Bahadur Shah Zafar Shayari
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
ले गया छीन के कौन आज तिरा सब्र ओ क़रार
बे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी
उसकी आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू
कि तबीअ’त मिरी माइल कभी ऐसी तो न थी
अब की जो राह-ए-मुहब्बत में उठाई तकलीफ़
सख़्त होती हमें मंज़िल कभी ऐसी तो न थी
चश्म-ए-क़ातिल मिरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी
क्या सबब तू जो बिगड़ता है ‘ज़फ़र’ से हर बार
ख़ू तिरी हूर-शमाइल कभी ऐसी तो न थी
~ बहादुर शाह “ज़फ़र” Bahadur Shah Zafar Shayari
जानकारी: बहादुर शाह “ज़फ़र” मुग़ल साम्राज्य के आख़िरी बादशाह थे. उन्होंने 1857 में अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के ख़िलाफ़ हुए विद्रोह का नेतृत्व किया.
International Cricket Schedule 2023