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Dakni Shayari Ka Itihas

Dakni Shayari Ka Itihas ~ सन 1347 से 1527 तक दक्षिण भारत के महत्वपूर्ण हिस्से पर बहमनी सल्तनत का क़ब्ज़ा रहा। बहमनी सल्तनत का अंत हुआ तो इससे पाँच राज्य क़ायम हुए। इनमें साहित्य की दृष्टि से बीजापुर का आदिलशाही वंश और गोलकुंडा का क़ुतुबशाही वंश मशहूर हुआ। ऐसा माना जाता है कि इन्हीं दो सरकारों के अंतर्गत दक्षिण में उर्दू की शुरुआती पहचान बनी।

दकनी शायर (Dakni Shayar) : बीजापुर और गोलकुंडा के दरबार (Bijapur aur Golkunda ke Darbar)

1. इब्राहीम आदिलशाह (Ibrahim Adilshah)
2. सुल्तान मुहम्मद क़ुली क़ुतुबशाह ‘मआनी’ (Sultan Muhammad Quli Qutubshah ‘Maani’)
3. सुल्तान मुहम्मद क़ुतुबशाह (Sultan Muhammad Qutubshah)
4. इब्ने निशाती (Ibn e Nishati)
5. ग़व्वासी (Ghavvasi)
6. वजही (Vajhi)
7. अब्दुलहसन तानाशाह (Abdul Hasan Tanashah)
8. बहरी (Bahri)

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1. इब्राहीम आदिलशाह (Ibrahim Adilshah) – ये बीजापुर की आदिलशाही हुकूमत के पाँचवे बादशाह थे। इनका जन्म 1570 के क़रीब हुआ, इनको तत्कालीन सुल्तान अली आदिल शाह प्रथम ने गोद लिया, जब ये 9 साल के थे आदिल शाह चल बसे। पिता की मौत के बाद इब्राहीम आदिलशाह को बादशाह घोषित कर दिया गया।

शायरी को लेकर इनके बारे में दो मत हैं।

एक मत के अनुसार- ये फ़ारसी छंदों का इस्तेमाल कर दक्खनी भाषा में शायरी किया करते थे। इनके गीतों को उर्दू प्रथम शायरी के बतौर भी समझा जा सकता है। हालाँकि इनकी कविता का कोई नमूना हमारे पास नहीं है, इसलिए ये नहीं बताया जा सकता कि ये किस प्रकार की शायरी किया करते थे।

दूसरे मत के अनुसार- ये शायर न थे, इनके बारे में फ़िराक़ गोरखपुरी ने अपनी किताब ‘उर्दू भाषा और साहित्य’ में लिखते हैं- “यह राजा संगीत तथा कला का प्रेमी था। यह कवि ना था, लेकिन इसके दरबार में मौलाना नुसरती और मुल्ला हाशिमी प्रसिद्ध कवि थे।”

2. सुल्तान मुहम्मद क़ुली क़ुतुबशाह ‘मआनी’ (Sultan Muhammad Quli Qutubshah ‘Maani’) – गोलकुंडा की क़ुतुबशाही सल्तनत के पाँचवे बादशाह मुहम्मद क़ुली क़ुतुबशाह 4 एप्रिल 1565 में पैदा हुए। इब्राहिम क़ुलीक़ुतुबशाह की मौत के बाद सन 1580 में ये सुल्तान बने। इन्होंने अपनी हिंदू रानी भागमती के नाम पर भाग नगर बसाया था, इस शहर को आज हैदराबाद के नाम से जाना जाता है। इनका शासनकाल 1580 से 1611 ई० तक रहा। ये अच्छे शायर थे, फ़ारसी के अलावा उर्दू ज़बान में भी ये शायरी कहते थे। फ़िराक़ कहते हैं,”कविता के अतिरिक्त इन्हें संगीत, वास्तुकला आदि में भी गहरी रुचि थी।”

क़ुतुबशाह ‘मआनी’ ने फ़ारसी और उर्दू के अलावा तेलुगु ज़बान में भी शायरी की है। काव्य रूपों की बात कारें तो इनमें मसनवियाँ, क़सीदे, मर्सिये और रूबाइयाँ हैं। Dakni Shayari Ka Itihas

पिया बाज प्याला पिया जाए ना
पिया बाज यक-तिल जिया जाए ना

पिया की याद सूँ पीता हूँ मैं मय
हमारा हाल क्या जानेंगे सुख-ज़ाद

एक ग़ज़ल-

तुमन रौशनी बिन हमन रौशनी नाह
तू दीदार बिन सभी दीदार हैं काह

सभी झाड़ कूँ पत-झड़ी बाव आया
चकर खाँस पर है नज़र तू दिसूँ शाह

नमाज़ाँ करूँ रात दिन मलने क्याँ मैं
हवा मुंज कूँ रोज़ी ज़ुलहमदुल्लिाह

अंधारे के बादल मुंजे बेड़ी चौ-पहर
ख़ुदाया तू भेजें हमन बाद-ए-दिल-ख़्वाह

कता सब्र फ़रियाद कर चुप न रह तूँ
करूँ आह आहाँ तूँ नीं होता आगाह

करेगा अगर याद वो मुंज दुखी कूँ
करूँ याद अगर किस कूँ असतग़फ़िरुल्लाह

‘मआनी’ है आजिज़ तिरी ख़िदमताँ में
नहीं सुद-बुद उस कूँ तूँ कर सब थे आगाह

3. सुल्तान मुहम्मद क़ुतुबशाह (Sultan Muhammad Qutubshah)- यह सुल्तान अब्दुल्ला क़ुतुबशाह के पुत्र और उनके उत्तराधिकारी थे। यह शायरी भी करते थे और कला को आगे बढ़ाने में भी रुचि रखते थे। इनके दरबार में इब्ने निशाती, ग़व्वासी, और मुल्ला वजही प्रसिद्ध कवि थे। इनका एक शेर नीचे पेश कर रहे हैं-

