गुलज़ार की किताब “ड्योढ़ी” की समीक्षा

Dyodhi Review

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“किताबों से कभी गुज़रो तो यूँ किरदार मिलते हैं
गए वक़्त की ड्योढ़ी में खड़े कुछ यार मिलते हैं”

बस कुछ इसी तरह कई किरदारों से मुलाक़ात हुई गुलज़ार की लिखी “ड्योढ़ी” को पढ़ते हुए. यूँ तो गुलज़ार के शब्दों को कई बार सुना है पर उन्हें पहली बार पढ़ा.
ड्योढ़ी कई छोटी कहानियों का संग्रह है और हर पहली कहानी दूसरी से बिलकुल अलग लगती है। इस एक संग्रह में गुलज़ार आपको कभी सीमा पार ले जाते हैं तो कभी आसमान की सैर करवाते हैं, कभी बचपन की मासूमियत से रुबरु करवाते हैं तो कभी फुटपाथ पर पलती ज़िन्दगी की मुश्किलों का अहसास करवाते हैं,कभी पहाड़ों की सैर करवाते हैं तो कभी आसमान में पतंग के साथ गोते लगवाते हैं। ज़िन्दगी में जिस तरह कई रंगों का समावेश है उसी तरह ये संग्रह भी आपको कभी ख़ुश, कभी भावुक तो कभी ठहाके मारने पर मजबूर करता है।

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