कहानी – अक्टूबर और जून October aur June O Henry
लेखक – ओ हेनरी
कप्तान ने दीवार पर टंगी अपनी तलवार को उदासी से देखा। समीप की ही अलमारी में मौसम की मार और सेवा के कारण घिसी हुयी उसकी दाग़ धब्बेदार वर्दी टंगी थी। कितना लम्बा समय बीत गया प्रतीत होता था, जब उन पुराने दिनों में युद्ध की चेतावनी हुआ करती थी। और अब जब वह अपने देश के संघर्ष के समय से निवृत हो चुका था, एक औरत की कोमल आंखों और मुस्कुराते होंठों के प्रति समर्पित होकर, सिमटकर रह गया था। वह अपने शांत कमरे में बैठा था और उसके हाँथ में वह पत्र लगा था जो अभी-अभी उसे प्राप्त हुआ था। पत्र जिसने उसे उदास कर दिया था । उसने उन आघात पंक्तियों को पुनः पढा , जिसने उसकी आशा नष्ट कर दी थी ।
“तुमने मेरा सम्मान यह पूछ कर कम कर दिया है कि मैं तुम्हारी पत्नी बनना चाहूंगी । मुझे लगता है कि मुझे स्पष्ट कहना चाहिए । ऐसा करने का कारण यह है कि हमारी आयु में एक बड़ा अंतर है । में तुम्हें बहुत , बहुत पसंद करती हूँ , पर मेरा विश्वास है कि हमारा विवाह सफल नहीं होगा मुझे खेद है मैं इस प्रकार कह रहीं हूँ , पर मेरा विश्वास है कि तुम मेरे कारण की इमानदारी की प्रशंसा करोगे । ”
कप्तान ने आह भरी और अपने हाथों में अपना सिर थाम लिया। हाँ उनकी आयु के मध्य कई वर्ष थे । पर वह बलिष्ठ था, उसकी प्रतिष्ठा थी और उसके पास दौलत थी । क्या उसका प्रेम, उसकी कोमल देखभाल और उसे उसके द्वारा होने वाले लाभ, उसे आयु का प्रश्न नहीं भुला सकते थे? इसके अतिरिक्त, वह निश्चिंत था कि वह भी उसकी परवाह करती है ।