Rajkumari Amrit Kaur Biography ~ आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसी क्रांतिकारी महिला की जिन्होंने इस सूत्र पर काम किया कि समाज में बदलाव लाना हो तो स्वयं में बदलाव करना होगा, हम बात कर रहे हैं राजकुमारी अमृत कौर की। 2 फ़रवरी 1989 को लखनऊ में जन्मी अमृत कौर के पिता राजा हरनाम सिंह कपूरथला पंजाब के राजा थे। महारानी नरिंदर कौर उनकी माता थीं, राजकुमारी अमृत कौर सात भाइयों की इकलौती बहन थीं।
लाड प्यार से पली- बढ़ी अमृत कौर ने इंग्लैंड में शिक्षा प्राप्त की थी। उनका शुरुआती रहन- सहन भी उसी तरह का था। वो टेनिस की खिलाड़ी थी और कई पुरस्कार अपने नाम किए हुए थे। पिता हरनाम सिंह की पहचान गोपाल कृष्ण गोखले से थी जिनके कारण अमृत कौर को भी देश की तात्कालिक परिस्थितियों का पता चलने लगा। देश प्रेम की भावना तो अमृत कौर में जागने ही लगी थी। ऐसे में जब जालियाँवाला बाग़ हत्याकांड के बारे में उन्होंने सुना तो वो स्वयं को रोक नहीं पायीं और उन्होंने निर्णय किया कि वो शाही सुख सुविधाओं को त्यागकर देश की स्वतंत्रता की क्रांति में शामिल होना चाहती हैं।
अमृत कौर का सम्पर्क महात्मा गांधी से हुआ और वो देश हित में राष्ट्रपिता के साथ काम करने लगीं। 1930 में दांडी यात्रा में भी वो सक्रिय रूप से शामिल रहीं। यहाँ तक कि इस यात्रा के कारण उन्हें जेल की सज़ा भी काटनी पड़ी। 1934 से उन्होंने अपना घर पूरी तरह त्यागकर गांधी आश्रम को अपना घर बना लिया। ‘ भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान भी वो सहभागी रहीं और जेल की सज़ा भी काटी।
अमृत कौर 1937 में देश के नेताओं की प्रतिनिधि बनकर पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत बन्नू गयीं। इस वजह से ही ब्रिटिश सरकार ने अमृत कौर पर राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया। अमृत कौर ब्रिटिश हुकुमत से बिलकुल नहीं डरीं। बाद में भी अमृत कौर ने समाज सुधार के कई काम किए। उन्होंने सभी को मताधिकार दिए जाने की पैरवी की और इस क्षेत्र में काम भी किया।
स्वतंत्र भारत में अमृत कौर ऐसी पहली महिला हैं जिन्हें केन्द्रीय मंत्री बनने का मौक़ा मिला। वो देश की पहली महिला स्वास्थ्य मंत्री बनीं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान की स्थापना में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, वो इसकी पहली अध्यक्ष बनी। 1950 में वो विश्व स्वास्थ्य संगठन में अध्यक्ष बनीं। यहाँ इस बात का ज़िक्र करना ही होगा कि वो पहली महिला और एशियाई थीं जो इस पद पर आसीन हुईं।
अमृत कौर आजीवन महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए काम करती रहीं। वो पर्दाप्रथा और बाल विवाह के ख़िलाफ़ थीं।उनका मानना था कि शिक्षा निशुल्क और अनिवार्य होनी चाहिए। 1927 में उन्होंने अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की स्थापना भी की थी। 2 अक्टूबर 1964 को अमृत कौर ने दुनिया को अलविदा कहा लेकिन उनके विचार और उन्नत सोच आज भी महिलाओं के लिए प्रेरणादायीं हैं।
Rajkumari Amrit Kaur Biography