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Bhuvneshvar Ki Kahani Maan Beteभुवनेश्वर, माँ-बेटे

Bhuvneshvar Ki Kahani Maan Bete माँ-बेटे – भुवनेश्वर

भाग-1

चारपाई को घेरकर बैठे हुए उन सब लोगों ने एक साथ एक गहरी साँस ली। वह सब थके-हारे हुए ख़ामोश थे। कमरे में पूरी ख़ामोशी थी, मरने वाले की साँस भी थकी हुई-सी हारी हुई थी। तीन दिन से वह सब मौत की लड़ाई देख रहे थे और उसकी जीत का इन्तज़ार कर रहे थे। पड़ोस के लोग ख़ाली वक़्त में आते, दरवाज़े में घुसते ही मुँह सुखाकर किसी एक से धीमी आवाज में पूछते- “डॉक्टर क्या कहता है?” या ऐसी ही और कुछ कह, मरने वाले का बुझा हुआ ख़ाली मुँह देखकर सलाह या आलोचना के कुछ लफ़्ज़ कह चले जाते। वह सब दुनिया के साथ घूम रहे थे। सिर्फ़ मरने वाला धीरे-धीरे तेज़ी से अलग हो रहा था। चारपाई को घेरकर बैठने वाले, दुनिया में ऐसे वक़्त जो होता आया है, कर रहे थे और जो दुनिया में होता आया है उसके लिए तैयार थे या तैयार हो रहे थे। मरनेवाली उनकी माँ, नानी और दादी ही तो थी।

बड़ी लड़की कुच्ची भाई के दो ख़तों पर नहीं, उसकी लड़की को बच्चा होने वाला था, पर तार पाते ही अपनी लड़की को लेकर चली आई। बड़ा लड़का रेलवे की नौकरी में रात की ड्यूटी करता है, उसके लिए सुबह पराँठे कौन और कैसे बनाता होगा, छोटा लड़का अब तो फलाश की बैठक नहीं जमाता है, इससे माँ की बीमारी या मौत से उसका कोई रिश्ता है, यह वह कभी-कभी जानना चाहती है। छोटी अभी जवान है, अभी तीन साल हुए उसकी शादी हुई है। छोटी भाभी से बड़ी की चुगली खाती आई है, आज भी खाती है। माँ की बीमारी या मरने का अवसर वहाँ किस तरह पड़ रहा है, न जानती है, न जानना चाहती है। बड़ा लड़का अधेड़ हो चला है, घर से अलग हो गया था, उसकी बीबी को अलग चूल्हा जलाते आज सत्रह साल हो गए, मरनेवाली से उसे हज़ार शिकायतें हैं आज वह उन्हें भूल जाना चाहती है। बीमारी के ख़र्चे और शायद श्राद्ध में भी आधा देने को तैयार है, पर वह छोटे के हाथ में रुपया न देगी। कौन उससे झगड़ा मोल ले! न, वह इस झगड़े में न पड़ेगी।

छोटी बहू पाँचवीं बार यह कहने के लिए बेताब है कि बड़ी बहू कल शाम को रोते हुए बच्चे का झूठा बहाना कर सो गई। सिविल सर्जन को वह बुला लेती पर बड़ी बार-बार ‘सिविल सर्जन-सिविल सर्जन’ क्यों चिल्ला रही है? क्या उनके सिवाय यहाँ सब देहाती, गधे ही हैं? दोनों लड़के एक-दूसरे से काफी अरसे से दूर रह चुके हैं, आज एक साथ पाकर कुछ अजब-सा जान रहे हैं। थर्मामीटर दोनों एक साथ देखते हैं, दवा की खुराक दोनों एक साथ देखते हैं। बैद जी से दोनों बातें करना चाहते हैं। इनके अलावे बच्चे हैं, उनके माँ-बाप उन्हें घेर-घेरकर कहते हैं बेटे, बेटी! नानी-दादी जा रही हैं देख लो, मरने वाली के कान के पास कहते हैं –

“अम्मा! पोता, नाती, पैर छू रहे हैं, असीस दो”

मरनेवाली आँखें चौड़ी करती है और कुछ बुदबुदाती है। वही अकेली तो मर रही है। वही अकेली तो जोती जा रही है। पछत्तर साल कड़ाके की गरमी, जाड़े, बरसात में जो जीवन कड़ा और स्थिर हो चुका है, आज वह फिर बिखर रहा है!

बड़ी लड़की कहती है – “अम्मा, क्या सोच रही कहो? हमें देखो। भगवान का नाम लो”

बड़ी बहू कहती है – “अम्मा, राम नाम लो, पाप कटें”

छोटी जो जेठ की वजह से घूँघट काढ़े हैं, साँस भरकर कहती है – “अम्मा के बराबर पुन्नात्मा कौन होगा?”

बड़े लड़के ने कॉर्निस पर से शीशी उठाकर दवा डाली, छोटे ने जम्हाई लेते हुए कहा – “पीली में लगाने की दवा है”

बड़े ने मुँह बनाया और अम्मा को उठाकर दवा पिला दी। तकिये में मुँह गड़ाकर उसने दीवार की तरफ करवट ली। उसके उलझे हुए छोटे सफेद बाल मैले तकिए पर बिखरे थे। छोटी बिछौना बदलना चाती थी, पर बड़ी की राय न थी

छोटी ने फिर कहा- “अम्मा धोती में क़ै लगी है, बदलोगी?”

