मन बहुत सोचता है – अज्ञेय

मन बहुत सोचता है कि उदास न हो पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए? शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले, पर यह अपने ही रचे एकांत का दबाव सहा कैसे जाए! नील आकाश, तैरते-से मेघ के टुकड़े, खुली घास में दौड़ती मेघ-छायाएँ, पहाड़ी नदी : पारदर्श पानी, धूप-धुले तल के रंगारंग … Read more

बहनें – असद ज़ैदी

कोयला हो चुकी हैं हम बहनों ने कहा रेत में धँसते हुए ढक दो अब हमें चाहे हम रुकती हैं यहाँ, तुम जाओ बहनें दिन को हुलिए बदलकर आती रहीं बुख़ार था हमें शामों में हमारी जलती आँखों को और तपिश देती हुई बहनें शाप की तरह आती थीं हमारी बर्राती हुई ज़िंदगियों में बहनें … Read more

रोटी और संसद – धूमिल

एक आदमी रोटी बेलता है एक आदमी रोटी खाता है एक तीसरा आदमी भी है जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है मैं पूछता हूँ— ‘यह तीसरा आदमी कौन है?’ मेरे देश की संसद मौन है। — धूमिल

भगवान के डाकिए – रामधारी सिंह दिनकर

पक्षी और बादल, ये भगवान के डाकिए हैं, जो एक महादेश से दूसरे महादेश को जाते हैं। हम तो समझ नहीं पाते हैं मगर उनकी लाई चिट्ठियाँ पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं। हम तो केवल यह आँकते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश को सुगंध भेजती है। और वह सौरभ हवा … Read more

हताशा – विनोद कुमार शुक्ल

Vinod Kumar Shukla

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था व्यक्ति को मैं नहीं जानता था हताशा को जानता था इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया मैंने हाथ बढ़ाया मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ मुझे वह नहीं जानता था मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था हम दोनों साथ चले दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे … Read more

जुदाई की पहली रात – परवीन शाकिर

Parveen Shakir Best Sher

आँख बोझल है मगर नींद नहीं आती है मेरी गर्दन में हमाइल तिरी बाँहें जो नहीं किसी करवट भी मुझे चैन नहीं पड़ता है सर्द पड़ती हुई रात माँगने आई है फिर मुझ से तिरे नर्म बदन की गर्मी और दरीचों से झिझकती हुई आहिस्ता हवा खोजती है मिरे ग़म-ख़ाने में तेरी साँसों की गुलाबी … Read more

बादल को घिरते देखा – नागार्जुन

अमल धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है। छोटे-छोटे मोती जैसे उसके शीतल तुहिन कणों को मानसरोवर के उन स्वर्णिम कमलों पर गिरते देखा है, बादल को घिरते देखा है। तुंग हिमालय के कंधों पर छोटी बड़ी कई झीलें हैं, उनके श्यामल नील सलिल में समतल देशों से आ-आकर पावस की ऊमस … Read more

आईना ~ परवीन शाकिर

Parveen Shakir Best Sher

परवीन शाकिर की नज़्म – आईना लड़की सर को झुकाए बैठी कॉफ़ी के प्याले में चमचा हिला रही है लड़का हैरत और मुहब्बत की शिद्दत से पागल लम्बी पलकों के लर्ज़ीदा सायों को अपनी आँख से चूम रहा है दोनों मेरी नज़र बचा कर इक दूजे को देखते हैं हँस देते हैं मैं दोनों से … Read more

इतना मालूम है!

Parveen Shakir Best Sher

अपने बिस्तर पे बहुत देर से मैं नीम-दराज़ सोचती थी कि वो इस वक़्त कहाँ पर होगा मैं यहाँ हूँ मगर उस कूचा-ए-रंग-ओ-बू में रोज़ की तरह से वो आज भी आया होगा और जब उसने वहाँ मुझको न पाया होगा! आपको इल्म है वो आज नहीं आई हैं? मेरी हर दोस्त से उसने यही … Read more

अकाल और उसके बाद – नागार्जुन

Akaal aur uske baad

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद चमक उठी घर … Read more