घनी कहानी, छोटी शाखा: आचार्य चतुरसेन की कहानी ‘न मालूम सी एक ख़ता’ का पहला भाग

Acharya Chatursen Ki Kahani

Acharya Chatursen Ki Kahani न मालूम सी एक ख़ता- आचार्य चतुरसेन भाग-1 Acharya Chatursen Ki Kahani:  गर्मी के दिन थे। बादशाह ने उसी फागुन में सलीमा से नई शादी की थी। सल्तनत के झंझटों से दूर रहकर नई दुल्हन के साथ प्रेम और आनंद की कलोल करने वे सलीमा को लेकर कश्मीर के दौलतख़ाने में … Read more

मैक्सिम गोर्की की कहानी ‘कोलुशा’ का पहला भाग

Maxim Gorky Hindi Kahani Maxim Gorky Hindi Kolusha

Maxim Gorky Hindi Kahani : क़ब्रिस्तान का वह कोना, जहाँ भिखारी दफ़नाये जाते हैं। पत्तों से छितरे, बारिश से बहे और आँधियों से जर्जर क़ब्रों के ढूहों के बीच, दो मरियल-से बर्च वृक्षों के जालीदार साये में, जिघम के फटे-पुराने कपड़े पहने और सिर पर काली शॉल डाले एक स्त्री एक क़ब्र के पास बैठी थी।

सफ़ेद पड़ चले बालों की एक लट उसके मुरझाये हुए गाल के ऊपर झूल रही थी, उसके महीन होंठ कसकर भिचे थे और उनके छोर उसके मुँह पर उदास रेखाएँ खींचते नीचे की ओर झुके थे, और उसकी आँखों की पलकों में भी एक ऐसा झुकाव मौजूद था जो अधिक रोने और काटे न कटने वाली लम्बी रातों में जागने से पैदा हो जाता है।

वह बिना हिले-डुले बैठी थी – उस समय, जबकि मैं कुछ दूर खड़ा उसे देख रहा था, न ही उसने उस समय कुछ हरकत की जब मैं और अधिक निकट खिसक आया। उसने केवल अपनी बड़ी-बड़ी चमकविहीन आँखों को उठाकर मेरी आँखों में देखा और फिर उन्हें नीचे गिरा लिया। उत्सुकता, परेशानी या अन्य कोई भाव, जोकि मुझे निकट पहुँचता देख उसमें पैदा हो सकता था, नाममात्र के लिए भी उसने प्रकट नहीं किया।

मैंने अभिवादन में एकाध शब्द कहा और पूछा कि यहाँ कौन सोया है।
‘मेरा बेटा,” उसने भावशून्य उदासीनता से जवाब दिया।
“बड़ा था?”
“बारह बरस का।”
“कब मरा?”
“चार साल पहले।”

उसने एक गहरी साँस ली और बाहर छिटक आयी लट को फिर बालों के नीचे खोंस लिया। दिन गर्म था। सूरज बेरहमी के साथ मुर्दों के इस नगर पर आग बरसा रहा था। क़ब्रों पर उगी इक्की-दुक्की घास तपन और धूल से पीली पड़ गयी थी। और धूल-धूसरित रूखे-सूखे पेड़, जो सलीबों के बीच उदास भाव से खड़े थे, इस हद तक निश्चल थे मानो वे भी मुर्दा बन गये हों।

“वह कैसे मरा?” लड़के की क़ब्र की ओर गरदन हिलाते हुए मैंने पूछा।

“घोड़ों से कुचलकर,” उसने संक्षेप में जवाब दिया और अपना झुर्रियाँ-पड़ा हाथ फैलाकर लड़के की कब्र सहलाने लगी।

“यह दुर्घटना कैसे घटी?”

मैं जानता था कि इस तरह खोद-बीन करना शालीनता के ख़िलाफ़ है, लेकिन इस स्त्री की निस्संगता ने गहरे कौतुक और चिढ़ का भाव मेरे हृदय में जगा दिया था। कुछ ऐसी समझ में न आने वाली सनक ने मुझे घेरा कि मैं उसकी आँखों में आँसू देखने के लिए ललक उठा। उसकी उदासीनता में कुछ था, जो अप्राकृतिक था, और साथ ही उसमें बनावट का भी कोई चिह्न नहीं दिखायी देता था।

मेरा सवाल सुनकर उसने एक बार फिर अपनी आँखें उठाकर मेरी आँखों में देखा। और जब वह सिर से पाँव तक मुझे अपनी नज़रों से परख चुकी तो उसने एक हल्की-सी साँस ली और अटूट उदासी में डूबी आवाज़ में अपनी कहानी सुनानी शुरू की।

“घटना इस प्रकार घटी। उसका पिता ग़बन के अपराध में डेढ़ साल के लिए जेल में बन्द हो गया। इस काल में हमने अपनी सारी जमा पूँजी खा डाली। यूँ हमारी वह जमा पूँजी कुछ अधिक थी भी नहीं। अपने आदमी के जेल से छूटने से पहले ईंधन की जगह मैं हार्स-रेडिश के डण्ठल जलाती थी। जान-पहचान के एक माली ने ख़राब हुए हार्स-रेडिश का गाड़ीभर बोझ मेरे घर भिजवा दिया था। मैंने उसे सुखा लिया और सूखी गोबर-लीद के साथ मिलाकर उसे जलाने लगी। उससे भयानक धुआँ निकलता और खाने का ज़ायक़ा ख़राब हो जाता। कोलुशा स्कूल जाता था। वह बहुत ही तेज़ और किफायतशार लड़का था। जब वह स्कूल से घर लौटता तो हमेशा एकाध कुन्दा या लकड़ियाँ – जो रास्ते में पड़ी मिलतीं – उठा लाता। वसन्त के दिन थे तब। बर्फ़ पिघल रही थी। और कोलुशा के पास कपड़े के जूतों के सिवा पाँवों में पहनने के लिए और कुछ नहीं था। जब वह उन्हें उतारता तो उसके पाँव लाल रंग की भाँति लाल निकलते। तभी उसके पिता को उन्होंने जेल से छोड़ा और गाड़ी में बैठाकर उसे घर लाये।

