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Manchanda Bani Majaz Shayari Majaz Ki ShayariMajaz Lucknowi

Majaz Ki Shayari ~ असरार उल हक़ ‘मज़ाज’ की कुछ ग़ज़लें यहाँ हम पेश कर रहे हैं। मुलाहिज़ा फ़रमाएँ –

दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता-ए-जफ़ा पे कहीं
अब करम भी गराँ न हो जाए

तेरे बीमार का ख़ुदा-हाफ़िज़
नज़्र-ए-चारा-गराँ न हो जाए

इश्क़ क्या क्या न आफ़तें ढाए
हुस्न गर मेहरबाँ न हो जाए

मय के आगे ग़मों का कोह-ए-गिराँ
एक पल में धुआँ न हो जाए

फिर ‘मजाज़’ इन दिनों ये ख़तरा है
दिल हलाक-ए-बुताँ न हो जाए

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दर्द की दौलत-ए-बेदार अता हो साक़ी
हम बही-ख़्वाह सभी के हैं भला हो साक़ी

सख़्त-जाँ ही नहीं हम ख़ुद-सर-ओ-ख़ुद्दार भी हैं
नावक-ए-नाज़ ख़ता है तो ख़ता हो साक़ी

सई-ए-तदबीर में मुज़्मर है इक आह-ए-जाँ-सोज़
उस का इनआ’म सज़ा हो कि जज़ा हो साक़ी

सीना-ए-शौक़ में वो ज़ख़्म कि लौ दे उठ्ठे
और भी तेज़ ज़माने की हवा हो साक़ी

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अक़्ल की सतह से कुछ और उभर जाना था,
इश्क़ को मंज़िल-ए-पस्ती से गुज़र जाना था

जल्वे थे हल्क़ा-ए-सर दाम-ए-नज़र से बाहर
मैंने हर जल्वे को पाबंद-ए-नज़र जाना था

हुस्न का ग़म भी हसीं फ़िक्र हसीं दर्द हसीं
उनको हर रंग में हर तौर सँवर जाना था

हुस्न ने शौक़ के हंगामे तो देखे थे बहुत
इश्क़ के दावा-ए-तक़दीस से डर जाना था

ये तो क्या कहिए चला था मैं कहाँ से हमदम
मुझको ये भी न था मालूम किधर जाना था

हुस्न और इश्क़ को दे ताना-ए-बेदाद ‘मजाज़’
तुम को तो सिर्फ़ इसी बात पर मर जाना था

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हुस्न को बे-हिजाब होना था ,
शौक़ को कामयाब होना था

हिज्र में कैफ़-ए-इज़्तिराब न पूछ
ख़ून-ए-दिल भी शराब होना था

तेरे जल्वों में घिर गया आख़िर
ज़र्रे को आफ़्ताब होना था

कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था

रात तारों का टूटना भी ‘मजाज़’
बाइस-ए-इज़्तिराब होना था

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धुआँ सा इक सम्त उठ रहा है शरारे उड़ उड़ के आ रहे हैं,
ये किस की आहें ये किस के नाले तमाम आलम पे छा रहे हैं

नक़ाब रुख़ से उठा चुके हैं खड़े हुए मुस्कुरा रहे हैं
मैं हैरती-ए-अज़ल हूँ अब भी वो ख़ाक हैराँ बना रहे हैं

हवाएँ बे-ख़ुद फ़ज़ाएँ बे-ख़ुद ये अम्बर-अफ़्शाँ घटाएँ बे-ख़ुद
मिज़ा ने छेड़ा है साज़ दिल का वो ज़ेर-ए-लब गुनगुना रहे हैं

ये शौक़ की वारदात-ए-पैहम ये वादा-ए-इल्तिफ़ात-ए-पैहम
कहाँ कहाँ आज़मा चुके हैं कहाँ कहाँ आज़मा रहे हैं

सुराहियाँ नौ-ब-नौ हैं अब भी जमाहियाँ नौ-ब-नौ हैं अब भी
मगर वो पहलू-तही की सौगंद अब भी नज़दीक आ रहे हैं

वो इश्क़ की वहशतों की ज़द में वो ताज की रिफ़अतों के आगे
मगर अभी आज़मा रहे हैं मगर अभी आज़मा रहे हैं

अता किया है ‘मजाज़’ फ़ितरत ने वो मज़ाक़-ए-लतीफ़ हम को
कि आलम-ए-आब-ओ-गिल से हट कर इक और आलम बना रहे हैं

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दामन-ए-दिल पे नहीं बारिश-ए-इल्हाम अभी,
इश्क़ ना-पुख़्ता अभी जज़्ब-ए-दरूँ ख़ाम अभी

ख़ुद ही झुकता हूँ कि दावा-ए-जुनूँ क्या कीजिए
कुछ गवारा भी है ये क़ैद-ए-दर-ओ-बाम अभी

ये जवानी तो अभी माइल-ए-पैकार नहीं
ये जवानी तो है रुस्वा-ए-मय-ओ-जाम अभी

वाइज़ ओ शैख़ ने सर जोड़ के बदनाम किया
वर्ना बदनाम न होती मय-ए-गुलफ़ाम अभी

मैं ब-सद-ब-सद-फ़ख़्रिया ज़ुहहाद से कहता हूँ ‘मजाज़’
मुझको हासिल, शर्फ़-ए-बैअत-ए-ख़य्याम अभी

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बस इस तक़्सीर पर अपने मुक़द्दर में है मर जाना,
तबस्सुम को तबस्सुम क्यूँ नज़र को क्यूँ नज़र जाना

ख़िरद वालों से हुस्न ओ इश्क़ की तन्क़ीद क्या होगी
न अफ़्सून-ए-निगह समझा न अंदाज़-ए-नज़र जाना

मय-ए-गुलफ़ाम भी है साज़-ए-इशरत भी है साक़ी भी
बहुत मुश्किल है आशोब-ए-हक़ीक़त से गुज़र जाना

ग़म-ए-दौराँ में गुज़री जिस क़दर गुज़री जहाँ गुज़री
और इस पर लुत्फ़ ये है ज़िंदगी को मुख़्तसर जाना

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बर्बाद-ए-तमन्ना पे इताब और ज़ियादा,
हाँ मेरी मुहब्बत का जवाब और ज़ियादा

रोएँ न अभी अहल-ए-नज़र हाल पे मेरे
होना है अभी मुझको ख़राब और ज़ियादा

आवारा ओ मजनूँ ही पे मौक़ूफ़ नहीं कुछ
मिलने हैं अभी मुझको ख़िताब और ज़ियादा

उट्ठेंगे अभी और भी तूफ़ाँ मिरे दिल से
देखूँगा अभी इश्क़ के ख़्वाब और ज़ियादा

टपकेगा लहू और मिरे दीदा-ए-तर से
धड़केगा दिल-ए-ख़ाना-ख़राब और ज़ियादा

होगी मिरी बातों से उन्हें और भी हैरत
आएगा उन्हें मुझ से हिजाब और ज़ियादा

उसे मुतरिब-ए-बेबाक कोई और भी नग़्मा
ऐ साक़ी-ए-फ़य्याज़ शराब और ज़ियादा

Majaz Ki Shayari

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