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हिन्दी व्याकरण ड और ढ ठ वाले शब्द Radeef Qafiya Misra Shayari Mirza Rafi Sauda Shayariसाहित्य दुनिया

Radeef Qafiya Misra Shayari साहित्य दुनिया में शायरी सीखें.
मिसरा: किसी भी लाइन को मिसरा कहते हैं.
मिसरा-ए-ऊला: शे’र के पहले मिसरे को मिसरा ए ऊला (ऊला मिसरा) कहते हैं.
मिसरा-ए-सानी: शे’र के दूसरे या’नी अंतिम मिसरे को मिसरा-ए-सानी कहते हैं.

रदीफ़: ग़ज़ल या क़सीदे के शेरों के अंत में  जो शब्द या शब्द-समूह बार बार दुहराए जाते हैं, उन्हें रदीफ़ कहते हैं. मत’ले में रदीफ़ दोनों मिसरों में रहती है जबकि ग़ज़ल के बाक़ी शे’रों में सिर्फ़ मिसरा ए सानी में ही इसका इस्तेमाल होता है.
क़ाफ़िया: रदीफ़ से ठीक पहले आने वाले वो शब्द जो एक ही आवाज़ पर ख़त्म होते हैं, उन्हें क़ाफ़िया कहते हैं.मत’ला में क़ाफ़िया दोनों मिसरों में इस्तेमाल होता है जबकि बाक़ी शे’रों में ये सिर्फ़ मिसरा ए सानी में आता है.

उदाहरण:
“चली डगर पर कभी न चलने वाला मैं
नए अनोखे मोड़ बदलने वाला मैं

बहुत ज़रा सी ठेस तड़पने को मेरे
बहुत ज़रा सी मौज, उछलने वाला मैं

मनचंदा बानी के इन दो शे’रों में “वाला मैं” रदीफ़ है और “चलने, बदलने, उछलने” क़ाफ़िया है.

ज़मीन: हर ग़ज़ल की एक ज़मीन होती है. जिन ग़ज़लों के छंद, रदीफ़ और क़ाफ़िये एक ही होते हैं, उन्हें एक ही ज़मीन की ग़ज़लें कहते हैं. तरही मुशा’इरों में पढ़ी जाने वाली सारी ग़ज़लें एक ही ज़मीन की होती हैं.

तरह/मिसरा ए तरह: तरही मुशाइरों का ये क़ायदा है कि संयोजक गण मुशाइरे की घोषणा के साथ ही एक मिसरा भी दे देते हैं और उसकी रदीफ़ और क़ाफ़िये का उल्लेख भी कर देते हैं. जो मिसरा संयोजक देते हैं, उसी ज़मीन पर सबको ग़ज़ल कहनी होती है. Radeef Qafiya Misra Shayari

मत’ला: ग़ज़ल या क़सीदे का वो शे’र जिसके दोनों मिसरों में रदीफ़ और क़ाफ़िये का इस्तेमाल होता है उसे मत’ला कहते हैं. अक्सर को ग़ज़ल का पहला शे’र मत’ला होता है लेकिन एक ग़ज़ल में एक से अधिक मत’ले भी हो सकते हैं, इसको लेकर कोई पाबंदी नहीं है. एक बात और बता देना ज़रूरी है कि किसी ग़ज़ल में मत’ला ना होना कोई दोष नहीं है. हालाँकि क़सीदों के लिहाज़ से कहा जाता है कि बग़ैर मत’ला क़सीदे वो मज़ा नहीं देते.

मक़ता: ग़ज़ल का आख़िरी शे’र मक़ता कहलाता है.अक्सर इसमें शा’इर अपने तख़ल्लुस (pen name) का इस्तेमाल करता है.

मुसल्लस: ये एक ऐसी कविता होती है जिसमें तीन-तीन मिसरों के बंद(पद) होते हैं.कभी तीनों मिसरे एक रदीफ़ क़ाफ़िये पर होते हैं और हर बंद में अलग रदीफ़ ओ क़ाफ़िये लिए जाते हैं तो कभी पहले दो मिसरे एक रदीफ़-क़ाफ़िये पर तो तीसरा अलग..लेकिन सारे बंदों के तीसरे मिसरे एक ही रदीफ़ और क़ाफ़िये के होते हैं.
शायरी सीखें: रदीफ़ क्या है?
शायरी सीखें: ग़ज़ल का मतला क्या होता है?

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