संज्ञा (Sangya)
शेक्सपियर ने कहा है कि “नाम में क्या रखा है?” पर नाम में ही तो छुपी है हमारी पहचान। यहाँ तक कि शेक्सपियर या किसी भी प्रसिद्ध व्यक्तियों को हम उनके नाम से ही तो जानते हैं। हम मानते हैं कि उनके किए काम से उनकी पहचान बनी लेकिन फिर भी नाम का अपना एक अलग महत्व है, जिसे हम सभी समझते हैं। सोचिए अगर नाम ही न हो तो हम किसी भी वस्तु, व्यक्ति, स्थान या भाव को किस तरह पहचान पाएँगे और उन्हें किस तरह से एक-दूसरे से अलग कर पाएँगे? तो है न नाम का अपना एक अलग महत्व। बस इसी नाम से जुड़ा है हमारा आज का विषय, संज्ञा। (Sangya Ke Bhed)
संज्ञा का सीधा सा अर्थ है नाम। किसी भी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, प्राणी, जाति, भाव, गुण, दशा आदि के नाम संज्ञा कहलाते हैं। अगर इसका एक उदाहरण लें तो: ‘मेघा ने राजस्थान पहुँचते ही ख़ूबसूरत लाख की चूड़ियाँ ख़रीदीं’। इस वाक्य में पाँच नाम हैं, जो संज्ञा कहलाएँगे। ‘मेघा’ (व्यक्ति का नाम), ‘राजस्थान’ (स्थान का नाम), ‘ख़ूबसूरत’ (गुण का नाम), ‘लाख’ (एक विशेष पदार्थ का नाम) और ‘चूड़ियाँ’ (एक गहने/वस्तु का नाम)। तो इस तरह जो शब्द किसी नाम को बताता है वो संज्ञा कहलाता है।
संज्ञा के प्रकार (Sangya ke Bhed)
संज्ञा के चार और पाँच भेद प्रचलित हैं। इनके आधार पर संज्ञा को बाँटा जा सकता है। संज्ञा के प्रकार उसकी परिभाषा के अनुसार ही हैं। जिस तरह हम व्यक्ति, स्थान, जाति आदि के नाम को संज्ञा कहते हैं कुछ उसी तरह उसके भेद भी हैं। संज्ञा के 5 प्रकार निम्नांकित हैं: व्यक्तिवाचक संज्ञा, जातिवाचक संज्ञा, भाववाचक संज्ञा, द्रव्यवाचक संज्ञा, और समूहवाचक संज्ञा।अब इन्हें ज़रा विस्तार से समझते हैं।
1- व्यक्तिवाचक संज्ञा (Vyaktivachak Sangya) – वो संज्ञा शब्द जिससे किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान के नाम का पता चले। उसे ‘व्यक्तिवाचक संज्ञा‘ कहते हैं। जैसे: व्यक्तियों के नाम– रमेश, पंकज, मदन, सरोज, विमला आदि। दिशाओं के नाम– उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम आदि।इसके अलावा समुद्र, नदी, पहाड़, देश- विदेश, शहर, गाँव, सड़क, चौक, मुहल्ले, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, दिन, महीनों आदि के नाम, व्यक्तिवाचक संज्ञा का उदाहरण हैं।
2-जातिवाचक संज्ञा (Jativachak Sangya) – इसका अर्थ ये नहीं है कि सिर्फ़ किसी जाति धर्म विशेष का भान करवाने वाले शब्द को ही इसमें शामिल किया जाएगा। बल्कि यहाँ जाति का व्यापक अर्थ है, किसी एक ही तरह के व्यक्तियों या वस्तुओं का बोध करवाने वाले शब्द। जैसे कि अगर हम ‘शहर’ या ‘गाँव’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो वो अपनी तरह के स्थान की बात कहते हैं। इसी तरह ‘मैना’, सम्पूर्ण मैना जाति का प्रतिनिधित्व करती है। इसी तरह ‘मनुष्य'(मानव जाति), गाय, बैल, बकरी, घोड़ा, घर, घाट, नदी, समुद्र, पहाड़, मंत्री, धोबी, शिक्षक, मेज़, चारपाई, तूफ़ान, ज्वालामुखी आदि भी अपनी तरह के वस्तुओं और व्यक्तियों का बोध करवाते हैं।
3-भाववाचक संज्ञा (Bhavvachak Sangya) – ये ऐसे संज्ञा शब्द होते हैं जिनसे गुण, दशा, व्यापार आदि का बोध होता हो। कहा जाता है कि हर वस्तु और व्यक्ति की अपनी प्रकृति होती है जिसके अनुसार वो काम करते हैं।जैसे कि करेला और नीम में कड़वाहट होगी ही। इसी तरह आग में गर्मी, जल में शीतलता, योद्धाओं में वीरता आदि। भाववाचक संज्ञा का अनुभव किया जाता है। जैसे कि लम्बाई, बुढ़ापा, खटास, तीखापन आदि।
4- द्रव्यवाचक संज्ञा (Dravyavachak Sangya)-ऐसी कई वस्तुएँ हैं जिन्हें गिना नहीं जा सकता। इनमें कुछ तरल पदार्थ हैं तो कुछ ठोस। इन्हें ही द्रव्यचाचक संज्ञा का नाम मिला है।जैसे- लोहा, दूध, ताम्बा, पीतल, चावल, तेल, सोना आदि।आमतौर पर इनका बहुवचन भी नहीं होता।
5- समूहवाचक संज्ञा (Samoohavachak Sangya)– नाम से ही अर्थ भी सामने आता है। जैसा कि हम जानते हैं कि समूह का अर्थ होता है एक से अधिक व्यक्ति या वस्तु का साथ होना। ये एक ऐसे समूह को शामिल करता है जिनका काम एक हो या ये मिलकर साथ एक- सा काम करें। जैसे कि- सेना, पुलिस, जनता, मंडल, कक्षा, झुंड, भीड़, गिरोह, कुंज आदि।
याद रखने योग्य बातें
-किसी भी व्यक्ति, स्थान, वस्तु, भाव आदि का नाम बताने वाला शब्द ‘संज्ञा’ कहलाता है।
-संज्ञा के पाँच भेद हैं।(Sangya Ke Bhed)
– कई विद्वानों का मत है कि द्रव्यवाचक संज्ञा, और समूहवाचक संज्ञा को जातिवाचक संज्ञा के अंतर्गत लिया जा सकता है। इसलिए कई बार संज्ञा के पाँच की जगह तीन ही प्रकार भी देखने मिल सकते हैं। वो भी सही हैं।
– भाववाचक संज्ञा का निर्माण जातिवाचक संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण और अव्यय में प्रत्यय लगाकार बनाया जाता है।जैसे-लड़कपन,ममत्व, उकताहट, गर्मी, शाबाशी आदि।(इस विषय में एक अलग पोस्ट भी जल्द ही उपलब्ध होगी)
– द्रव्यवाचक संज्ञा का आमतौर पर बहुवचन नहीं होता।
हिन्दी व्याकरण: बिंदु और चंद्रबिंदु का प्रयोग..
हिन्दी व्याकरण: ड और ढ