मीर की ग़ज़ल- ‘देख तो दिल कि जाँ से उठता है’
Meer Ki Shayari देख तो दिल कि जाँ से उठता है ये धुआँ सा कहाँ से उठता है गोर किस दिलजले की है ये फ़लक शोला इक सुब्ह याँ से उठता है ख़ाना-ए-दिल से ज़ीनहार न जा कोई ऐसे मकाँ से उठता है नाला-सर खींचता है जब मेरा शोर इक आसमाँ से उठता है लड़ती … Read more