हिन्दी व्याकरण उ और ऊ की मात्रा में अंतर और उनका उपयोग
“उ” और “ऊ“
हिन्दी व्याकरण उ और ऊ: हिन्दी वर्णमाला के 52 वर्णों में से 11 स्वरों को मात्राओं के रूप में प्रयोग किया जाता है। इनमें से अधिकांश स्वर वर्ण और उनकी मात्राएँ एक-दूसरे से मिलती जुलती होती है। जैसे इ और ई, उ और ऊ, ए और ऐ, ओ और औ। इनकी मात्राओं में भी इतना ही अंतर होता है और ऐसे में इनके प्रयोग में त्रुटि अक्सर होती है। कई बार मात्राओं के बदलने के कारण शब्द का पूरा अर्थ ही बदल जाता है। इन दिनों हम ऐसी ही त्रुटियों से बचने के लिए इन स्वरों और उनकी मात्राओं के अंतर को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
आज हम जिन स्वरों की बात करेंगें वो हैं; “ऊ” और “ऊ”
उच्चारण:
सभी स्वरों के सही उच्चारण के लिए अब तक हमने सबसे सरल रास्ता अपनाया है और वो है पुराने हिंदी फ़िल्मी गीत। पुराने गीतों में ज़्यादातर उच्चारण सही ही होता था, अगर किसी जगह अशुद्ध उच्चारण की माँग न हो तो, इसलिए उच्चारण सीखने का ये सबसे आसान रास्ता है। तो जानते हैं “उ” और “ऊ” के उच्चारण के लिए कौन-से गीत हैं।
“उ” के सही उच्चारण के लिए आप सुन सकते हैं- “झुक गया आसमान” फ़िल्म का गीत “उनसे मिली नज़र कि मेरे होश उड़ गए..यहाँ पहले शब्द का पहला वर्ण “उ” है। अब ये बात ध्यान में रखने की है कि जिस भी अक्षर में “उ” की मात्रा लगेगी उसका उच्चारण उस अक्षर के साथ “उ” का स्वर लिए होगा। जैसे इस गीत की आगे की पंक्ति में “ऐसा हुआ असर” में “हुआ” के “हु” को सुनकर पता कर सकते हैं। जिस भी अक्षर में “उ” की मात्रा लगी होगी वो इसी तरह के स्वर के साथ उच्चारित होगा।
अब “ऊ” के सही उच्चारण के लिए आप सुन सकते हैं- 1950 में आयी “मशाल” फ़िल्म का गीत “ऊपर गगन विशाल”..और जिस भी अक्षर में “ऊ” की मात्रा लगी हो उसके उच्चारण में भी “ऊ” की ध्वनि आएगी..जैसे इसी गीत की आगे वाली पंक्ति में “वाह मेरे मालिक तूने किया कमाल” में “तू” के उच्चारण में होता है। यही बात बाक़ी अक्षरों के लिए भी लागू होगी जिनमें “ऊ” की मात्रा का प्रयोग हो।
उच्चारण जानने के बाद सही मात्रा लगाना काफ़ी आसान काम है। “उ” और “ऊ” की मात्राओं में ज़रा सा ही अंतर है..दोनों मात्राएँ अक्षरों की खड़ी रेखा के नीचे लगती हैं और कुछ के पीछे भी, जैसे “र” के पीछे।
“उ” की मात्रा ऊपर से हल्का सा घुमाव लिए गोल सी ही लगती है( ु) और “ऊ” की मात्रा ऊपर से हल्का घुमाव लिए आड़ी छोटी रेखा सी लगती है( ू)
“उ” की मात्रा वाले कुछ शब्द हैं: गुण, गुरु, चुप, गुलाब, तुलसी, फुलवारी, बुलबुल, मुलायम आदि।
“ऊ” की मात्रा वाले कुछ शब्द हैं: रूप, धूप, जूता, ख़ून, ख़ूब, तूफ़ान, सूचना, कूड़ादान आदि।
अर्थ परिवर्तन
जिस तरह किसी भी स्वर के परिवर्तन से शब्द का उच्चारण बदल सकता है उसी तरह कई बार पूरा अर्थ भी बदल सकता है। इसी तरह के कुछ शब्द यहाँ शामिल कर रहे हैं जिनमे “उ” और “ऊ” की मात्रा के बदलने से शब्द का अर्थ बदल रहा है। दोनों शब्दों के अर्थ उनके बाज़ू में कोष्ठक में लिखे हैं और नीचे उनसे एक वाक्य बनाकर उनके अर्थ को सरलता से समझने का प्रयास है।
कुटा – (जो कूटा गया हो)
कूटा- (कूटने की क्रिया)
वाक्य– आख़िर चना “कुटा” गया, ताक़त तो बहुत लगी पर मैंने अच्छे से “कूटा”।
कुल – (सब, वंश)
कूल- (किनारा)
वाक्य- “कुल” मिलाकर सारे बच्चे नदी के “कूल” पर खेल रहे थे।
धुल – (धुलने की क्रिया)
धूल- (गर्द)
वाक्य– फ़र्श अच्छे से “धुल” गया था, अब उस पर “धूल” का कण तक नज़र नहीं आ रहा था।
फ़ुल- (अंग्रेज़ी/ पूरा, पूर्ण)
फूल- (पुष्प)
वाक्य- नाश्ते से पेट “फ़ुल” होने के बाद, हमें “फूल” भेंट किए गए।
घुस – (घुसने की क्रिया)
घूस- (बड़ा चूहा)
वाक्य- मैं कमरे में “घुस” ही रहा था कि मुझे दरवाज़े पर “घूस”दिखा, डर से मेरी चीख़ निकल गयी।
चुना- (चुनाव करना)
चूना-(पान या दीवार पर लगाने वाली सफ़ेद क़लई/ टपकना)
वाक्य– लोगों ने मुझे “चुना” और मैंने उनके घरों में “चूना” लगवाने का काम आज से ही शुरू कर दिया। बारिश में घर की छत “चूना” शुरू हो गयी थी।
लुटना- (दिवालिया होना)
लूटना- (बलपूर्वक छीनना)
वाक्य- क्या कहें जब “लुटना” ही था तो “लुट” गए, अपने ही “लूटने” पर आ जाएँ तो कोई बच पाया है।
“तूफ़ान” आने से पहले ही अगर “आलू, मूली, जामुन, तरबूज़” वग़ैरह बचाकर रख भी लिए, तो भी बिना “चाक़ू” के कैसे खाओगे। ये बात बिलकुल वैसी ही है कि अगर “दुनिया” भर की बातें पढ़ लीं और लिखते “हुए” मात्रा ग़लत लगा दी, तो लोगों को कैसे समझाओगे। लोग वैसे तो आपको “भुला” दें पर आपकी “भूल” को कोई कभी नहीं “भूलता”। व्याकरण की इन बातों के बीच अगर हमसे कोई “भूल” “हुई” हो तो “धूल” की तरह झाड़ देना। याद रखने की चीज़ तो “फूल” की “ख़ुशबू” होती है। तो फिर होगी “मुलाक़ात” किसी “दूसरे” विषय के साथ।
हिन्दी व्याकरण उ और ऊ