मौजूदा दौर में ग़ालिब सिर्फ़ स्टेटस सिम्बल की तरह है: पराग अग्रवाल

Ghalib Ke Baare Mein Parag Agrawal Ghalib Aur Zauq ki Ghazalen Baazeecha E Atfal Ghalib Aaina Kyun Na Doon Aah Ko Chahiye Ik

Ghalib Ke Baare Mein Parag Agrawal

“हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और” ~ ग़ालिब

उर्दू शा’इरी में यूँ तो मिर्ज़ा ग़ालिब से बड़ा कोई नाम नहीं है लेकिन आजकल के दौर में देखें तो ग़ालिब को समझने वाले कम और उनका नाम बतौर फैशन इस्तेमाल करने वाले ज़्यादा हैं. आज ग़ालिब की 220वीं सालगिरह है, इस मौक़े पर हमने एनीबुक पब्लिकेशन के निदेशक और शा’इर पराग अग्रवाल से बात की. पराग अग्रवाल हमसे बात करते हुए कहते हैं कि आजकल के दौर में ग़ालिब को सिर्फ़ स्टेटस सिंबल की तरह से ही लिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि साहित्य में ग़ालिब एक स्तम्भ हैं लेकिन आजकल लोगों ने ग़ालिब को भुला दिया है.

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ग़ालिब जितने बड़े शा’इर थे उतने ही बड़े फ़िलोसफ़र भी थे: ज़ीशान मीर

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Ghalib Ke Baare Mein ~ मशहूर शा’इर मिर्ज़ा ग़ालिब का आज 220वाँ जन्मदिन है. उर्दू और फ़ारसी के मशहूर शा’इर मिर्ज़ा असद उल्लाह बेग़ ख़ान का जन्म 27 दिसम्बर, 1797 को हुआ था. उन्होंने कुछ वक़्त “असद” तख़ल्लुस में शा’इरी की लेकिन बाद में उन्होंने “ग़ालिब” तख़ल्लुस का इस्तेमाल किया. आज के दौर में भी अगर देखा जाए तो उनसे ज़्यादा मक़बूल कोई दूसरा शा’इर नहीं है. अगर किसी का शा’इरी से थोड़ा भी राबता है तो उसके यहाँ ग़ालिब का दीवान मिलना लगभग तय है.

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