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Zohra Sehgal Biography

Zohra Sehgal Biography आज बात एक जानी पहचानी शख़्सियत ज़ोहरा सहगल की। ज़ोहरा सहगल जिन्हें हमने कई फ़िल्मों और TV सीरियल्स में देखा है हम उनकी ज़िंदादिली और अदाकारी से तो वाक़िफ़ हैं लेकिन उनके करियर की कई बातों को अब भी नहीं जानते। उत्तरप्रदेश के सहारनपुर में 27 अप्रैल 1912 को जन्मी ज़ोहरा बेगम मुमताज़ उल्लाह ख़ान, सात भाई बहनों में तीसरी थीं। बचपन से ही प्रवृत्ति एक बाग़ी की थी। उन्हें आम लड़कियों की तरह घर में रहना या अंदर खेलना पसंद नहीं था बल्कि वो लड़कों के साथ बाहर खेलने, पेड़ पर चढ़ने जैसे काम बख़ूबी किया करती थीं। यही आज़ाद दिल ज़िंदगी भर उनके पास रहा।

माँ का निधन तभी हो गया था जब ज़ोहरा छोटी उम्र की थीं। माँ की ख्वाहिश थी कि उनकी बेटियाँ लाहौर के क्वींज़ मेरी कॉलेज में पढ़ें। माँ की ये इच्छा तो पूरी हुई यहाँ एक अलग तरह की परम्परा से उनका सामना हुआ। यहाँ लड़कियों को परदे में रखा जाता था कभी कभार कोई गेस्ट लेक्चर के लिए ही किसी पुरुष का यहाँ आना होता था और वो भी सीधे लेक्चर नहीं दे सकता था बल्कि लड़कियाँ परदे के दूसरी तरफ़ बैठतीं और बीच में पर्दा रखकर ही लेक्चर पूरा होता था। ज़ोहरा के मन की ख्वाहिश अलग थी उन्हें अलग-अलग जगह देखने, यात्रा करने का शौक़ था। उन्होंने भारत की विभिन्न जगहों की यात्रा तो की ही साथ ही एशिया, यूरोप की यात्रा भी अपने अंकल के साथ गाड़ी में पूरी की और इस यात्रा के अंत में उन्होंने अपनी आंटी के कहने पर जर्मनी के मेरी विगमन के बैलेट स्कूल में दाख़िला ले लिया।
Zohra Sehgal Young
यहाँ दाख़िला लेना आसान नहीं था लेकिन उन्हें पहली ही बार में दाख़िला मिल गया जबकि इससे पहले ज़ोहरा ने किसी तरह का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया था। वो इस इन्स्टिटूट में दाख़िला लेने वाली पहली भारतीय हैं। तीन साल वहीं रहकर वो आधुनिक नृत्य की शिक्षा लेती रहीं। उनकी ज़िंदगी में एक अलग मोड़ आया जब उन्होंने उदय शंकर का शिव पार्वती बैलेट देखा। इस तरह का कुछ अनोखा काम वो भी करना चाहती थीं।वो उदय शंकर के ग्रूप में शामिल हो गयीं। उन्होंने उनके साथ 1935 से 1940 तक काम किया। इस दौरान वो जापान, मिस्र, यूरोप और संयुक्त राज्य की यात्रा कर आयीं। वो इस ग्रूप में मुख्य जोड़ी तक पहुँची। बाद में ज़ोहरा उदय शंकर के ट्रूप में ही डान्स टीचर बन गयीं।

ये वही जगह थी जहाँ ज़ोहरा बेगम की मुलाक़ात हुई युवा वैज्ञानिक, पेंटर और डान्सर कामेश्वर सहगल से। वो ज़ोहरा से आठ साल छोटे थे। एक बार दोनों ने ठान लिया फिर परिवार भी उनकी इच्छा का मान रखे बग़ैर नहीं रह सके। आख़िर अगस्त 1942 को दोनों शादी के बंधन में बंध गए और ज़ोहरा बन गयीं, ज़ोहरा सहगल। शादी के बाद भी दोनों उदय शंकर के ग्रूप का हिस्सा बने रहे। इसके बंद होने के बाद दोनों ने लाहौर जाकर अपना ‘जोरेश डान्स इंस्टिट्यूट’ खोला।

