चाँद पर शायरी (Chaand Shayari) ~ उर्दू शायरी में जज़्बात का बयान हर रंग हर अंदाज़ में होता रहा है. चाँद को भी उर्दू शायरी में आला मक़ाम हासिल है. चाँद और इससे जुड़े एहसासात के आसपास बहुत से उर्दू शायरों ने शाइरी की है. चाँद पर कुछ बेहतरीन शेर हम आपके सामने पेश कर रहे हैं.
ऐ सनम जिसने तुझे चाँद सी सूरत दी है
उसी अल्लाह ने मुझको भी मुहब्बत दी है
हैदर अली आतिश (Haider Ali Aatish)
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मुझको यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
जावेद अख़्तर (Javed Akhtar)
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वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गया
ये चाँद किसको ढूँढने निकला है शाम से
आदिल मंसूरी (Aadil Mansoori)
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तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों
ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है
वसीम बरेलवी (Waseem Barelvi)
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पूछा जो उनसे चाँद निकलता है किस तरह
ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ
आरज़ू लखनवी (Aarzoo Lucknowi)
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चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है
अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है
फ़रहत एहसास (Farhat Ehsaas)
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कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए
बशीर बद्र (Bashir Badr)
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सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी
जाँ निसार अख़्तर (JaaN Nisaar Akhtar)
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वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा
किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा
इक़बाल साजिद (Iqbal Sajid)
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शब बीती चाँद भी डूब चला ज़ंजीर पड़ी दरवाज़े में
क्यूँ देर गए घर आए हो सजनी से करोगे बहाना क्या
इब्न-ए-इंशा (Ibn e Insha)
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तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है
कैफ़ भोपाली (Kaif Bhopali)
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कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
इब्न-ए-इंशा (Ibn E Insha)
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रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद
परवीन शाकिर (Parvin Shakir)
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चाँद का ख़्वाब उजालों की नज़र लगता है
तू जिधर हो के गुज़र जाए ख़बर लगता है
वसीम बरेलवी (Waseem Barelvi)
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खेलने के लिए बच्चे निकल आए होंगे
चाँद अब उसकी गली में उतर आया होगा
कैफ़ भोपाली (Kaif Bhopali)
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फ़लक पे चाँद सितारे निकलते हैं हर शब
सितम यही है निकलता नहीं हमारा चाँद
पंडित जवाहर नाथ साक़ी (Pandit Jawahar Naath Saqi)
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बज़्म-ए-ख़याल में तिरे हुस्न की शम्अ जल गई
दर्द का चाँद बुझ गया हिज्र की रात ढल गई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (Faiz Ahmed Faiz)
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वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा
तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं
फ़रहत एहसास (Farhat Ehsaas)
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तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों
ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है
वसीम बरेलवी (Waseem Barelvi)
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उसके चेहरे की चमक के सामने सादा लगा
आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
इफ़्तिख़ार नसीम (Iftikhar Naseem)
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बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे
निदा फ़ाज़ली (Nida Fazli)
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महलों में हमने कितने सितारे सजा दिए
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया
बशीर बद्र (Bashir Badr)
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रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
राहत इंदौरी (Rahat Indori)
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आसमानों की तरफ़ फेंक दिया है मैंने
चंद मिट्टी के चराग़ों को सितारा कर के
राहत इंदौरी (Rahat Indori)
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शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
गुलज़ार (Gulzar)
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ईद का चाँद तुमने देख लिया
