दो शाइर, दो नज़्में(9): फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और अख़्तर-उल-ईमान
Akhtar Ul Iman Shayari Faiz Ahmed Faiz Shayari फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म: बोल बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे, बोल ज़बाँ अब तक तेरी है तेरा सुत्वाँ जिस्म है तेरा बोल कि जाँ अब तक तेरी है देख कि आहन-गर की दुकाँ में तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन खुलने लगे क़ुफ़्लों के दहाने … Read more