Ghalib Ke Baare Mein Parag Agrawal
“हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और” ~ ग़ालिब
उर्दू शा’इरी में यूँ तो मिर्ज़ा ग़ालिब से बड़ा कोई नाम नहीं है लेकिन आजकल के दौर में देखें तो ग़ालिब को समझने वाले कम और उनका नाम बतौर फैशन इस्तेमाल करने वाले ज़्यादा हैं. आज ग़ालिब की 220वीं सालगिरह है, इस मौक़े पर हमने एनीबुक पब्लिकेशन के निदेशक और शा’इर पराग अग्रवाल से बात की. पराग अग्रवाल हमसे बात करते हुए कहते हैं कि आजकल के दौर में ग़ालिब को सिर्फ़ स्टेटस सिंबल की तरह से ही लिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि साहित्य में ग़ालिब एक स्तम्भ हैं लेकिन आजकल लोगों ने ग़ालिब को भुला दिया है.
पराग कहते हैं,”ग़ालिब का सबसे मज़बूत काम फ़ारसी में है लेकिन उन्हें वहाँ उस क़िस्म कि कामयाबी नहीं मिल सकी जिसके वो हक़दार थे.. इसीलिए वो उर्दू में शा’इरी करने लगे.” पराग के मुताबिक़ यही वो वजह है जिसकी वजह से ग़ालिब की ज़बान काम्प्लेक्स है क्यूंकि उस वक़्त ये नस्र की भाषा तो थी नहीं”
ग़ालिब की एक ग़ज़ल के तीन अश’आर
हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते
मरते हैं वले उन की तमन्ना नहीं करते
दर-पर्दा उन्हें ग़ैर से है रब्त-ए-निहानी
ज़ाहिर का ये पर्दा है कि पर्दा नहीं करते
ये बाइस-ए-नौमीदी-ए-अर्बाब-ए-हवस है
‘ग़ालिब’ को बुरा कहते हैं अच्छा नहीं करते
गूगल ने भी मनाया ग़ालिब का जन्मदिन
मिर्ज़ा ग़ालिब के जन्मदिन के मौक़े पर गूगल ने अपना थीम डूडल बदल दिया है और उनके सम्मान में गूगल ने इसे ग़ालिब की इमेज का कर दिया है. ~ Ghalib Ke Baare Mein Parag Agrawal