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Rajendra Bala Ghosh Bang Mahila ~ 1882 में जन्मीं राजेंद्र बाला घोष हिंदी की ऐसी महिला लेखिका मानी जाती हैं जिन्होंने मौलिक रचनाओं में पहली कहानी लिखी। वैसे हिंदी की पहली कहानी कौन सी है इस बात में कई मत हैं लेकिन राजेंद्र बाला घोष की कहानी ‘दुलाई वाली’ को भी इसमें शामिल किया जाता है। ये कहानी ‘सरस्वती पत्रिका’ में 1907 को प्रकाशित हुई थी। हम ये कह सकते हैं कि राजेंद्र बाला घोष हिंदी की पहली मौलिक कहानी लिखने वाली, पहली महिला हैं।

राजेंद्र बाला घोष की इस कहानी में कई अलग-अलग पहलू हैं। मित्रों का चुहल भी है, महिलाओं की मन: स्थिति भी है तो उस समय के पहनावे, बोलचाल, पति पत्नी के सम्बंध की गहराई जैसे कई पहलू हैं। देखा जाए तो इस कहानी में कई ऐसी बातें हैं जो लोगों को अपनी लगती हैं। राजेंद्र बाला घोष की सहज लेखन शैली मन मोहती है। उनकी लेखनी उस दौर में एक नयी बयार सी नज़र आयी।

प्रतिष्ठित परिवार से आने वाली राजेंद्र बाला घोष को पिता राम प्रसन्न घोष और माता नीदरवासिनी प्यार से चारुबाला या रानी कहकर पुकारा करते थे। राजेंद्र बाला घोष ने जब अपनी साहित्यिक यात्रा शुरू की तो वो ‘बंग महिला’ के छद्मनाम से हिंदी में और ‘प्रवासिनी’ के नाम से बांग्ला में लिखने लगीं। पहचान छुपाने की आवश्यकता इसलिए थी क्योंकि राजेंद्र बाला घोष की लेखनी एक तेज़तर्रार वार करती थी। उनकी कटु आलोचना भी हुआ करती थी लेकिन पहचान छुपाकर वो लगातार पुरुष-सत्तात्मक समाज पर चोट किया करतीं।

राजेंद्र बाला घोष ने स्त्री स्वतंत्रता के लिए बहुत काम किया। यहाँ तक कि उन पर चारित्रिक लांछन भी लगाए गए लेकिन वो विभिन्न नारी मुद्दों जैसे स्वेच्छा से पति के चुनाव, तलाक़ देने, और पुनर्विवाह जैसे विचारों और अधिकारों की पैरवी की। उन्होंने नारी शिक्षा के महत्व को समझाया। उनके लेख लगातार समाज में नारियों की स्थिति पर सवाल उठाते और उसे सुधारने की प्रेरणा देते नज़र आते थे। उनके लेखन में एक नयी विचारधारा का जन्म हो रहा था जिसके कारण उन्हें समाज में कई लोगों के विरोध का सामना भी करना पड़ रहा था।

राजेंद्र बाला घोष को नारी मुक्ति आंदोलन की अग्रणियों में से एक भी कहा जा सकता है। 1904 से 1917 तक उनकी रचनाएँ अलग-अलग प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। उनकी कुछ कृतियों की बात की जाए तो:
दुलाई वाली- 1907 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित
भाई-बहन- 1908 में ‘बाल प्रभाकर’ में प्रकाशित
हृदय परीक्षा- 1915 में ‘सरस्वती पत्रिका’ में प्रकाशित
निबंध: चंद्रदेव से मेरी बातें

समाज के बदलाव के लिए आतुर राजेंद्र बाला घोष का विवाह पूर्ण चंद्रदेव के साथ हुआ था। जिन दिनों राजेंद्र बाला घोष अपने रचनात्मकता के उछाल पर थीं उसी दौरान वो निजी जीवन में कठिन परिस्थितियों से भी गुज़र रही थीं। उनके दो बच्चों के असमय निधन ने उन्हें मानसिक रूप से कमज़ोर किया हुआ था। इसके बाद 1916 में पति के देहांत ने उन्हें और दुर्बल किया। उन्होंने अपना सृजन सीमित कर लिया। 24 फ़रवरी 1949 को राजेंद्र बाला घोष का देहावसान हो गया। आज भी उनकी रचनाएँ समसामयिक नज़र आती हैं क्योंकि नारी मुक्ति के आंदोलन में अब भी उनकी तरह स्पष्ट विचार आवश्यक हैं।

Rajendra Bala Ghosh Bang Mahila

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