अम्मा ने करवट ली और घूरकर देखा। सबके चेहरे एक-से और सादे थे। उनमें सबमें भरपूर ज़िंदगी थी। वह जैसे उनमें कुछ और ढूँढ़ रही थी। मौत के वक़्त सुनते आए हैं कि सारी ज़िंदगी फ़िल्म की तरह आँखों के सामने फिर जाती है, मन धीमा हो जाता है, निश्चित – और पके हुए – बीते हुए पर ही वह बार-बार टिकता है। वह शायद उसे याद हो या न याद हो पर उसका मन तो रीता, बेज़बान जानवर की तरह हो रहा था। अब जब उसने उनके चेहरे ‘डीज’, की पुरानी लालटेन में देखे तो वह एकबारगी सोच उठी कि ‘यह सब असफल क्यों हो गए?’ (Bhuvneshvar Ki Kahani Maan Bete)

बड़े लड़के को, जब वह पैदा भी नहीं हुआ था और जब मुहल्ले का एक लड़का वक़ील हुआ था, उसने वक़ील बनाना चाहा था। पर वह वकील क्यों नहीं बना? उसने उसकी तरफ गर्दन घुमाकर देखा, वह पास आकर बोला – “क्या है अम्मा!” वह अजाने की तरफ से संतुष्ट हो गयी। उसने पानी माँगा।

पानी पीकर वह थककर लेट रही। आस-पास लोग बातें कर रहे थे। बड़ी लड़की की गर्भवती लड़की भी वहाँ आकर बैठ गयी थी। उसकी माँ उसे हटाना चाहती थी। छोटा लड़का कुछ सोच रहा था और दुखी था। अम्मा ने एक बारगी धीमे से पुकारा, “छोटे!”

छोटा लड़का उठकर पास तक गया और रो दिया। अम्माँ ने मुँह फेर लिया।

उसने आँसू पोंछते हुए कहा– “सबेरे बड़े डॉक्टर को बुलाएँगे” – और धोती से नाक पोंछते हुए बाहर चला गया।

बड़ी ने गोद में लेटे हुए लड़के के मुँह में दूध देते हुए जानकारी से कहा – “हाँ, सिविल सर्जन को बुलाओ, लाला!”- छोटी ने मुँह बनाया।

छोटी लड़की कुछ बूझकर मुस्कराई। बड़ी लड़की ने अपने बने हुए दाँत निकालकर कहा- “कितना लेगा बहू?”

बड़ा लड़का बोला – “बड़ा डॉक्टर कोई परमात्मा है?”

और फिर सब चुप हो गए। अम्मा ने पूरा-पूरा सुना और जान लिया कि बड़ा डॉक्टर परमात्मा नहीं है। परमात्मा का ख़याल आते ही उसे एकबारगी मालूम हुआ कि परमात्मा से वह इस वक़्त भी उतनी ही दूर है जितनी कभी थी। सिर्फ़ उसमें उस वक़्त एक तकलीफ़, एक तंगी समाई हुई है जो कभी न थी। वह कमरे की सब चीजें ग़ौर से देखने लगी। उन चीज़ों को वह लाख बार देख चुकी थी; यहाँ तक कि वे अपनी असली शक्ल खो बैठे थे। पर आज वह सब अलग-अलग और तीखी मालूम हो रही थीं। बड़ी बहू से वह नाराज़ है। एक मरतबे उसने गुस्से में यह भी कह दिया था कि “मरते वक़्त मैं तेरे हाथ का पानी भी न पीऊँगी!”- छोटी नेक है। उसने उसकी बड़ी सेवा की है; पर आज वह दोनों एक नए ही रूप में उसके सामने आ रही हैं। वह देख रही है कि वे दोनों ग़रीब हैं, दोनों लाचार हैं। क्यों लाचार हैं? वह सोचने लगी – यह भूलकर कि वह ख़ुद लाचार है।

वह फिर बुदबुदा उठी, “कुच्चो! कुच्चो” – बड़ी लड़की आँचल सँभालकर उठी पर अम्मा का चेहरा तब पत्थर की तरह सफेद हो चुका था। वह उसे ग़ौर से देखने लगी।

बड़ी बहू – “अम्मा कुछ सोच रही हैं”

बड़ा लड़का – “मोह-माया घेरे है। दुनिया अजब तमाशा है!”

बड़ी बहू – “न जाने किसकी क़िस्मत में क्या लिखा है।”

(एक गहरी साँस लेकर छोटी बहू धीरे से) “बाबूजी की बात सोच रही होंगी!”

पर अम्मा बाबूजी (अपने पति) की बात नहीं सोच रही थीं। वह सब बहुत दूर था। वहाँ तक घिसटकर पहुँचने में मन में ताकत नहीं रह गयी थी। वह इन लोगों से दूर, दूर-धीरे-धीरे चली जा रही थी।

क्रमशः

Bhuvneshvar Ki Kahani Maan Bete

घनी कहानी, छोटी शाखा: भुवनेश्वर की कहानी ‘माँ-बेटे’ का अंतिम भाग

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