Sach Shayari ~
सादिक़ हूँ अपने क़ौल का ‘ग़ालिब’ ख़ुदा गवाह
कहता हूँ सच कि झूठ की आदत नहीं मुझे
मिर्ज़ा ग़ालिब
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झूठ के आगे पीछे दरिया चलते हैं
सच बोला तो प्यासा मारा जाएगा
वसीम बरेलवी
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इश्क़ में कौन बता सकता है
किसने किससे सच बोला है
अहमद मुश्ताक़
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जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
बशीर बद्र
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अपने अंदर हँसता हूँ मैं और बहुत शरमाता हूँ
ख़ून भी थूका सच-मुच थूका और ये सब चालाकी थी
जौन एलिया
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सच तो कह दूँ मगर इस दौर के इंसानों को
बात जो दिल से निकलती है बुरी लगती है
सलीम अहमद
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इतना सच बोल कि होंठों का तबस्सुम न बुझे
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा
निदा फ़ाज़ली
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क्या जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है कि सच-मुच तिरा हूँ मैं
क़तील शिफ़ाई
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मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूठ बोलेगा और ला-जवाब कर देगा
परवीन शाकिर
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सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है
चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी
जलील मानिकपूरी
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दिल को सँभाले हँसता बोलता रहता हूँ लेकिन
सच पूछो तो ‘ज़ेब’ तबीअत ठीक नहीं होती
ज़ेब ग़ौरी
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झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया
वसीम बरेलवी
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कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
परवीन शाकिर
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तो क्या सच-मुच जुदाई मुझ से कर ली
तो ख़ुद अपने को आधा कर लिया क्या
जौन एलिया
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ज़हर मीठा हो तो पीने में मज़ा आता है
बात सच कहिए मगर यूँ कि हक़ीक़त न लगे
फ़ुज़ैल जाफ़री
Sach Shayari