चाँद की ईद हो गई होगी
इदरीस आज़ाद (Idris Aazaad)
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इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
परवीन शाकिर (Parveen Shakir)
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इक शाम सी कर रखना काजल के करिश्मे से
इक चाँद सा आँखों में चमकाए हुए रहना
मुनीर नियाज़ी (Munir Niazi)
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रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद
परवीन शाकिर (Parveen Shakir)
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ज़िंदगी जब भी तिरी बज़्म में लाती है हमें
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें
शहरयार (Shaharyar)
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बुझा दिया है नसीबों ने मेरे प्यार का चाँद
कोई दिया मिरी पलकों पे अब जला न करे
क़तील शिफ़ाई (Qateel Shifai)
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वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा
किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा
इक़बाल साजिद (Iqbal Sajid)
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कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई
बशीर बद्र (Bashir Badr)
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यूँ होगा कि इन आँखों से आँसू न बहेंगे
ये चाँद सितारे भी ठहर जाएँगे इक दिन
साक़ी फ़ारुक़ी (Saqi Farooqui)
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वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गया
ये चाँद किस को ढूँडने निकला है शाम से
आदिल मंसूरी (Adil Mansoori)
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बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे
निदा फ़ाज़ली (Nida Fazli)
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कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए
बशीर बद्र (Bashir Badr)
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तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है
कैफ़ भोपाली (Kaif Bhopali)
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वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे
बशीर बद्र (Bashir Badr)
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उसी की शक्ल मुझे चाँद में नज़र आए
वो माह-रुख़ जो लब-ए-बाम भी नहीं आता
ग़ुलाम मुहम्मद क़ासिर (Ghulam Muhammad Qasir)
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चाँद है कहकशाँ है तारे हैं
कोई शय नामा-बर नहीं होती
इब्न-ए-इंशा (Ibn E Insha)
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चुभती है क़ल्ब ओ जाँ में सितारों की रौशनी
ऐ चाँद डूब जा कि तबीअ’त उदास है
अब्दुल हमीद अदम (Abdul Hameed Adam)
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बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद
कोई साज़िश छुपा रहा है चाँद
गुलज़ार (Gulzar)
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मुझसे लगे हैं इश्क़ की अज़्मत को चार चाँद
ख़ुद हुस्न को गवाह किए जा रहा हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी (Jigar Muradabadi)
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अपनी ही तेग़-ए-अदा से आप घायल हो गया
चाँद ने पानी में देखा और पागल हो गया
मुनीर नियाज़ी (Munir Niazi)
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ज़रा देख चाँद की पत्तियों ने बिखर बिखर के तमाम शब
तिरा नाम लिक्खा है रेत पर कोई लहर आ के मिटा न दे
बशीर बद्र (Bashir Badr)
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फिर तो ये ऊँचा ही होता जाएगा
बचपन के हाथों में चाँद आ जाने दे
वसीम बरेलवी (Waseem Barelvi)
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मुंडेर से झुक के चाँद कल भी
पड़ोसियों को जगा रहा था
गुलज़ार (Gulzar)
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जब सूरज भी खो जाएगा और चाँद कहीं सो जाएगा
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा
सईद राही (Saeed Rahi)
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हम तो रात का मतलब समझें ख़्वाब, सितारे, चाँद, चराग़
आगे का अहवाल वो जाने जिस ने रात गुज़ारी हो
इरफ़ान सिद्दीक़ी (Irfan Siddiqui)
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कल फिर चाँद का ख़ंजर घोंप के सीने में
रात ने मेरी जाँ लेने की कोशिश की
गुलज़ार (Gulzar)
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‘मुनीर’ देख शजर चाँद और दीवारें
हवा ख़िज़ाँ की है सर पर शब-ए-बहार में हूँ
मुनीर नियाज़ी (Munir Niazi)
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सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी
जाँ निसार अख़्तर (JaaN Nisar Akhtar)
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जिस तरफ़ तू है उधर होंगी सभी की नज़रें
ईद के चाँद का दीदार बहाना ही सही
अमजद इस्लाम अमजद (Amjad Islam Amjad)