बँटवारे के बाद वो पति के साथ बॉम्बे शिफ़्ट हो गयीं। यहाँ वो पृथ्वी थिएटर ग्रूप के साथ जुड़ गयीं और 14 साल तक उनके साथ बतौर एक्टर काम किया। उनकी मासिक तनख़्वाह 400 रुपए थी। इसके साथ ही वो IPTA (इंडियन पीपल्ज़ थीयटर असोसीएशन) की सदस्य भी बन गयीं। उन्होंने इप्टा की पहली फ़िल्म धरती के लाल में अभिनय भी किया। ज़ोहरा सहगल IPTA की दूसरी फ़िल्म नीचा नगर का भी हिस्सा रहीं। फ़िल्मी दुनिया की बात की जाए तो ज़ोहरा सहगल ने तक़रीबन हर दशक के मशहूर अभिनेताओं के साथ काम किया।वो कुछ फ़िल्मों से बतौर कोरियोग्राफ़र जुड़ीं इनमें देव आनंद की फ़िल्म बाज़ी और राज कपूर की फ़िल्म अनाड़ी का नाम शामिल है।

1959 में पति की मृत्यु के बाद वो दिल्ली आ गयीं। यहाँ 1960 में कुछ समय पहले शुरू हुए नाट्य अकादमी- दिल्ली नाट्य संघ की निर्देशक बनीं। 3 सालों तक उस पद पर बनी रहीं। उन्होंने 1974 में राष्ट्रीय लोक नृत्य के ग्रुप की स्थापना भी की। 1962 में एक ड्रामा छात्रवृत्ति मिलने के कारण वो लंदन चली गयीं। यहाँ भी वो अभिनय और नृत्य से जुड़ी रहीं। अपने जीवन में उन्होंने कई विदेशी TV शो और फ़िल्मों में काम किया। 90 के दशक में वो भारत आ गयीं और यहाँ फ़िल्मों में बुजुर्ग किरदार करने लगीं।

उनके किरदार आम दादी नानी वाले नहीं होते बल्कि उनके अभिनय को बख़ूबी ओश करने वाले होते। भले ही उनके किरदार छोटे होते लेकिन वो जब परदे पर नज़र आतीं वो सीन यादगार बन जाता। कुछ फ़िल्मों का नाम लें तो हम दिल दे चुके सनम, दिल से, वीर ज़ारा, साँवरिया, चीनी कम और चलो इश्क़ लड़ाएँ जिसमें वो ऐसी दादी बनी थीं जो बाइक चलाती हैं और विलेन से लड़ाई भी करती हैं।

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ज़ोहरा सहगल को कई सम्मान मिले हैं मुख्य की बात की जाए तो संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार (1963), पद्मश्री (1998), कालिदास सम्मान (2001), पद्म भूषण (2002), संगीत नाट्य अकादमी फ़ैलोशिप(2004) और पद्म विभूषण (2010)। ज़ोहरा सहगल की ज़िंदादिली का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब उनके 100 वें जन्मदिन पर वो कैमरे के सामने आयी तो उन्होंने पूछा कि “मेरी लिपस्टिक तो ठीक ही न?”। अभिनय के साथ- साथ ज़ोहरा सहगल कविता पाठ भी किया करती थीं और उनकी कई कविताएँ लोगों ने काफ़ी पसंद की।

उनके दो बच्चे हैं बेटी किरण सहगल, ओडीसी नृत्यांगना हैं और बेटे पवन सहगल WHO के साथ काम करते हैं। बेटी किरण ने 2012 में ज़ोहरा सहगल की जीवनी लिखी जिसका नाम है, “ज़ोहरा सहगल: फ़ैटी” नाम से। 1 जुलाई 2014 को 102 साल की उम्र में ज़ोहरा सहगल ने इस दुनिया को अलविदा कहा। उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी को इसी तरह से जिया जैसे हर पल में ज़िंदगी हो।

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