Mohabbat Shayari Nazm
जाँ निसार अख़्तर की नज़्म: तजज़िया
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन,
फिर भी जब पास तू नहीं होती
ख़ुद को कितना उदास पाता हूँ
गुम से अपने हवास पाता हूँ
जाने क्या धुन समाई रहती है
इक ख़मोशी सी छाई रहती है
दिल से भी गुफ़्तुगू नहीं होती
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
फिर भी रह रह के मेरे कानों में
गूँजती है तिरी हसीं आवाज़
जैसे नादीदा कोई बजता साज़
हर सदा नागवार होती है
इन सुकूत-आश्ना तरानों में
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
फिर भी शब की तवील ख़ल्वत में
तेरे औक़ात सोचता हूँ मैं
तेरी हर बात सोचता हूँ मैं
कौन से फूल तुझ को भाते हैं
रंग क्या क्या पसंद आते हैं
खो सा जाता हूँ तेरी जन्नत में
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
फिर भी एहसास से नजात नहीं
सोचता हूँ तो रंज होता है
दिल को जैसे कोई डुबोता है
जिसको इतना सराहता हूँ मैं
जिसको इस दर्जा चाहता हूँ मैं
उस में तेरी सी कोई बात नहीं
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
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जिगर श्योपुरी की नज़्म: अगर हो सके तो..
ना घबराइयेगा, अगर हो सके तो
चले आइयेगा, अगर हो सके तो
तुम्हारा पता हर घटा को बताकर,
हवाओं को क़ासिद ए उल्फ़त बनाकर,
कहा मैंने उनसे ये आँसू बहाकर,
उन्हें लाइयेगा, अगर हो सके तो
चले आइयेगा, अगर हो सके तो
हमें मार डाले ना पतझड़ का मौसम,
ना बन जाएँ ख़ुशियाँ घड़ी भर में मातम,
मैं गुल हूँ, ज़रा आप बनकर के शबनम,
बरस जाइएगा, अगर हो सके तो
चले आइयेगा, अगर हो सके तो
अगर ना सुनीं, तुमने दिल की सदाएँ,
मेरे हाल पर रो पड़ेंगी घटाएँ,
तड़पकर के दम तोड़ देंगी फ़ज़ाएँ
तरस खाइएगा, अगर हो सके तो,
चले आइयेगा, अगर हो सके तो
ना हो ज़ख़्म दिल पर मुहब्बत का गहरा,
नहीं तोड़ पाओ जो रस्मों का पहरा,
तो मैय्यत में मेरी ये ग़मगीन चहरा,
ना दिखलाइयेगा, अगर हो सके तो Mohabbat Shayari Nazm