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वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं
अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो
इब्न-ए-इंशा (Ibn E Insha)
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सूरज सितारे चाँद मिरे साथ में रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मिरे हाथ में रहे
राहत इंदौरी (Rahat Indori)
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तुम अपने चाँद तारे कहकशाँ चाहे जिसे देना
मिरी आँखों पे अपनी दीद की इक शाम लिख देना
ज़ुबैर रिज़वी (Zubair Rizwi)
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ग़ज़ब है ‘दाग़’ के दिल से तुम्हारा दिल नहीं मिलता
तुम्हारा चाँद सा चेहरा मह-ए-कामिल से मिलता है
दाग़ देहलवी (Daagh Dahelvi)
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बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
चाँद भी ऐन चैत का उसपे तिरा जमाल भी
परवीन शाकिर (Parveen Shakir)
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क्यूँ मेरी तरह रातों को रहता है परेशाँ
ऐ चाँद बता किस से तिरी आँख लड़ी है
साहिर लखनवी (Sahir Lucknowi)
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किस शबाहत को लिए आया है दरवाज़े पे चाँद
ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़रा अपना सितारा देखना
परवीन शाकिर (Parveen Shakir)
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भूक चेहरों पे लिए चाँद से प्यारे बच्चे
बेचते फिरते हैं गलियों में ग़ुबारे बच्चे
बेदिल हैदरी (Bedil Haidary)
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हिज्र में शब भर दर्द-ओ-तलब के चाँद सितारे साथ रहे
सुब्ह की वीरानी में यारो कैसे बसर औक़ात करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (Faiz Ahmed Faiz)
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चाँद ने तान ली है चादर-ए-अब्र
अब वो कपड़े बदल रही होगी
जौन एलिया (Jaun Eliya)
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रहने दो अभी चाँद सा चेहरा मिरे आगे
मय और पिलाओ कि अभी रात बहुत है
साबिर दत्त (Sabir Dutt)
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चाँद की नब्ज़ देखना उठ कर
रात की साँस गर्म लगती है
गुलज़ार (Gulzar)
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भीड़ में रह कर अपना भी कब रह पाता
चाँद अकेला है तो सब का लगता है
वसीम बरेलवी (Waseem Barelvi)
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चाँद सा मिस्रा अकेला है मिरे काग़ज़ पर
छत पे आ जाओ मिरा शेर मुकम्मल कर दो
बशीर बद्र (Bashir Badr)
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वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा
किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा
इक़बाल साजिद (Iqbal Sajid)
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चाँद होता न आसमाँ पे अगर
हम किसे आप सा हसीं कहते
गुलज़ार (Gulzar)
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वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं
अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो
इब्न-ए-इंशा (Ibn E Insha)
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न शब को चाँद ही अच्छा न दिन को मेहर अच्छा
ये हम पे बीत रही हैं क़यामतें कैसी
उबैदुल्लाह अलीम (Ubaidullah Aleem)
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हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही
क्या चाँद तारे क्या मुर्ग़ ओ माही
अल्लामा इक़बाल (Allama Iqbal)
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आ रही है जो चाप क़दमों की
खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद
गुलज़ार (Gulzar)
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चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है
चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम (Sheikh Zahooruddin Hatim)
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पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए
पानी में अक्स चाँद का देखा तो रो दिए
साग़र सिद्दीक़ी (Saaghar Siddiqui)
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देखा नहीं वो चाँद सा चेहरा कई दिन से
तारीक नज़र आती है दुनिया कई दिन से
जुनैद हज़ीं लारी (Junaid HazeeN Laari)
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जाम में घोल कर हुस्न की मस्तियाँ चाँदनी मुस्कुराई मज़ा आ गया
चाँद के साए में ऐ मिरे साक़िया तू ने ऐसी पिलाई मज़ा आ गया
फ़ना बुलंदशहरी (Fana Bulandshahri)
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दीवाना-वार चाँद से आगे निकल गए
ठहरा न दिल कहीं भी तिरी अंजुमन के बा’द
कैफ़ी आज़मी (Kaifi Azmi)
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हम-सफ़र हो तो कोई अपना-सा
चाँद के साथ चलोगे कब तक
शोहरत बुख़ारी (Shohrat Bukhari) ~ Chaand Shayari