूरती से क़लम-बंद करते हैं कि लोगों के दिल में उतर जाते हैं. नूर कहते हैं कि राहत साहब कनेक्ट करने की आर्ट में माहिर हैं..मेरी पसंद का उनका एक शेर देखें-‘हाशिये पर खड़े हुए हैं हम/ हमने ख़ुद हाशिये बनाए थे”. राहत इन्दौरी की तारीफ़ करते हुए शायर क़मर साक़ी कहते हैं कि ये कहा जा सकता है कि उनकी शा’यरी इस क़िस्म की है कि लोगों के ज़हन पर ज़ोर पड़े. उन्होंने कहा कि उनके बारे में कुछ कहना दिए को चराग़ दिखाने के बराबर है.
शाहजहाँपुर से ताल्लुक़ रखने वाले इंजिनियर फ़रहान ख़ान कहते हैं,”अदब के मिम्बरों से शायरों का एक ख़ास अंदाज़ जो ख़त्म सा हो रहा था और जौन के बाद बिलकुल ख़त्म था उसको राहत साहब ने ज़िन्दगी बख़्शी है.
राहत इन्दौरी की एक ग़ज़ल पाठकों के लिए..
ना हम-सफ़र ना किसी हम-नशीं से निकलेगा,
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
मैं जानता था कि ज़हरीला साँप बन-बन कर,
तिरा ख़ुलूस मिरी आस्तीं से निकलेगा
इसी गली में वो भूका फ़क़ीर रहता था,
तलाश कीजे ख़ज़ाना यहीं से निकलेगा
बुज़ुर्ग कहते थे इक वक़्त आएगा जिस दिन,
जहाँ पे डूबेगा सूरज वहीं से निकलेगा
गुज़िश्ता साल के ज़ख़्मो हरे-भरे रहना,
जुलूस अब के बरस भी यहीं से निकलेगा