fbpx
Hasrat Mohani Best Sher

Hasrat Mohani Best Sher

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है

चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है

भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं
इलाही तर्क-ए-उल्फ़त पर वो क्यूँकर याद आते हैं

नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं

आरज़ू तेरी बरक़रार रहे
दिल का क्या है रहा रहा न रहा

इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हम
कुछ इस गुनाह की भी सज़ा है तुम्हारे पास

हम क्या करें अगर न तिरी आरज़ू करें
दुनिया में और भी कोई तेरे सिवा है क्या

तेरी महफ़िल से उठाता ग़ैर मुझको क्या मजाल
देखता था मैं कि तू ने भी इशारा कर दिया

ऐसे बिगड़े कि फिर जफ़ा भी न की
दुश्मनी का भी हक़ अदा न हुआ

मुझको देखो मिरे मरने की तमन्ना देखो
फिर भी है तुमको मसीहाई का दा’वा देखो

रोग दिल को लगा गईं आँखें
इक तमाशा दिखा गईं आँखें

मिल के उनकी निगाह-ए-जादू से
दिल को हैराँ बना गईं आँखें

मुझको दिखला के राह-ए-कूचा-ए-यार
किस ग़ज़ब में फँसा गईं आँखें

उसने देखा था किस नज़र से मुझे
दिल में गोया समा गईं आँखें

महफ़िल-ए-यार में ब-ज़ौक़-ए-निगाह
लुत्फ़ क्या क्या उठा गईं आँखें

हाल सुनते वो क्या मिरा ‘हसरत’
वो तो कहिए सुना गईं आँखें

आपने क़द्र कुछ न की दिल की
उड़ गई मुफ़्त में हँसी दिल की

मिल चुकी हम को उनसे दाद-ए-वफ़ा
जो नहीं जानते लगी दिल की

मर मिटे हम न हो सकी पूरी
आरज़ू तुमसे एक भी दिल की

वो जो बिगड़े रक़ीब से ‘हसरत’
और भी बात बन गई दिल की

आशिक़ो हुस्न-ए-जफ़ाकार का शिकवा है गुनाह
तुम ख़बरदार ख़बरदार न ऐसा करना

तुझ से गिरवीदा यक ज़माना रहा
कुछ फ़क़त मैं ही मुब्तला न रहा

आपको अब हुई है क़द्र-ए-वफ़ा
जब कि मैं लाइक़-ए-जफ़ा न रहा

मैं कभी तुझसे बद-गुमाँ न हुआ
तू कभी मुझसे आश्ना न रहा

Hasrat Mohani Best Sher

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *