गजानन माधव मुक्तिबोध (Gajanan Madhav Muktibodh) हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि, आलोचक, कहानीकार, उपन्यासकार और निबंधकार थे। उनका जन्म १३ नवम्बर १९१७ को श्योपुर में हुआ था। उनको एक प्रगतिशील कवि माना जाता है। उनकी कविताओं में नया रँग भी था और प्रगतिशीलता की चमक भी। आज के दौर में उनकी रचनाएँ तो मशहूर हैं ही, साथ ही उनके द्वारा दिए गए कथन भी अक्सर सोशल मीडिया पर हिन्दी से जुड़े लोग शेयर करते हैं। महज़ ४६ साल की उम्र में ११ सितम्बर १९६४ को मध्य प्रदेश के शहर भोपाल में उनका देहांत हो गया।
कथन
१. अच्छाई का पेड़ छाया प्रदान नहीं कर सकता, आश्रय प्रदान नहीं कर सकता।
२. अब अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे उठाने ही होंगे। तोड़ने होंगे ही मठ और गढ़ सब।
३. अस्ल में साहित्य एक बहुत धोखे की चीज़ हो सकती है।
४. आहतों का भी अपना एक अहंकार होता है।
५. वेदना बुरी होती है। वह व्यक्ति को व्यक्ति-बद्ध कर देती है।
६. आज का प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति प्रेम का भूखा है।
७. जब तक मेरा दिया तुम किसी और को न दोगे, तब तक तुम्हारी मुक्ति नहीं।
८. मुक्ति अकेले में अकेले की नहीं हो सकती। मुक्ति अकेले में अकेले को नहीं मिलती।
९. दुनिया में नाम कमाने के लिए कभी कोई फूल नहीं खिलता है।
१०. सच्चा लेखक जितनी बड़ी ज़िम्मेदारी अपने सिर पर ले लेता है, स्वयं को उतना अधिक तुच्छ अनुभव करता है।
११. झूठ से सच्चाई और गहरी हो जाती है—अधिक महत्त्वपूर्ण और प्राणवान।
१२. हमारे आलस्य में भी एक छिपी हुई, जानी-पहचानी योजना रहती है।
१३. पाप के समय भी मनुष्य का ध्यान इज़्ज़त की तरफ़ रहता है।
______
कविताएँ
१. मैं तुम लोगों से दूर हूँ
२. चाँद का मुँह टेढ़ा है
Gajanan Madhav Muktibodh
नोट- इस पोस्ट में हम लगातार कविताएँ और रचनाएँ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। पुनः पधारें