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ईदगाह (मुंशी प्रेमचंद) Eidgah Kahani
घनी कहानी, छोटी शाखा(1): मुंशी प्रेमचंद की ‘ईदगाह’ का पहला भाग..
घनी कहानी, छोटी शाखा: मुंशी प्रेमचंद की ‘ईदगाह’ का दूसरा भाग..
घनी कहानी, छोटी शाखा: मुंशी प्रेमचंद की ‘ईदगाह’ का तीसरा भाग..
घनी कहानी, छोटी शाखा: मुंशी प्रेमचंद की ‘ईदगाह’ का चौथा भाग..
भाग-पाँच
(अब तक आपने पढ़ा। गाँव में अपनी दादी अमीना के साथ अकेला रहने वाला हामिद, अपने दोस्तों के साथ ईदगाह जाता है। नमाज़ के बाद बाज़ार की रौनक़ देखते हामिद के दोस्त तरह-तरह के खिलौने, मिठाइयाँ आदि ख़रीदते हैं और हामिद को चिढ़ाने, ललचाने का मौक़ा नहीं छोड़ते। दूसरी ओर हामिद अपने तीन पैसों से कुछ अच्छी चीज़ ही लेना चाहता है, और वो अच्छी चीज़ उसे लोहे के सामान की दुकान में एक चिमटे के रूप में नज़र आता है, जो वह अपनी दादी अमीना के लिए लेना चाहता है ताकि उनका हाथ रोटियाँ बनते समय न जले। हामिद पूरे पैसों से चिमटा मोल ले लेता है। दोस्त इस बात पर उसका मज़ाक़ उड़ाते हैं लेकिन हामिद अपने तर्क से उन सभी को मात दे देता है। अब सभी दोस्त मायूस हो जाते हैं कि उन्होंने ज़्यादा पैसे ख़र्च किए और मिट्टी के खिलौने मोल लिए, हामिद को वो उसके चिमटे के बदले कुछ भी देने को तैयार होते हैं, लेकिन हामिद उन्हें बताता है कि उसे भी उनके खिलौने पसंद हैं पर वो ये चिमटा दादी के लिए लेना चाहता था। लेकिन हामिद की दिलासा का उसके दोस्तों पर कोई असर नहीं पड़ता, अब सभी को ये चिंता सताने लगती है कि घर में उनके मिट्टी के खिलौने देखकर उनकी माँ क्या कहेंगी?..सभी गाँव के बेहद क़रीब हैं, चलिए पढ़ते हैं और पता करते हैं कि आख़िर घर पर सब किस तरह से उनका स्वागत करते हैं..)

ग्यारह बजे गाँव में हलचल मच गई। मेलेवाले आ गए। मोहसिन की छोटी बहन ने दौड़कर भिश्ती उसके हाथ से छीन लिया और मारे खुशी के जा उछली, तो मियॉं भिश्ती नीचे आ रहे और सुरलोक सिधारे। इस पर भाई-बहन में मार-पीट हुई। दोनों ख़ूब रोए। उसकी अम्माँ यह शोर सुनकर बिगड़ी और दोनों को ऊपर से दो-दो चाँटे और लगाए। मियाँ नूरे के वक़ील का अंत उनके प्रतिष्ठानुकूल इससे ज्यादा गौरवमय हुआ।

वक़ील ज़मीन पर या ताक पर तो नहीं बैठ सकता। उसकी मर्यादा का विचार तो करना ही होगा, दीवार में खूँटियाँ गाड़ी गई। उन पर लकड़ी का एक पटरा रखा गया। पटरे पर काग़ज़ का क़ालीन बिछाया गया। वक़ील साहब राजा भोज की भाँति सिंहासन पर विराजे। नूरे ने उन्हें पंखा झलना शुरू किया। अदालतों में खस की टट्टियॉँ और बिजली के पंखे रहते हैं, क्या यहाँ मामूली पंखा भी न हो! क़ानून की गर्मी दिमाग पर चढ़ जाएगी कि नहीं? बाँस का पंखा आया और नूरे हवा करने लगे, मालूम नहीं पंखे की हवा से या पंखे की चोट से वक़ील साहब स्वर्गलोक से मृत्युलोक में आ रहे और उनका माटी का चोला माटी में मिल गया! फिर बड़े ज़ोर -शोर से मातम हुआ और वक़ील साहब की अस्थि घूरे पर डाल दी गई।
अब रहा महमूद का सिपाही। उसे चटपट गाँव का पहरा देने का चार्ज मिल गया, लेकिन पुलिस का सिपाही कोई साधारण व्यक्ति तो नहीं, जो अपने पैरों चले वह पालकी पर चलेगा। एक टोकरी आई, उसमें कुछ लाल रंग के फटे-पुराने चिथड़े बिछाए गए जिसमें सिपाही साहब आराम से लेटे। नूरे ने यह टोकरी उठाई और अपने द्वार का चक्कर लगाने लगे। उनके दोनों छोटे भाई सिपाही की तरह ‘छोनेवाले, जागते लहो’ पुकारते चलते हैं, मगर रात तो अँधेरी होनी चाहिए, नूरे को ठोकर लग जाती है। टोकरी उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ती है और मियाँ सिपाही अपनी बन्दूक लिये ज़मीन पर आ जाते हैं और उनकी एक टाँग में विकार आ जाता है।

महमूद को आज ज्ञात हुआ कि वह अच्छा डाक्टर है। उसको ऐसा मरहम मिला गया है जिससे वह टूटी टॉँग को आनन-फानन जोड़ सकता है, केवल गूलर का दूध चाहिए। गूलर का दूध आता है। टाँग जवाब दे देती है। शल्य-क्रिया असफल हुई, तब उसकी दूसरी टाँग भी तोड़ दी जाती है। अब कम-से-कम एक जगह आराम से बैठ तो सकता है। एक टाँग से तो न चल सकता था, न बैठ सकता था। अब वह सिपाही संन्यासी हो गया है। अपनी जगह पर बैठा-बैठा पहरा देता है। कभी-कभी देवता भी बन जाता है। उसके सिर का झालरदार साफ़ा खुरच दिया गया है। अब उसका जितना रूपांतर चाहो, कर सकते हो। कभी-कभी तो उससे बाट का काम भी लिया जाता है।

अब मियाँ हामिद का हाल सुनिए। अमीना उसकी आवाज सुनते ही दौड़ी और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। सहसा उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौंकी।
“यह चिमटा कहॉं था?”
“मैंने मोल लिया है”
“कै पैसे में?”
“तीन पैसे दिए”
अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुआ, कुछ खाया न पिया और लाया क्या, चिमटा!
“सारे मेले में तुझे और कोई चीज न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?”
हामिद ने अपराधी-भाव से कहा—“तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैने इसे लिया”
बुढ़िया का क्रोध तुरन्त स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, ख़ूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ, बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा? इतना ज़ब्त इससे हुआ कैसे? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गदगद हो गया।
और अब एक बड़ी विचित्र बात हुई। हामिद के इस चिमटे से भी विचित्र, बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना, बालिका अमीना बन गई। वह रोने लगी। दामन फैलाकर हामिद को दुआऍं देती जाती थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूँदें गिराती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता!

समाप्त
Eidgah Kahani

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