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राखी बुआ ने पास जाकर देखा तो रसगुल्ला दर्द से कराह रहा था. वो कशमकश में थीं कि सबको उठाएँ या क्या करें..वो रसगुल्ला के पास उकड़ूं बैठी ही थीं कि उन्होंने रसगुल्ला की आँखों में आँसू देखे.. उन्होंने उसे तुरंत प्यार से गोदी में ले लिया और वहीं ज़मीन पर पालथी मार कर उसकी चोट ढूँढने लगीं. उसे सामने के दाएँ पैर में चोट लगी थी. उन्होंने बहुत धीमी आवाज़ में पूछा..”और कहीं भी लगी बच्चा?”
रसगुल्ला उनसे लिपट गया. राखी बुआ ने उसे प्यार से सहलाया और फिर गोदी में लेकर उसे वो किचन में ले गईं और लाइट जला कर उसे ज़मीन पर बैठा दिया. फिर वो उसके लिए हॉल से कुर्सी लेकर आयीं और उस पर उसे बिठाया.. “तुम इस पर बैठो, मैं दवा का इंतज़ाम करती हूँ.. ठीक हो जाएगा.. कुछ नहीं होता..इत्ता सा ही तो लगा है” उन्होंने रसगुल्ला को किसी तरह समझाने की कोशिश की. रसगुल्ला राखी बुआ के समझाने पर सिमट कर बैठ गया.
वो माँ के कमरे में गईं और एकदम दबे पाँव मोबाइल की टोर्च जला कर उन्होंने एक लिहाफ़ का कोना ज़रा सा काटा, रुई निकाली और वहीं से एक कपड़ा ले लिया. वापिस किचन में आकर उन्होंने रसगुल्ला का सर सहलाया और घाव को पहले रुई से साफ़ करना शुरू किया…”न न न, ज़रा भी नहीं जलती ये वाली दवा..” रसगुल्ला को ज़रा जला तो वो पैर पीछे कर लिया. राखी बुआ ने उसकी पीठ सहलाई और घाव साफ़ करके मरहम पट्टी कर दी.
उन्होंने उसे गोदी में लिया और पूछा,”कुछ खाएगा मेरा बच्चा?” रसगुल्ला ने हल्के से हाँ में सर हिलाया लेकिन कुछ ही पलों में वो सो गया.
वो रसगुल्ला को लेकर कमरे में गईं, और उसे माँ के बग़ल में लिटाया और ख़ुद उसके बग़ल में दूसरी साइड लेट गईं और उसकी पीठ पर अपना हाथ कर लिया ताकि माँ अगर करवट लें तो रसगुल्ला को लगे नहीं.
रसगुल्ला के साथ-साथ राखी बुआ भी सो गईं, माँ को एहसास हुआ रसगुल्ला के बग़ल में होने का.. वो उठीं और उन्होंने देखा कि रसगुल्ला के पैर में पट्टी बंधी है और राखी बुआ का हाथ रसगुल्ला की पीठ पर है. उन्होंने राखी बुआ के सर पर हाथ रखा और रसगुल्ला को हल्के से सहलाया. राखी बुआ रसगुल्ला आराम से सोए इसलिए वो बहुत कम हिस्से में लेटी थीं और उनका शरीर लगभग गिरने की स्थिति में था. “राखी बेटा… राखी..ठीक से सोओ बेटा..गिर जाओगी..” उन्होंने रसगुल्ला को थोड़ा अपनी और किया और राखी बुआ को जगा कर और आगे किया. राखी बुआ फिर सो गईं.

सर पर सूरज आ पहुँचा था, चीकू भौंकने लगा. चीकू की आवाज़ सुनकर ननकू भी उठ गया. छत पर कोई नहीं था..बस चीकू और ननकू ही थे. “क्यूँ भौंक रहा है सुबह-सुबह..” वो हल्के से भौंका..”अरे.. रसगुल्ला कहाँ गया!.. पापा के साथ गया होगा.. तू क्यूँ शोर मचा रहा है..नीचे चल कर देखते हैं..”
ननकू आँख मलते हुए ज़ीने से उतरने लगा और चीकू भी ननकू के क़दम से क़दम मिला कर चल रहा था.. ननकू ने नीचे उतरते ही सामने खड़ीं माँ से पूछा,”माँ, रसगुल्ला कहाँ है?”
बग़ल की चारपाई पर बैठीं मौसी दादी के साथ बैठी दादी ने कहा,”वो सो रहा है..”
“पर कहाँ?”
“राखी बुआ के पास..”, मौसी दादी ने जवाब दिया
“राखी बुआ के पास! वो तो ऊपर सोया था और वो राखी बुआ के पास क्यूँ चला गया..उन्हें तो कितना डर लगता है बाबा चीकू और रसगुल्ला से….मैं उसे लेकर आता हूँ”
वो आगे बढ़ा ही था कि रॉकी चाचा ने उसका हाथ पकड़ कर उसे दादी की चारपाई के पास बैठा लिया.. “अब उनकी दोस्ती हो गई है..और अभी उन्हें थोड़ी देर सोने दो..”
“हो गई दोस्ती..?”
“हाँ..”
“पर कल तक तो..”
फिर रॉकी चाचा ने उसको पूरी बात बतायी..पहले ननकू को इस बात का तो अफ़सोस हुआ कि रसगुल्ला के चोट लग गई लेकिन राखी बुआ ने उसकी सेवा की ये सोचकर उसे बहुत अच्छा लगा. वो चीकू को लेकर कमरे में गया दोनों को देखने..
रसगुल्ला की पीठ पर राखी बुआ का हाथ था, दोनों सोए थे..ननकू ने रसगुल्ला के पैर में बंधी पट्टी भी देखी…ननकू और चीकू राखी बुआ और रसगुल्ला को देख रहे थे.. दादी, मौसी दादी, रॉकी चाचा, माँ और पापा पीछे खड़े उन्हें देख रहे थे.

(रसगुल्ला और राखी बुआ की दोस्ती तो हो गई है और ये प्यार देख कर सभी को बहुत अच्छा लग रहा है. हालाँकि अभी भी इस बात की चिंता सबको है कि रसगुल्ला को चोट लगी है. ननकू के मन में ये भी सवाल चल रहा है कि आख़िर रसगुल्ला को चोट कैसे लगी और ये चोट पूरी तरह कब तक ठीक होगी…)

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