मजाज़ की ग़ज़लें
Majaz Ki Shayari ~ असरार उल हक़ ‘मज़ाज’ की कुछ ग़ज़लें यहाँ हम पेश कर रहे हैं। मुलाहिज़ा फ़रमाएँ – दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता-ए-जफ़ा पे कहीं अब करम भी गराँ न हो जाए तेरे बीमार का ख़ुदा-हाफ़िज़ नज़्र-ए-चारा-गराँ न हो जाए इश्क़ क्या क्या न आफ़तें ढाए हुस्न गर मेहरबाँ न हो जाए मय के आगे ग़मों का … Read more