कहाँ हो तुम चले आओ मुहब्बत का तक़ाज़ा है – बहज़ाद लखनवी
कहाँ हो तुम चले आओ मुहब्बत का तक़ाज़ा है ग़म-ए-दुनिया से घबरा कर तुम्हें दिल ने पुकारा है तुम्हारी बे-रुख़ी…
हिन्दी और उर्दू साहित्य का संगम
Shayari
‘साहित्य दुनिया’ के ज़रिए कोशिश ये है कि लोगों की रूचि साहित्य और भाषा में बढ़े। ये साहित्य और भाषा से जुड़ी बातों को बड़े-बड़े और गम्भीर वाक्यों से न समझाकर उसे सरल, बोलचाल की भाषा में आम जन तक पहुँचाने का प्रयास है।
कहाँ हो तुम चले आओ मुहब्बत का तक़ाज़ा है ग़म-ए-दुनिया से घबरा कर तुम्हें दिल ने पुकारा है तुम्हारी बे-रुख़ी…
सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते वर्ना इतने तो मरासिम थे कि आते जाते शिकवा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब से तो कहीं बेहतर…
आँख बोझल है मगर नींद नहीं आती है मेरी गर्दन में हमाइल तिरी बाँहें जो नहीं किसी करवट भी मुझे…
क्या कहेगा कभी मिलने भी अगर आएगा वो अब वफ़ादारी की क़स्में तो नहीं खाएगा वो हम समझते थे कि…
अब वो मंजर, ना वो चेहरे ही नज़र आते हैं मुझको मालूम ना था ख्वाब भी मर जाते हैं जाने…
परवीन शाकिर की नज़्म – आईना लड़की सर को झुकाए बैठी कॉफ़ी के प्याले में चमचा हिला रही है लड़का…
अपने बिस्तर पे बहुत देर से मैं नीम-दराज़ सोचती थी कि वो इस वक़्त कहाँ पर होगा मैं यहाँ हूँ…
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझसे जिसने इस दिल को परी-ख़ाना बना रक्खा था जिसकी उल्फ़त में…
Justju jiski thi usko to na paaya humne जुस्तुजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने इस बहाने से मगर…
Ret Par Safar Ka Lamha रेत पर सफ़र का लम्हा – अहमद शमीम कभी हम ख़ूब-सूरत थे किताबों में बसी…