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Lucknow Shayari

कशिश-ए-लखनऊ अरे तौबा
फिर वही हम वही अमीनाबाद

यगाना चंगेज़ी (Yagana Changezi)

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आज कल लखनऊ में ऐ ‘अख़्तर’
धूम है तेरी ख़ुश-बयानी की

वाजिद अली शाह अख़्तर (Wajid Ali Shah Akhtar)
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लखनऊ में फिर हुई आरास्ता बज़्म-ए-सुख़न
बाद मुद्दत फिर हुआ ज़ौक़-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी मुझे

चकबस्त ब्रिज नारायण (Chakbast)
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ज़बान-ए-हाल से ये लखनऊ की ख़ाक कहती है
मिटाया गर्दिश-ए-अफ़्लाक ने जाह-ओ-हशम मेरा

चकबस्त ब्रिज नारायण (Chakbast)

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हाल ख़ुश लखनऊ का दिल्ली का
बस उन्हें ‘मुसहफ़ी’ से ख़तरा है

जौन एलिया (Jaun Elia)

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क्या गर्म हैं कि कहते हैं ख़ूबान-ए-लखनऊ
लंदन को जाएँ वो जो फिरंगन के यार हैं

अमीर मीनाई (Ameer Minai)

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किया तबाह तो दिल्ली ने भी बहुत ‘बिस्मिल’
मगर ख़ुदा की क़सम लखनऊ ने लूट लिया

बिस्मिल सईदी (Bismil Saeedi)

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दिल्ली छुटी थी पहले अब लखनऊ भी छोड़ें
दो शहर थे ये अपने दोनों तबाह निकले

मिर्ज़ा हादी रुस्वा (Mirza Hadi Ruswa)

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बड़ी मुश्किल से आते हैं समझ में लखनऊ वाले
दिलों में फ़ासले लब पर मगर आदाब रहता है

मुनव्वर राना (Munavvar Rana)

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नए मिज़ाज के शहरों में जी नहीं लगता
पुराने वक़्तों का फिर से मैं लखनऊ हो जाऊँ

मुनव्वर राना (Munavvar Rana)

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लखनऊ आने का बाइस नहीं खुलता यानी
हवस-ए-सैर-ओ-तमाशा सो वह कम है हम को

मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib)

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याद आता है लखनऊ ‘अख़्तर’
ख़ुल्द हो आएँ तो बुरा क्या है

अख़्तर शीरानी (Akhtar Shirani)

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लखनऊ क्या तिरी गलियों का मुक़द्दर था यही
हर गली आज तिरी ख़ाक-बसर लगती है

जाँ निसार अख़्तर (JaaN Nisar Akhtar)

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यही तशवीश शब-ओ-रोज़ है बंगाले में
लखनऊ फिर कभी दिखलाए मुक़द्दर मेरा

वाजिद अली शाह अख़्तर (Wajis Ali Shah Akhtar)

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तुराब-ए-पा-ए-हसीनान-ए-लखनऊ है ये
ये ख़ाकसार है ‘अख़्तर’ को नक़्श-ए-पा कहिए

वाजिद अली शाह अख़्तर (Wajid Ali Shah Akhtar)

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शफ़क़ से हैं दर-ओ-दीवार ज़र्द शाम-ओ-सहर
हुआ है लखनऊ इस रहगुज़र में पीलीभीत

मीर तक़ी मीर (Meer Taqi Meer)

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अर्ज़-ए-दकन में जान तो दिल्ली में दिल बनी
और शहर-ए-लखनऊ में हिना बन गई ग़ज़ल

गणेश बिहारी तर्ज़ (Ganesh Bihari Tarz)

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ज़बान-ए-हाल से ये लखनऊ की ख़ाक कहती है
मिटाया गर्दिश-ए-अफ़्लाक ने जाह-ओ-हशम मेरा

चकबस्त ब्रिज नारायण (Chakbast)

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‘इक़बाल’ लखनऊ से न दिल्ली से है ग़रज़
हम तो असीर हैं ख़म-ए-ज़ुल्फ़-ए-कमाल के

अल्लामा इक़बाल (Allama Iqbal)

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‘यगाना’ वही फ़ातेह-ए-लखनऊ हैं
दिल-ए-संग-ओ-आहन में घर करने वाले

यगाना चंगेज़ी (Yagana Changezi)

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हो ‘मीर’ का ज़माना कि मौजूदा वक़्त हो
दिल्ली से लखनऊ की हमेशा ठनी रही

उस्मान मीनाई (Usman Minai)

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सुब्ह है बनारस की
शाम-ए-लखनऊ है तू

प्रीतपाल सिंह बेताब (Preetpal Singh Betab)

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तिरे ख़याल तिरी आरज़ू से दूर रहे
नवाब हो के भी हम लखनऊ से दूर रहे

हाशिम रज़ा जलालपुरी (Hashim Raza Jalalpuri)

Lucknow Shayari

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