तेरी पेशानी पर टीका झमकता,
तमाशा है उजाले में उजाला

4. इब्ने निशाती (Ibn e Nishati) – इब्ने निशाती गोलकुंडा के सुल्तान अब्दुल्ला क़ुतुबशाह (क़ुतुब शाही सल्तनत के सातवें सुल्तान) के दरबार में थे। फ़िराक़ अपनी किताब ‘उर्दू भाषा और साहित्य’ में कहते हैं कि कुछ लोगों का अनुमान है कि ये एक फ़ारसी पुस्तक का उर्दू में पद्यबद्ध अनुवाद है। निशाती की मसनवी “फूलबन” (Ibn e Nishati Phoolban) दकनी भाषा में एक प्रेम काव्य है। फ़िराक़ गोरखपुरी इस मसनवी के बारे में कहते हैं कि ये एक अच्छा प्रेम-काव्य है। इस पुस्तक का रचनाकाल १६६० ईसवी का है।

5. ग़व्वासी (Ghavvasi)- यह भी सुल्तान अब्दुल्ला क़ुतुबशाह के ज़माने के शायर हैं। ये उनके दरबारी शायर भी थे। इनकी दो मसनवियाँ मशहूर हैं- ‘सैफ़ुल मुलूक’ और तूतीनामा’
सैफ़ुल मुलूक के बारे में कहा जाता है कि ये ‘अलिफ़ लैला’ के फ़ारसी अनुवाद का भाषानुवाद है। ‘उर्दू भाषा और साहित्य’ में फ़िराक़ कहते हैं कि ‘तूतीनामा’ का आधार संस्कृत पुस्तक ‘शुक सप्तति’ को बताया जाता है। ये आधी फ़ारसी में और आधी हिन्दी में की गई रचना है।

6. वजही (Vajhi)- अब्दुल्ला क़ुतुबशाह के ज़माने में सबसे प्रसिद्ध शायर मौलाना वजही को ही कहा जाता है। इनकी मसनवी ‘क़ुतुब मुश्तरी’ और गद्य पुस्तक ‘सब रस’ दकनी उर्दू साहित्य में अहम मानी जाती है। ‘सब रस’ को फ़िराक़ ने उर्दू की पहली शृंखलाबद्ध कथा बताया है। मौलाना वजही का देहांत सन 1640 में हुआ।

अब्दुल्ला क़ुतुबशाह के दरबार में मुल्ला क़ुतबी, जनैदी, तबई आदि कवि भी हुए हैं। इन सभी ने अधिकतर मसनवियाँ लिखी हैं।

7. अबुलहसन तानाशाह (Abdul Hasan Tanashah)- ये गोलकुंडा के अंतिम सुल्तान थे। औरंगज़ेब ने सन 1687 में गोलकुंडा पर फ़तह हासिल कर ली और इनकी बाक़ी ज़िन्दगी क़ैद में गुज़री। यह अब्दुल्ला क़ुतुबशाह का दामाद था और उनकी मौत के बाद 1674 में गद्दी पर बैठे थे। इनके दरबार में विद्धानों का सम्मान था। ‘रूहे-अफ़ज़ा’ के रचयिता फ़ाइज़ भी इन्हीं के दरबार में थे। अबुलहसन ख़ुद भी शायरी करते थे। इनका एक शेर जो हमें प्राप्त हुआ है, हम यहाँ पेश कर रहे हैं-

“किस दर कहाँ काँ जाऊँ मुझ दिल पै बझराट है,
इक बात किए होंगे सजन याँ जी ही बाराबाट है।”

8. बहरी(Bahri)- बीजापुर और गोलकुंडा राज्यों के आख़िरी समय में सूफ़ी संत क़ाज़ी महमूद ‘बहरी’ मशहूर कवि थे। इन्होंने फ़ारसी और दकनी में मसनवियाँ, ग़ज़लें, क़सीदे और रूबाइयाँ लिखी हैं। इनके शेरों की संख्या फ़िराक़ गोरखपुरी ने 50,000 बताई है। इनकी प्रसिद्ध रचना ‘मनलगन’ है। ये एक मसनवी है जिसका रँग सूफ़ी है और भाषा और भाव दुरूह है।

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1680 में शिवाजी की मौत के बाद औरंगज़ेब ने दकन पर चढ़ाई कर दी और 1686 में बीजापुर जीत लिया और 1687 में गोलकुंडा साम्राज्य ख़त्म होने के बाद उर्दू शायरी में एक नया पड़ाव आया। मुग़ल साम्राज्य ने गोलकुंडा को अपने में मिला लिया। क्षेत्र में मुग़ल शासन के शुरू होने के बाद शायरी में कौन-कौन से शायर आए और शायरी में किस तरह के बदलाव आए ये हम अपनी कड़ी ‘औरंगाबाद काल’ में जानेंगे।

~ Dakni Shayari Ka Itihas

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