Breakup shayari ~
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही या’नी वा’दा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ान मोमिन (Momin Khan Momin)
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कभी हम में तुम में भी चाह थी कभी हमसे तुमसे भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आश्ना तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ान मोमिन
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जिसे आप गिनते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बा-वफ़ा
मैं वही हूँ ‘मोमिन’-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ान मोमिन
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मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी या-रब कई दिए होते
ग़ालिब (Mirza Ghalib)
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आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती
ग़ालिब
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है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्ना क्या बात कर नहीं आती
ग़ालिब
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वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
दाग़ देहलवी (Daagh Dehlvi)
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उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नहीं
दाग़ देहलवी
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तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था
न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था
दाग़ देहलवी
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ज़माने के क्या क्या सितम देखते हैं
हमीं जानते हैं जो हम देखते हैं
दाग़ देहलवी
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
अहमद फ़राज़ (Ahmed Faraz)
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किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
अहमद फ़राज़
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दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझसे बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
अहमद फ़राज़
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हुआ है तुझसे बिछड़ने के बा’द ये मा’लूम
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी
अहमद फ़राज़
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इससे पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
अहमद फ़राज़
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आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर
जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे
अहमद फ़राज़
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
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उम्र भर कौन निभाता है तअल्लुक़ इतना
ऐ मिरी जान के दुश्मन तुझे अल्लाह रक्खे
अहमद फ़राज़
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उसको जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ
अहमद फ़राज़
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तू मुहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
अहमद फ़राज़
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एक सफ़र वो है जिसमें
पाँव नहीं दिल थकता है
अहमद फ़राज़
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ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या
जौन एलिया (Jaun Elia)
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जो गुज़ारी न जा सकी हमसे
हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
जौन एलिया
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क्या सितम है कि अब तिरी सूरत
ग़ौर करने पे याद आती है
जौन एलिया
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उस गली ने ये सुन के सब्र किया
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं
जौन एलिया
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क्या कहा इश्क़ जावेदानी है!
आख़िरी बार मिल रही हो क्या
जौन एलिया
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नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम
जौन एलिया
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हम कहाँ और तुम कहाँ जानाँ
हैं कई हिज्र दरमियाँ जानाँ
जौन एलिया
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बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका
हम जिसपे मर मिटे वो हमारा न हो सका
शकेब जलाली (Shakeb Jalali)
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सबक़ ऐसा पढ़ा दिया तूने
दिल से सब कुछ भुला दिया तूने
दाग़ देहलवी
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हमारी तरफ़ अब वो कम देखते हैं
वो नज़रें नहीं जिन को हम देखते हैं
दाग़ देहलवी
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चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
हसरत मोहानी (Hasrat Mohani)
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नहीं आती तो याद उनकी महीनों तक नहीं आती
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं
हसरत मोहानी
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ऐसे बिगड़े कि फिर जफ़ा भी न की
दुश्मनी का भी हक़ अदा न हुआ
हसरत मोहानी
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और तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है
इक तिरे दर्द को पहलू में छुपा रक्खा है
हसरत मोहानी
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तेरी महफ़िल से उठाता ग़ैर मुझ को क्या मजाल
देखता था मैं कि तू ने भी इशारा कर दिया
हसरत मोहानी
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वफ़ा तुझसे ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
हसरत मोहानी
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मालूम सब है पूछते हो फिर भी मुद्दआ’
अब तुम से दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम
हसरत मोहानी
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इश्क़ इक ‘मीर’ भारी पत्थर है
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है
मीर तक़ी मीर (Meer Taqi Meer)
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बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता
मीर तक़ी मीर
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ज़ख़्म झेले दाग़ भी खाए बहुत
दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत
मीर तक़ी मीर
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तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (Faiz Ahmed Faiz)
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”आप की याद आती रही रात भर”
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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दिल सरापा दर्द था वो इब्तिदा-ए-इश्क़ थी
इंतिहा ये है कि ‘फ़ानी’ दर्द अब दिल हो गया
फ़ानी बदायूँनी (Faani Budayuni)
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आबादी भी देखी है वीराने भी देखे हैं
जो उजड़े और फिर न बसे दिल वो निराली बस्ती है
फ़ानी बदायूँनी
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उसको भूले तो हुए हो ‘फ़ानी’
क्या करोगे वो अगर याद आया
फ़ानी बदायूँनी
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फिर किसी की याद ने तड़पा दिया
