क्या कहेगा कभी मिलने भी अगर आएगा वो
अब वफ़ादारी की क़स्में तो नहीं खाएगा वो
हम समझते थे कि हम उस को भुला सकते हैं
वो समझता था हमें भूल नहीं पाएगा वो
कितना सोचा था पर इतना तो नहीं सोचा था
याद बन जाएगा वो ख़्वाब नज़र आएगा वो
सब के होते हुए इक रोज़ वो तन्हा होगा
फिर वो ढूँडेगा हमें और नहीं पाएगा वो
इत्तिफ़ाक़न जो कभी सामने आया ‘अजमल’
अब वो तन्हा तो न होगा जो ठहर जाएगा वो
अजमल सिराज