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Naqsh Fariyadi Hai Kiski Hai Shokhiye Tahreer Ka – Mirza Ghalib

नक़्श फ़रियादी है किसकी शोख़ी-ए-तहरीर का
काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए-तस्वीर का

काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ
सुब्ह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर का

जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिए
सीना-ए-शमशीर से बाहर है दम शमशीर का

आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए
मुद्दआ अन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का

आतिशीं-पा हूँ गुदाज़-ए-वहशत-ए-ज़िन्दाँ न पूछ
मू-ए-आतिश दीदा है हर हल्क़ा याँ ज़ंजीर का

शोख़ी-ए-नैरंग सैद-ए-वहशत-ए-ताऊस है
दाम-ए-सब्ज़ा में है परवाज़-ए-चमन तस्ख़ीर का

बस-कि हूँ ‘ग़ालिब’ असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए-पा
मू-ए-आतिश दीदा है हल्क़ा मिरी ज़ंजीर का

मिर्ज़ा ग़ालिब

इस ग़ज़ल में रदीफ़ “का” है जबकि क़ाफ़िए “शोख़ी-ए-तहरीर, पैकर-ए-तस्वीर, जू-ए-शीर, शमशीर, आलम-ए-तक़रीर, ज़ंजीर, तस्ख़ीर, ज़ंजीर” हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब की ये ग़ज़ल उनकी बेहतरीन ग़ज़लों में शुमार की जाती है।

Naqsh Fariyadi Hai Kiski Hai Shokhiye Tahreer Ka – Mirza Ghalib

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