फिर कलेजा थाम कर हम रह गए
फ़ानी बदायूँनी
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वो नज़र कामयाब हो के रही
दिल की बस्ती ख़राब हो के रही
फ़ानी बदायूँनी
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दिल-ए-मरहूम को ख़ुदा बख़्शे
एक ही ग़म-गुसार था न रहा
फ़ानी बदायूँनी
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वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं
मैं क्या कर रहा हूँ वो क्या कर रहे हैं
बहज़ाद लखनवी (Behzad Lucknowi)
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ऐ दिल की ख़लिश चल यूँही सही चलता तो हूँ उनकी महफ़िल में
उस वक़्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफ़िल आ जाए
बहज़ाद लखनवी
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गो मुद्दतें हुई हैं किसी से जुदा हुए
लेकिन ये दिल की आग अभी तक बुझी नहीं
बहज़ाद लखनवी
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ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम ‘अमीर’
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
अमीर मीनाई (Ameer Minai)
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सारी दुनिया के हैं वो मेरे सिवा
मैंने दुनिया छोड़ दी जिनके लिए
अमीर मीनाई
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तुमने किया न याद कभी भूल कर हमें
हमने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया
बहादुर शाह ज़फ़र (Bahadur Shah Zafar)
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बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
बहादुर शाह ज़फ़र
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शायद मुझे निकाल के पछता रहे हों आप
महफ़िल में इस ख़याल से फिर आ गया हूँ मैं
अब्दुल हमीद अदम (Abdul Hamid Adam)
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कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता
अख़्तर शीरानी (Akhtar Shirani)
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मुद्दतें हो गईं बिछड़े हुए तुमसे लेकिन
आज तक दिल से मिरे याद तुम्हारी न गई
अख़्तर शीरानी
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मिट चले मेरी उमीदों की तरह हर्फ़ मगर
आज तक तेरे ख़तों से तिरी ख़ुशबू न गई
अख़्तर शीरानी
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वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
साहिर लुधियानवी (Sahir Ludhianvi)
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हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उनको
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
साहिर लुधियानवी
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किस दर्जा दिल-शिकन थे मुहब्बत के हादसे
हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमाँ न कर सके
साहिर लुधियानवी
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हम जुर्म-ए-मुहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हा
जो तुझसे हुई हो वो ख़ता साथ लिए जा
साहिर लुधियानवी
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तुझे भुला देंगे अपने दिल से ये फ़ैसला तो किया है लेकिन
न दिल को मालूम है न हमको जिएँगे कैसे तुझे भुला के
साहिर लुधियानवी
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एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी (Firaq Gorakhpuri)
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हमसे क्या हो सका मुहब्बत में
ख़ैर तुमने तो बेवफ़ाई की
फ़िराक़ गोरखपुरी
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मैं हूँ दिल है तन्हाई है
तुम भी होते अच्छा होता
फ़िराक़ गोरखपुरी
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दिल से ख़याल-ए-दोस्त भुलाया न जाएगा
सीने में दाग़ है कि मिटाया न जाएगा
अल्ताफ़ हुसैन हाली (Altaf Hussain Hali)
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क्यूँ बढ़ाते हो इख़्तिलात बहुत
हम को ताक़त नहीं जुदाई की
अल्ताफ़ हुसैन हाली
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रंज और रंज भी तन्हाई का
वक़्त पहुँचा मिरी रुस्वाई का
अल्ताफ़ हुसैन हाली
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ऐ मुहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया
शकील बदायूँनी
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जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मुहब्बत का ‘शकील’
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया
शकील बदायूँनी (Shakeel Budayuni)
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मुझे तो क़ैद-ए-मुहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन
किसी ने मुझको गिरफ़्तार कर के छोड़ दिया
शकील बदायूँनी
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मुश्किल था कुछ तो इश्क़ की बाज़ी को जीतना
कुछ जीतने के ख़ौफ़ से हारे चले गए
शकील बदायूँनी
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हमें जिनकी दीद की आस थी वो मिले तो राह में यूँ मिले
मैं नज़र उठा के तड़प गया वो नज़र उठा के गुज़र गए
शकील बदायूँनी
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कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
बशीर बद्र (Bashir Badr)
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हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं
दिल हमेशा उदास रहता है
बशीर बद्र
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अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझको चाहेगा
बशीर बद्र
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एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे
दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने का
गुलज़ार (Gulzar)
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याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा
कल रस्ते में उसने हमको पहचाना तो होगा
जावेद अख़्तर (Javed Akhtar)
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मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
जावेद अख़्तर
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भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हमसे पूछिए
ख़ुमार बाराबंकवी
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रात बाक़ी थी जब वो बिछड़े थे
कट गई उम्र रात बाक़ी है
ख़ुमार बाराबंकवी
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हम उसे याद बहुत आएँगे
जब उसे भी कोई ठुकराएगा
क़तील शिफ़ाई
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वो तेरी भी तो पहली मुहब्बत न थी ‘क़तील’
फिर क्या हुआ अगर वो भी हरजाई बन गया
क़तील शिफ़ाई
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आवाज़ दे के देख लो शायद वो मिल ही जाए
वर्ना ये उम्र भर का सफ़र राएगाँ तो है
मुनीर नियाज़ी (Munir Niazi)
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मुद्दत के ब’अद आज उसे देख कर ‘मुनीर’
इक बार दिल तो धड़का मगर फिर सँभल गया
मुनीर नियाज़ी
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ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं
मुनीर नियाज़ी
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कुछ दिन के बा’द उस से जुदा हो गए ‘मुनीर’
उस बेवफ़ा से अपनी तबीअत नहीं मिली
मुनीर नियाज़ी
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