fbpx
Best Urdu Rubai Shaam Shayari Har Haqeeqat Majaz Ho Jaye Tagore ki Kahani Bhikharin Parveen Shakir Shayarisahityaduniya.com

Mushafi Shayari ~ शेख़ ग़ुलाम हमदानी ‘मुसहफ़ी’- सन 1750 में मुरादाबाद ज़िले के पास अमरोहा के अकबरपुर गाँव में इनका जन्म हुआ। कुलीन वंश में जन्में ‘मुसहफ़ी’ के पिता का नाम शेख़ वली मुहम्मद था। हमदानी को पढ़ने का बड़ा शौक़ था और किताबें माँग-माँग कर पढ़ा करते थे। ये जब युवा हुए तो दिल्ली चले गए।

शाइरी में ‘मुसहफ़ी’ की ख्याति 1781 ई० में शुरू हुई। ‘मुसहफ़ी’ अपने घर पर मुशायरे करते थे, इन मुशायरों में दिल्ली के नवोदित कवि ‘इंशा’,’जुरअत’ जैसे शायर सम्मिलित होते थे। दिल्ली में 12 साल रहे और उसके बाद लखनऊ चले आए। नवाब आसिफ़ुद्दौला के ज़माने में जब लखनऊ आए तो दिल्ली के राजवंश के मिर्ज़ा सुलेमान शिकोह के यहाँ नौकर हो गए।

मुसहफ़ी ने कुछ दिन व्यापार भी करने की कोशिश की थी। उनकी मौत सन 1824 ई० में 74 वर्ष की आयु में हुई।

मुसहफ़ी ने बहुत शाइरी की है। फ़ारसी में उनके चार दीवान थे लेकिन अब एक ही मौजूद है, उर्दू में उनके आठ दीवान हैं जिनमें हज़ारों ग़ज़लें, क़सीदे, तारीख़ें और रूबाइयाँ मौजूद हैं। उन्होंने एक किताब मुहम्मद शाह से लेकर अपने समय तक के कवियों के बारे में भी लिखी थी। इस किताब का को ‘मुसहफ़ी का तज़किरा’ कहते हैं। इस पुस्तक का रचनाकाल 1794 ई० है।

मुसहफ़ी शानदार शाइर थे। मुस’हफ़ी के बारे में फ़िराक़ कहते हैं कि वो इस तेज़ी से शाइरी कहते थे मानो गद्य लिख रहे हों। उनका उपलब्ध संग्रह भी यूँ तो बहुत बड़ा है और किसी से कम नहीं है लेकिन उन्होंने अनगिनत शेर लिखे जिनमें कुछ उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को दे दिए तो कुछ बिक गए।

उनके शागिर्द मीर ‘ख़लीक़’, ख़्वाजा आतिश, मीर ज़मीर, असीरे, शहीदी जैसे शानदार शाइर थे। ये सभी शाइर अपने दौर के बड़े शाइर माने गए। मुसहफ़ी ने अनगिनत शेर कहे हैं लेकिन काव्यशास्त्र की दृष्टि से उनके एक भी शेर में कमी निकालना सम्भव नहीं है।

शाइरी का नमूना-

ग़ज़ल

ख़्वाब था या ख़याल था क्या था
हिज्र था या विसाल था क्या था

मेरे पहलू में रात जा कर वो
माह था या हिलाल था क्या था

चमकी बिजली सी पर न समझे हम
हुस्न था या जमाल था क्या था

शब जो दिल दो दो हाथ उछलता था
वज्द था या वो हाल था क्या था

जिसको हम रोज़-ए-हिज्र समझे थे
माह था या वो साल था क्या था

‘मुसहफ़ी’ शब जो चुप तू बैठा था
क्या तुझे कुछ मलाल था क्या था

__________

ग़म-ए-दिल का बयान छोड़ गए
हम ये अपना निशान छोड़ गए

तिरी दहशत से बाग़ में सय्याद
मुर्ग़ सब आशियान छोड़ गए

राह में मुझको हमरहाँ मेरे
जान को ना-तवान छोड़ गए

नफ़रत आई सग-ओ-हुमा को क्या
जो मिरे उस्तुख़्वान छोड़ गए

चलते चलते भी ये जफ़ा-केशाँ
हाथ मुझ पर निदान छोड़ गए

किसी दर पर उन्हों को जा न मिली
जो तिरा आस्तान छोड़ गए

सफ़र इस दिल से कर गए ग़म-ओ-दर्द
यार सूना मकान छोड़ गए

सफ़हा-ए-रोज़गार पर लिख लिख
इश्क़ की दास्तान छोड़ गए

ले गए सब बदन ज़मीं में हम
‘मुसहफ़ी’ इक ज़बान छोड़ गए

Mushafi Shayari

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *