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Chuk Chuk Railgadiननकू के क़िस्से: छुक- छुक रेलगाड़ी

Chuk Chuk Railgadi ~ ननकू और माँ ट्रेन में सवार थे और ट्रेन सरपट दौड़ी जा रही थी। अब तक तो ननकू ने सिर्फ़ खिलौने में ही इंजन देखा था लेकिन आज वो सच में रेलगाड़ी में बैठा नानी के घर जा रहा था। ननकू और माँ को ट्रेन में साइड लोअर सीट मिली थी इसलिए माँ ने दोनों सीट को एक साथ कर लिया था अब ननकू माँ के पास आराम से बैठा था। चलती ट्रेन से ननकू को झूले जैसा लग रहा था और उसे मज़ा भी आ रहा था। खिड़की से सारे पेड़- पौधे, जानवर सब चलते दिख रहे थे, ननकू आँखें फाड़-फाड़कर उन्हें देख रहा था। माँ स्टेशन वाली उन्हीं बुज़ुर्ग महिला से बातें कर रही थीं, जिसे पापा ने चढ़ने में मदद की थी।

अचानक ट्रेन अलग सी आवाज़ करने लगी..माँ को पता चल गया कि पुल आने वाला है..माँ ने ननकू के पास खिसक गयीं और पुल आ गया। ननकू को तो कुछ समझ ही नहीं आया…नीचे ढेर सारे पानी वाली नदी बह रही थी और ऊपर से उनकी रेलगाड़ी जा रही थी। ननकू की तो नज़रें बस खिड़की के बाहर थमी थी। जब पुल पार हो गया तो ननकू माँ की ओर देखने लगा..माँ को समझ आ गया कि ननकू अब ढेर सारे सवाल करने वाला है।

“हम नदी के ऊपर से जा रहे थे..उसके ऊपर पुल बना हुआ है उसमें से ट्रेन निकली..तभी ऐसी आवाज़ आ रही थी..समझे?”- माँ ने ननकू के मन के सवालों को शांत करने के लिए ख़ुद ही जवाब दे दिया

“माँ..वहाँ नदी में कितने सारे लोग बैठे थे और वो छोटी-छोटी गाड़ी भी थी”- ननकू ने आँखें बड़ी-बड़ी करके कहा

“गाड़ी नहीं उसको नाव कहते हैं..नाव पानी में चलती है। जो पुल पर रेलगाड़ी से नहीं आते वो नाव में बैठकर नदी पार कर लेते हैं…और एक पुल कार और स्कूटी जैसी गाड़ी के लिए भी होता है…रेलगाड़ी का पुल तो देख लिया अब गाड़ी वाला पुल भी देखना..और नानी के घर पहुँचेंगे तो नाव में भी बैठेंगे..”

माँ की बात सुनकर ननकू को बहुत आश्चर्य हुआ..वो तो कभी नाव में बैठा ही नहीं..फिर उसने सोचा कि नाव में सीट लगी होती है क्या? वो माँ से पूछता उसके पहले बच्चों के हल्ले से वो दूसरे कंपार्टमेंट की ओर देखने लगा, जहाँ तीन-चार बच्चे मिलकर ऊपर की सीट में जाने वाली लोहे के रॉड में लटक-लटक कर झूला झूल रहे थे। ननकू को तो ये देखकर मज़ा आने लगा तभी एक बच्चा जिसे बहुत देर से मौक़ा ही नहीं मिल रहा था वो ननकू के पास वाले रॉड को पकड़कर पैर मोड़कर झूलने लगा। ननकू ने माँ की ओर देखा..माँ मुस्कुरा रही थी। वो बच्चा ननकू को देखकर और झूलने लगा। ननकू ने इस बार माँ को देखा तो माँ ने उसे भी खेलने के लिए हाँ कह दिया। ननकू भी दूसरा रॉड पकड़कर झूलने लगा। एक तो हिलती ट्रेन का झूला चल ही रहा था उस पर रॉड पकड़कर झूलने में ननकू को बड़ा मज़ा आया।

थोड़ी देर में ननकू और माँ ने पूरी और आलू की सब्ज़ी खायी। माँ आसपास के यात्रियों से बात करने लगीं और ननकू अपनी डायरी निकालकर कविता लिखने लगा:

“प्यारी-प्यारी रेलगाड़ी, नानी के घर ले जाती है
चलती है ऐसे हिलहिल के, झूला मुझे झुलाती है
माँ पूरी सब्ज़ी मुझको, भर-भर पेट खिलाती है
रेलगाड़ी ऐसे चलती, मेरे मन को भाती है”

(रेलगाड़ी का सफ़र ऐसा ही होता है..थोड़ा बाहर देखो..थोड़ा खेलो और थोड़ा खाओ..उसके बाद ननकू के जैसे कविता लिखो या सीट में लेटकर कॉमिक्स पढ़ो । पढ़ते-पढ़ते कई बार सीट पर ही सो भी जाते हैं, जैसे ननकू सो गया है कॉमिक्स पढ़ते-पढ़ते..लेकिन रेलगाड़ी नहीं सोती वो तो चली जा रही है नानी के घर..) Chuk Chuk Railgadi

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