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घनी कहानी, छोटी शाखा: रवीन्द्रनाथ टैगोर की ‘अनाथ’ का अंतिम भाग

आपने अब तक पढ़ा कि शशिकला अपने पति से बहुत स्नेह करती है. उसकी कम उम्र में जयगोपाल बाबू से शादी हुई थी और बाल-बच्चे भी हो गए थे लेकिन कुछ समय से जयगोपाल बाबु पैसे कमाने की जुगत में बाहर चले गए थे और तब से ही उसे जुदाई सताने लगी थी. शशिकला लम्बे … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: रवीन्द्रनाथ टैगोर की ‘अनाथ’ का तीसरा भाग

आपने अब तक पढ़ा कि शशिकला अपने पति से बहुत स्नेह करती है. उसकी कम उम्र में जयगोपाल बाबू से शादी हुई थी और बाल-बच्चे भी हो गए थे लेकिन कुछ समय से जयगोपाल बाबु पैसे कमाने की जुगत में बाहर चले गए थे और तब से ही उसे जुदाई सताने लगी थी. शशिकला लम्बे … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: रवीन्द्रनाथ टैगोर की ‘अनाथ’ का दूसरा भाग

पड़ोसन के मुँह से किसी और स्त्री के पति की बुराई भी शशिकला को अच्छी न लगी. वो इस बात को समझने में नाकाम थी कि एक स्त्री पुरुष के बारे में ऐसी राय कैसे रख सकती है. कम उम्र में जयगोपाल बाबू से शशिकला की शादी हुई थी और बाल-बच्चे भी हो गए थे लेकिन कुछ समय से जयगोपाल बाबु पैसे कमाने की जुगत में बाहर चले गए थे और तब से ही उसे जुदाई सताने लगी थी. शशिकला लम्बे समय तक अपने माता-पिता की एकलौती बेटी रही लेकिन शशिकला की बुज़ुर्ग माँ ने जब बेटे को जन्म दिया तो शशिकला और पति जयगोपाल को ये ख़ुशी जैसा न लगे. इसके बाद ही जयगोपाल पैसे कमाने के लिए आसाम के बाग़ीचों में नौकरी करने चल पड़ा. कुछ ही दिनों में शशिकला की माँ का स्वर्गवास हो गया और बच्चे के पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी शशिकला पर आ गयी. धीरे-धीरे शशिकला बच्चे से घुल गयी, अब आगे…

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घनी कहानी, छोटी शाखा: रवीन्द्रनाथ टैगोर की ‘अनाथ’ का प्रथम भाग

गांव की किसी एक अभागिनी के अत्याचारी पति के तिरस्कृत कर्मों की पूरी व्याख्या करने के बाद पड़ोसिन तारामती ने अपनी राय संक्षेप में प्रकट करते हुए कहा- ”आग लगे ऐसे पति के मुंह में।” सुनकर जयगोपाल बाबू की पत्नी शशिकला को बहुत बुरा लगा और ठेस भी पहुंची। उसने जबान से तो कुछ नहीं … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: जयशंकर प्रसाद की कहानी “छोटा जादूगर” का अंतिम भाग

(कार्निवल में उसकी निगाह अचानक एक लड़के पर पड़ती है. शराब पीने वाले लोगों को देख रहे इस लड़के की ओर वो आकर्षित हुआ और इस दिन के लिए उसी को अपना साथी मानने लगा. इस १३-१४ वर्ष के लड़के से जब वो अधिक बात करता है तो मालूम होता है कि उसका पिता जेल … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: जयशंकर प्रसाद की कहानी “छोटा जादूगर” का पहला भाग

छोटा जादूगर- जयशंकर प्रसाद भाग-1 कार्निवल के मैदान में बिजली जगमगा रही थी। हँसी और विनोद का कलनाद गूँज रहा था। मैं खड़ा था उस छोटे फुहारे के पास, जहाँ एक लड़का चुपचाप शराब पीनेवालों को देख रहा था। उसके गले में फटे कुर्ते के ऊपर से एक मोटी-सी सूत की रस्‍सी पड़ी थी और … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानी “हींगवाला’ का अंतिम भाग

(कहानी के पहले भाग में आपने पढ़ा कि किस तरह हींगवाला ख़ान सावित्री को हींग की ज़रूरत न होने पर भी हींग बेच जाता है. सावित्री के बच्चों को ये बात अच्छी नहीं लगती और उन्हें लगता है कि माँ ने पैसे ज़ाया कर दिए. बच्चे ज़िद करने लगते हैं कि उन्हें भी पैसे दिए … Read more

घनी कहानी, छोटी शाखा: सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानी “हींगवाला’ का पहला भाग

लगभग 35 साल का एक ख़ान आंगन में आकर रुक गया । हमेशा की तरह उसकी आवाज सुनाई दी – ”अम्मा… हींग लोगी?” पीठ पर बँधे हुए पीपे को खोलकर उसने, नीचे रख दिया और मौलसिरी के नीचे बने हुए चबूतरे पर बैठ गया । भीतर बरामदे से नौ – दस वर्ष के एक बालक … Read more