Rohini Bai Paraniha Biography ~ आज जिस वीरांगना की बात हम करने वाले हैं वो हैं रोहिणी बाई परगनिहा। 1919 में रोहिणी बाई का जन्म तर्रा गाँव के एक बड़े घर में हुआ था।पिता शिवलाल प्रसाद गाँव के बड़े मालगुज़ार थे। देहुती बाई की बेटी रोहिणी बचपन से ही बड़े लाड प्यार से पली थीं। 12 वर्ष की उम्र में उफरा गाँव के मालगुज़ार बालकृष्ण परगनिहा के बेटे माधव प्रसाद परगनिहा के साथ रोहिणी बाई का विवाह हो गया। अभी तो वधू भेष उतरा भी नहीं था कि पति ने कहा जेल जाने के लिए तैयार रहें। इसका कारण था कि उनके पति विद्यालय में शिक्षक थे और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हुए थे। वो चाहते थे कि उनकी पत्नी भी इस काम में उनकी सहायक बनें।
रोहिणी बाई के लिए ये तो मानो उनकी मन माँगी मुराद ही पूरी हो गयी। 10 साल की उम्र से ही वो छतीसगढ़ की जानी- मानी सत्याग्रही डॉक्टर राधाबाई की टोली का हिस्सा थीं। उस टोली में सबसे छोटी थीं इसलिए सबकी चहेती भी थीं। जब राधा बाई की टोली चलती तो रोहिणी बाई नन्हें हाथों में झंडा लेकर सबसे आगे चला करती थीं और टोली के साथ ज़ोर- ज़ोर से नारा लगातीं, “जान चाहे भले ही गँवाना, पर न झंडा ये नीचे झुकाना”। वो दुकानों में जाकर लोगों से विदेशी सामान न लेने की अपील करते और दुकानदारों को समझाते। शादी के तुरंत बाद भी वो इन सत्याग्रही आंदोलनों का हिस्सा बन गयीं।
ऐसे ही एक मौक़े पर जब पूरी टोली नारा लगाते आगे बढ़ी तो ब्रिटिश सिपाही उनके सामने आ गए। वो बारह साल की रोहिणी बाई के हाथ से झंडा छीनने लगे, लेकिन रोहिणी बाई ने कसकर झंडे को पकड़ लिया। चार जवान उन्हें पकड़कर ज़मीन पर घसीटने लगे फिर भी उन्होंने झंडा नहीं छोड़ा। अब उन पर डंडे बरसने लगे लेकिन वो अटल रहीं। जीवन के अंतिम पलों तक ये घसीटने से छिलने के निशान उनके शरीर पर बना रहा। एक और मौक़े पर जब वो विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए विदेशी वस्तुओं की एक दुकान के सामने आंदोलन कर रही थीं तो उन्हें इस आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया और मुक़दमा चलाकर चार माह के लिए जेल की सज़ा सुना दी गयी। यहाँ पहली बार उनका नाम रोहिणी बाई से रोहिणी बाई परगनिहा लिखा गया।
घर में लाड से पली और पति के सानिध्य के रहने वालीं रोहिणी बाई पहले तो जेल के वातावरण से घबरायीं लेकिन जैसे ही वो महिला बैरक में पहुँची अपनी पुरानी साथियों को देखकर ख़ुश हो गयीं। उन्हें जेल की वेशभूषा दी गयी, घुटने से ऊपर तक की धोती। एक कम्बल ओढ़ने और एक बिछाने के लिए मिला, लोहे के तसले में पानी पीने और खाने के लिए मिलता।सोने के लिए चबूतरा था जिसे वो श्मशान का चबूतरा कहा करती थीं। जब खाना मिला तो चावल में कीड़े- मकोड़े कंकड़ देखकर किसी तरह दो- चार दाने मुँह में रखती थीं।
जेल का जीवन जितना कठिन था उससे भी कठिन हुआ करती थी सज़ा। 20 किलो गेहूँ एक दिन में पीसने के लिए मिलते थे जिसे खड़े होकर पीसना पड़ता था। छोटी सी रोहिणी बाई वहाँ तक पहुँच ही नहीं पाती थी उन्हें किसी चीज़ पर चढ़ना पड़ता और वो काम करना पड़ता। इसके साथ ही एक बोरा चावल भी रोज़ चुनने मिलता, कुएँ से पानी खींचना पड़ता, नन्ही रोहिणी बाई के हाथ छिल जाते। कभी गेहूँ पीसते हाथ रुक जाते तो कोड़े बरसते। ये यातनाएँ इसलिए थीं कि स्वतंत्रता सेनानी माफ़ी माँग लें लेकिन ये सब झेलकर भी किसी ने माफ़ी नहीं माँगी। ऐसी थी हमारी वीरांगनाएँ, जो कभी अपना सिर झुकाना नहीं चाहती थीं।
1942 के आंदोलन में भी रोहिणी बाई जेल गयी थीं। इस दौरान तक़रीबन 24 महिला सत्याग्रही जेल गयीं थीं।रोहिणी बाई हर अधिवेशन में सेवा दल की सैनिक बनकर जाती थीं उनका पद हुआ करता था एक सेना नायक का।रोहिणी बाई केसरिया साड़ी, सफ़ेद ब्लाउज़, सफ़ेद मोज़ा, जूता और गले में नीला रूमाल पहने महिलाओं के साथ लाठी लेकर व्यायाम किया करती थीं। 1933 में जब गाँधी जी रायपुर पहुँचे तो रोहिणी बाई ने अन्य महिलाओं के साथ घर-घर जाकर पैसे इकट्ठा किए उस समय ये रक़म ग्यारह हज़ार की थी। इन रुपयों को गाँधीजी को सौपने की ज़िम्मेदारी भी रोहिणी बाई को ही मिली।
रोहिणी बाई गाँधीजी के सानिध्य में सात आठ दिनों तक रहीं। उनके साथ धमतरी, महासमुंद, भाटापारा, बलौदाबाज़ार, कुरुद गयीं। मोती बाग में खादी की प्रदर्शनी लगी तो रोहिणी बाई ने चरखा कताई में पहला स्थान पाया और उन्हें तीन गट्ठे कपड़े इनाम में दिए गए। वो आंदोलनों के लिए पदयात्रा पर जाया करतीं। रायपुर से शिवरीनारायण तक नब्बे मील की यात्रा करतीं जिसके लिए रोज़ लगभग 9 मील चला करतीं।
डॉक्टर राधाबाई के साथ सफ़ाई रोहिणी बाई भी सफ़ाई कामगारों के बच्चों की देखभाल करतीं, उन्हें कहानियाँ सुनाया करतीं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वो हर 15 अगस्त और 26 जनवरी के मौक़े पर गाँधी चौक के झंडा- रोहण में ज़रूर शामिल हुआ करती थीं। अंतिम समय तक वो तिरंगे की याद करके प्रसन्न हुआ करतीं थीं। एक ऐसी वीरांगना जिनकी बातें ही हमें देशप्रेम का सच्चा अर्थ समझा रही हैं। उनकी स्मृतियों को हमारा नमन।
Rohini Bai Paraniha biography