Kamar Best Shayari Khushbu Shayari Ashu Mishra Shayari

Main Ab Vida Leta Hoon Paash अवतार सिंह संधू “पाश” का जन्म पंजाब के तलवंडी सलेम में हुआ था. वो पंजाबी भाषा के मशहूर कवि थे.

मैं अब विदा लेता हूँ
मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूँ

मैंने एक कविता लिखनी चाही थी
सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं

उस कविता में
महकते हुए धनिए का ज़िक्र होना था

ईंख की सरसराहट का ज़िक्र होना था
उस कविता में वृक्षों से चूती ओस

और बाल्टी में चोए दूध पर गाती झाग का ज़िक्र होना था
और जो भी कुछ

मैंने तुम्हारे जिस्म में देखा
उस सबकुछ का ज़िक्र होना था

उस कविता में मेरे हाथों की सख़्ती को मुस्कराना था
मेरी जाँघों की मछलियों ने तैरना था

और मेरी छाती के बालों की नर्म शाल में से
स्निग्धता की लपटें उठनीं थीं

उस कविता में
तेरे लिए

मेरे लिए
और ज़िंदगी के सभी रिश्तों के लिए बहुत कुछ होना था मेरी दोस्त

लेकिन बहुत ही बेस्वाद है
दुनिया के इस उलझे हुए नक़्शे से निपटना

और यदि मैं लिख भी लेता
शगनों से भरी वह कविता

तो उसे वैसे ही दम तोड़ देना था
तुम्हें और मुझे छाती पर बिलखते छोड़कर

मेरी दोस्त, कविता बहुत ही निःसत्व हो गई है
जबकि हथियारों के नाख़ून बुरी तरह बढ़ आए हैं

और अब हर तरह की कविता से पहले
हथियारों से युद्ध करना ज़रूरी हो गया है

युद्ध में
हर चीज़ को बहुत आसानी से समझ लिया जाता है

अपना या दुश्मन का नाम लिखने की तरह
और इस स्थिति में

मेरे चुंबन के लिए बढ़े होंठों की गोलाई को
धरती के आकार की उपमा देना

या तेरी कमर के लहरने की
समुद्र के साँस लेने से तुलना करना

बड़ा मज़ाक-सा लगना था
सो मैंने ऐसा कुछ नहीं किया

तुम्हें
मेरे आँगन में मेरा बच्चा खिला सकने की तुम्हारी ख़ाहिश को

और युद्ध के समूचेपन को
एक ही कतार में खड़ा करना मेरे लिए संभव नहीं हुआ

और अब मैं विदा लेता हूँ
मेरी दोस्त, हम याद रखेंगे

कि दिन में लोहार की भट्ठी की तरह तपनेवाले
अपने गाँव की टीले

रात को फूलों की तरह महक उठते हैं
और चाँदनी में पगे हुए ‘टोक’ के ढेरों पर लेटकर

स्वर्ग को गाली देना, बहुत संगीतमय होता है
हाँ, यह हमें याद रखना होगा क्योंकि

जब दिल की जेबों में कुछ नहीं होता
याद करना बहुत ही अच्छा लगता है

मैं इस विदाई के पल शुक्रिया करना चाहता हूँ
उन सभी हसीन चीज़ों का

जो हमारे मिलन पर तंबू की तरह तनती रहीं
और उन आम जगहों का

जो हमारे मिलने से हसीन हो गईं
मैं शुक्रिया करता हूँ

अपने सिर पर ठहर जाने वाली
तेरी तरह हल्की और गीतों भरी हवा का

जो मेरा दिल लगाए रखती थी तेरे इंतज़ार में
रास्ते पर उगे हुए रेशमी घास का

जो तुम्हारी लरजती चाल के सामने हमेशा बिछ जाता था
टींडों से उतरी कपास का

जिसने कभी भी कोई उज़्र न किया
और हमेशा मुस्कुराकर हमारे लिए सेज बन गई

गन्नों पर तैनात पिद्दियों का
जिन्होंने आने-जानेवालों की भनक रखी

जवान हुए गेहूँ की बल्लियों का
जो हमें बैठे हुए न सही, लेटे हुए तो ढँकती रहीं

मैं शुक्रगुज़ार हूँ, सरसों के नन्हें फूलों का
जिन्होंने कई बार मुझे अवसर दिया

तेरे केशों से पराग केसर झाड़ने का
मैं आदमी हूँ, बहुत कुछ छोटा-छोटा जोड़कर बना हूँ

और उन सभी चीज़ों के लिए
जिन्होंने मुझे बिखर जाने से बचाए रखा

मेरे पास बहुत शुक्राना है
मैं शुक्रिया करना चाहता हूँ

प्यार करना बहुत ही सहज है
जैसे कि ज़ुल्म को झेलते हुए

ख़ुद को लड़ाई के लिए तैयार करना
या जैसे गुप्तवास में लगी गोली से

किसी गुफ़ा में पड़ा रहकर
ज़ख़्म के भरने के दिन की कोई कल्पना करे

प्यार करना
और लड़ सकना

जीने पर ईमान ले आना मेरी दोस्त, यही होता है
धूप की तरह धरती पर खिल जाना

और फिर आलिंगन में सिमट जाना
बारूद की तरह भड़क उठना

और चारों दिशाओं में गूँज जाना—
जीने का यही सलीक़ा होता है

प्यार करना और जीना उन्हें कभी न आएगा
जिन्हें ज़िंदगी ने बनिए बना दिया

जिस्म का रिश्ता समझ सकना—
ख़ुशी और नफ़रत में कभी भी लकीर न खींचना—

ज़िंदगी के फैले हुए आकार पर फ़िदा होना—
सहम को चीरकर मिलना और विदा होना—

बड़ा शूरवीरता का काम होता है मेरी दोस्त,
मैं अब विदा लेता हूँ,

तुम भूल जाना
मैंने तुम्हें किस तरह पलकों के भीतर पालकर जवान किया

कि मेरी नज़रों ने क्या कुछ नहीं किया
तेरे नक़्शों की धार बाँधने में

कि मेरे चुंबनों ने कितना ख़ूबसूरत बना दिया तुम्हारा चेहरा
कि मेरे आलिंगनों ने

तुम्हारा मोम-जैसा शरीर कैसे साँचे में ढाला
तुम यह सभी कुछ भूल जाना मेरी दोस्त,

सिवाय इसके
कि मुझे जीने की बहुत लोचा थी

कि मैं गले तक ज़िंदगी में डूबना चाहता था
मेरे भी हिस्से का जी लेना, मेरी दोस्त,

मेरे भी हिस्से का जी लेना!

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अनुवाद : चमनलाल
पुस्तक : लहू है कि तब भी गाता है (पृष्ठ 61-65)
संपादक : चमनलाल, कात्यायनी
परिकल्पना प्रकाशन संस्करण : 23 मार्च,1998 (लखनऊ)

Main Ab Vida Leta Hoon Paash

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