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Jayshankar Prasad Ki Chooriwali October aur June O Henry

कहानी – अक्टूबर और जून October aur June O Henry
लेखक – ओ हेनरी

कप्तान ने दीवार पर टंगी अपनी तलवार को उदासी से देखा। समीप की ही अलमारी में मौसम की मार और सेवा के कारण घिसी हुयी उसकी दाग़ धब्बेदार वर्दी टंगी थी। कितना लम्बा समय बीत गया प्रतीत होता था, जब उन पुराने दिनों में युद्ध की चेतावनी हुआ करती थी। और अब जब वह अपने देश के संघर्ष के समय से निवृत हो चुका था, एक औरत की कोमल आंखों और मुस्कुराते होंठों के प्रति समर्पित होकर, सिमटकर रह गया था। वह अपने शांत कमरे में बैठा था और उसके हाँथ में वह पत्र लगा था जो अभी-अभी उसे प्राप्त हुआ था। पत्र जिसने उसे उदास कर दिया था । उसने उन आघात पंक्तियों को पुनः पढा , जिसने उसकी आशा नष्ट कर दी थी ।
“तुमने मेरा सम्मान यह पूछ कर कम कर दिया है कि मैं तुम्हारी पत्नी बनना चाहूंगी । मुझे लगता है कि मुझे स्पष्ट कहना चाहिए । ऐसा करने का कारण यह है कि हमारी आयु में एक बड़ा अंतर है । में तुम्हें बहुत , बहुत पसंद करती हूँ , पर मेरा विश्वास है कि हमारा विवाह सफल नहीं होगा मुझे खेद है मैं इस प्रकार कह रहीं हूँ , पर मेरा विश्वास है कि तुम मेरे कारण की इमानदारी की प्रशंसा करोगे । ”
कप्तान ने आह भरी और अपने हाथों में अपना सिर थाम लिया। हाँ उनकी आयु के मध्य कई वर्ष थे । पर वह बलिष्ठ था, उसकी प्रतिष्ठा थी और उसके पास दौलत थी । क्या उसका प्रेम, उसकी कोमल देखभाल और उसे उसके द्वारा होने वाले लाभ, उसे आयु का प्रश्न नहीं भुला सकते थे? इसके अतिरिक्त, वह निश्चिंत था कि वह भी उसकी परवाह करती है ।

कप्तान तत्काल निर्णय लेने वाला व्यक्ति था । वह युद्ध क्षेत्र में अपने निर्णय और उर्जा के लिए जाना जाता था । वह उसे मिलेगा और उससे व्यक्तिगत रूप से अनुरोध करेगा । आयु ! – उसके और वह जिसे प्रेम करता था, दोनों के मध्य में आने का क्या मतलब था ? दो घंटे में वह अपने महानतम युद्ध के लिए तैयार हो गया । उसने पुरानी दक्षिणी क़स्बे टेनिसी के लिए ट्रेन पकड़ी जहाँ वह रहती थी ।
थियोडोरा डैमिंग एक पुरानी इमारत के सुन्दर बरामदे में कड़ी संध्या-प्रकाश का आनंद ले रही थीं कि तभी कप्तान ने द्वार में प्रवेश किया और पत्थर के मार्ग पर चलता हुआ आया ।
वह उससे उलझनरहित मुस्कराहट के साथ मिली । जब कप्तान उससे निचली एक सीढ़ी पर खड़ा था उनकी आयु में इतना अंतर नहीं मालूम हुआ । वह लम्बा, सीधा, साफ-सुथरे नेत्रों वाला और भूरी रंगत का था । वह अपने पल्लवित स्त्रीत्व में थी ।
“मुझे तुम्हारे आने की आशा नहीं थी” थियोडोरा ने कहा , “पर जब तुम आ ही गए हो तो सीढ़ी पर बैठ सकते हो । क्या तुम्हे मेरा पत्र नहीं मिला ?”
“मिला” कप्तान ने कहा , “और इसीलिए मैं आया हूँ । मैं कहता हूँ थीयो कि अपने उत्तर पर पुनः विचार करो, नहीं करोगी क्या?”
थियोडोरा कोमलता से उसकी ओर मुस्कुरायी । वह वास्तव में उसकी शक्ति, उसके कुल हाव भाव, उसके पुरुषत्व इत्यादि से प्यार करती थी – संभवतः यदि –
“नहीं , नहीं , ” सकारात्मक रूप से वह अपना सिर हिलाते हुए बोली , ” प्रश्न ही नहीं है । मैं तुम्हे पूरी तरह पसंद करती हूँ पर तुमसे विवाह करना, नही चल पायेगा। तुम्हारी और मेरी आयु – मुझसे पुनः मत कहलवाओ – मैंने तुम्हे अपने पत्र में बताया था । ”

क्रमशः
October aur June O Henry

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