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ननकू के क़िस्से

जैसे ही ननकू, रसगुल्ला और चीकू, रॉकी चाचा और राखी बुआ के साथ घर पहुँचे माँ झट से रसगुल्ला को राखी बुआ की गोद से लेकर ढेर सारे सवाल पूछने लगीं

“कैसा है रसगुल्ला..क्या बोले डॉक्टर?- माँ रसगुल्ला के पैरों में बंधी पट्टी को ध्यान से देखने लगी

अब रसगुल्ला ख़ुश दिख रहा था और ऐसा लग रहा था कि उसको दर्द भी कम है। यही नहीं बाक़ी सभी के चेहरे पर भी अलग सी मुस्कान थी। हो भी क्यों न सबने रसगुल्ला को पट्टी बँधवाने के बाद वापस आते-आते गाँव के नुक्कड़ पर खड़े होकर जलेबी और कचौरी का मज़ा जो उठाया था। माँ ने ध्यान से सबके चेहरे को देखा तो उन्हें लगा कि दाल में कुछ काला है। माँ सोच ही रही थीं कि मौसी दादी बोलीं-

“खा आए सारे..कचौरी- जलेबी..हाँ?”- माँ ने चौंककर मौसी दादी को देखा तो वो माँ को देखकर बोलीं- “चेहरे की मुस्कान देख ले सुमन..सब समझ में आ जाता है”

“वही तो मौसीजी..मैं सोच रही थी कितना मुस्कुरा रहे हैं सब के सब”- माँ मुस्कुराते हुए बोलीं

तभी राखी बुआ ने माँ के सामने दो पैकेट बढ़ा दिए- “भाभी आप भी अपने चेहरे की मुस्कान बढ़ा लीजिए”

माँ ने रसगुल्ला को दादी और मौसी दादी के पास बिठाया और पैकेट लेकर अंदर चली गयीं। ननकू दादी और मौसी दादी को अस्पताल के बारे में बताने लगा..चीकू भी रसगुल्ला के पास बैठा हुआ उसको देखता रहा। रॉकी चाचा अपने दोस्तों से मिलने बाहर चले गए और राखी बुआ माँ के पास किचन में। वो बात कर ही रहे थे कि रसगुल्ला हल्के से उठने लगा और चलने की कोशिश करने लगा..चीकू ज़ोर से भौंका तो सबका ध्यान रसगुल्ला पर गया

“रसगुल्ला..नहीं उठना आज..दो दिन के बाद तू ठीक हो जाएगा..सुना था न डॉक्टर साहब बोले थे”- ननकू रसगुल्ला को बिठाता हुआ बोला

रसगुल्ला मुँह बनाकर बैठ गया। उसे अब दर्द कम हो रहा था तो उसे बैठे रहना अच्छा नहीं लग रहा था। पर उसका ध्यान रखने के लिए ननकू और चीकू भी आज खेल नहीं रहे थे। ननकू उठा और कमरे से अपना बैग ले आया दादी के पास बैठकर कविता लिखने लगा..रसगुल्ला भी चुपके से सरककर उसके पास बैठ गया और चीकू भी सामने बैठकर देखने लगा। ननकू ने लिखा:

“सीढ़ी से गिर गया रसगुल्ला
मच गया सारे घर में हल्ला
डॉक्टर बोले रसगुल्ला को
ठीक करेंगे लगेंगे दिन दो
ठीक हो जाएगा रसगुल्ला
मिलकर करेंगे हल्ला गुल्ला”

मौसी दादी को दादी ननकू की कविता के बारे में बताने लगीं और दोनों फिर बातों में लग गयीं। नाश्ता तो हो गया था लेकिन अब खाने का टाइम हो गया था, यूँ तो रसगुल्ला को अब दर्द कम हो रहा था लेकिन फिर भी एक्स्ट्रा प्यार मिल रहा था तो उसे बड़ा अच्छा लग रहा था। यहाँ तक कि चीकू भी रसगुल्ला का बहुत ध्यान रख रहा था।

राखी बुआ रसगुल्ला के लिए चावल दाल मिला लायीं..और रसगुल्ला को खिलाने लगीं। ननकू और चीकू ने अपना-अपना खाना खाया..रसगुल्ला ने न- नकार करके खाना खाया लेकिन जब बारी आयी दवाई की तो रसगुल्ला पहले तो झट से दवाई खा ली लेकिन जैसे ही कड़वा स्वाद आया कि रसगुल्ला ने दवाई वापस निकाल दी।

अब तो सब रसगुल्ला को दवाई खिलाने में लग गए पर रसगुल्ला तो दवाई का टेस्ट ले चुका था वो सब गोलियाँ मुँह में रखने को भी तैयार नहीं था। किसी को समझ ही नहीं आ रहा था कि रसगुल्ला को दवाई खिलाएँ तो कैसे..इतने में राखी बुआ को कुछ सूझा उन्होंने माँ की गोद में रसगुल्ला को दिया और रसोई में चली गयीं। सबको समझ ही नहीं आ रहा था कि राखी बुआ करने क्या वाली हैं थोड़ी देर में राखी बुआ किचन से कटोरी में कुछ लेकर आयीं..और बोलीं

“इसके साथ दवाई खाएगा भाभी..”

जब माँ ने देखा तो राखी बुआ कटोरी में आम काटकर लायी थीं बस आम के टूकड़े में दवाई छुपाकर रसगुल्ला को खिलायी गयी। आम के बीच तो रसगुल्ला को पता ही नहीं चला कि उसने कब दवाई खा ली। ननकू और चीकू को ये देखकर मज़ा आ गया और दोनों नाचने लगे उन्हें देखकर रसगुल्ला भी कूदने को तैयार हो गया कि माँ ने झट से उसे पकड़ा। ननकू और चीकू भी झट से बैठ गए। थोड़ी देर में दवाई के असर से रसगुल्ला तो सो गया। रसगुल्ला के उठने तक ननकू और चीकू बाहर जाकर खेलने लगे, रसगुल्ला उठ जाएगा फिर तो ननकू और चीकू खेलेंगे नहीं वरना रसगुल्ला का भी खेलने का मन करेगा न।

(तो भई रसगुल्ला ने दवाई खा ली है अब तो वो सो भी गया। दवाई का असर होगा तो रसगुल्ला जल्दी से ठीक भी हो जाएगा। एक बार ठीक हो जाए फिर तो रसगुल्ला भी शामिल हो जाएगा ननकू और चीकू की मस्ती में। अभी तो रसगुल्ला, राखी बुआ का लाडला बन गया है और राखी बुआ का डर भी पूरी तरह ग़ायब हो गया है चीकू से भी तो उनकी दोस्ती हो गयी है..इस दोस्ती में और कितनी मस्ती होगी ये जानेंगे कल)

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