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Satyajeet Ray KahaniSahitya Duniya

Satyajeet Ray Kahani कॉर्वस- सत्यजीत रे

घनी कहानी छोटी शाखा: सत्यजीत रे की कहानी “कॉर्वस” का पहला भाग
भाग- 2

(अब तक आपने पढ़ा..एक वैज्ञानिक अपनी कहानी बयान कर रहे हैं। वो बताते हैं कि किस तरह उन्हें बचपन से पक्षियों में दिलचस्पी हुआ करती थी और वो उनके साथ को महसूस किया करते थे। इस बात को आगे बढ़ाते हुए वो अपने घर की पालतू मैना के बारे में बताते हुए कहते हैं कि कैसे उसने उन्हें आश्चर्य में डालते हुए एक समय अचानक से “भूचाल- भूचाल” चिल्लाना शुरू कर दिया था। इसके बाद से ही वैज्ञानिक के मन में पक्षियों के लिए एक उत्साह पैदा हो गया था, लेकिन उन्होंने पक्षियों के बारे में जानने की जिज्ञासा तो पैदा कर ली थी पर वो उस ओर कुछ काम नहीं कर पाए क्योंकि वो अपने शोध कार्यों में व्यस्त रहे..साथ ही उनके पालतू बिल्ले न्यूटन को भी पक्षियों से कोई लगाव नहीं था। लेकिन कुछ समय बाद वैज्ञानिक ने अपने घर आने वाले पक्षियों पर नज़र रखना शुरू किया और उन्हें एक सफलता हाथ लगी। एक कौवा उनका ध्यान अपनी ओर खींचने में सफल रहा, क्योंकि वो बाक़ी पक्षियों से अलग पंजे में पेंसिल पकड़े उसे मेज़ पर घिसता रहता है, मानो कुछ लिखना चाह रहा हो। और एक दिन तो वो वैज्ञानिक को अचरज में डालकर दियासलाई की तीली से आग जलाने का यत्न करता नज़र आता है। दुर्घटना की आशंका से वैज्ञानिक जब इस कौवे को उड़ाते हैं तो वो एक अलग-सी आवाज़ करता हुआ जाता है मानो शैतानी हँसी हँस रहा हो। वैज्ञानिक उस पक्षी के क़ायल हो जाते हैं। अब आगे…)

2 सितम्बर

मैंने अपनी ‘ऑरनिथन’ मशीन बना ली है। सवेरे से यह कौआ प्रयोगशाला में इधर-उधर उछलकूद मचा रहा है। जैसे ही मैंने मशीन मेज़ पर रखी और पिंजरे का दरवाज़ा खोला, यह कौआ उछलकर अचानक भीतर जा घुसा। ऐसा लगता है कि यह पढ़ना सीखने के लिए बहुत बेताब है। भाषा का बुनियादी ज्ञान इसके लिए ज़रूरी होगा इसलिए मैंने सोचा है कि पहले तो इसे बांग्ला की प्रारंभिक शिक्षा दूँ। चूँकि सारे पाठ और निर्देश पहले से ही रिकॉर्ड किए हुए रखे हैं, इसलिए मुझे करना कुछ नहीं है , केवल कुछ बटन भर दबाने हैं। अलग-अलग चैनलों में अलग-अलग विषय वर्गीकृत किए हुए रखे गए हैं। एक और आश्चर्यजनक चीज़ मैंने नोट की है। जब भी मैं मशीन का बटन दबाता हूँ- कौए की सब हरकतें एकाएक रूक सी जाती हैं और इसकी आँखें मुँदने लग जाती हैं। कौवे जैसे किसी चंचल पक्षी के लिए यकीनन कितनी अस्वाभाविक बात है न यह! (Satyajeet Ray Kahani)

चिली की राजधानी सेन्टियागो में दुनिया भर के बड़े-बड़े पक्षी विषेषज्ञों का एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन नवम्बर में होगा। मैंने मिनैसोटा के मेरे एक पक्षी विषेशज्ञ दोस्त, रूफस ग्रेनफैल को पत्र लिख डाला है। अगर भई मेरा यह कौआ थोड़ी बहुत मानव-बुद्धि विकसित कर डाले, तो मैं इसे सम्मेलन में ले जाकर भाषण के साथ प्रदर्शित कर सकता हूँ ।

4 अक्टूबर

लैटिन में काग-परिवार को ‘कॉर्वस’ कहते हैं। अपने इस शिष्य का नाम भी मैंने ‘कॉर्वस’ ही रख दिया है। पहले शुरू-शुरू में नाम लेते ही वह मेरी तरफ देखता भर था पर अब तो बोलकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है । ‘कॉर्वस’ इन दिनों अंग्रेजी सीख रहा है। बाहर के मुल्कों में अंग्रेजी की जानकारी भी तो लाज़मी है न! सवेरे आठ से नौ बजे के बीच इसका प्रशिक्षण शुरू होता है । हाँ, बाक़ी वक़्त यह कमरे में ही फुदकता फिरता है। रात को यह मेरे बगीचे के उत्तर पश्चिमी कोने में उगे आम के पेड़ पर सो जाता है।

मुझे लगता है कि न्यूटन ने अब कॉर्वस को मान्यता दे दी है। आज की घटना के बाद तो ऐसा लगता है कि दोनों में जल्दी ही गहरी छनने लगेगी। आज दोपहर का ही क़िस्सा है। मेरी आराम कुर्सी के पीछे बिल्ला न्यूटन लेटा सुस्ता रहा था, पर कॉर्वस नदारद था। मैं बैठा-बैठा कुछ लिख रहा था कि पंखों की फड़फड़ाहट सुनाई दी और श्रीमान् कॉर्वस कमरे में नमूदार हुए । उसकी चोंच में दबी हुई थी एक मछली, जिसे झुक कर उसने न्यूटन के क़दमों में डाल दिया और आप खिड़की पर बैठकर लगा नज़ारा देखने।

ग्रेलफैल का जवाब आ गया है। उसने लिखा है कि पक्षी विशेषज्ञों के सम्मेलन के लिए वह मुझे निमंत्रण भिजवा रहा है। मुझे निर्धारित तारीख़ को कॉर्वस के साथ सैन्टियागो पहुँचना ही होगा।

20 अक्टूबर

पिछले दो सप्ताहों में काम में आशातीत प्रगति हुई है। पंजों में पैंसिल दबाये हुए कॉर्वस अंग्रेज़ी वर्णमाला और संख्याएँ लिख रहा है। उसने मेज़ पर रखे कागज़ पर खड़े होकर अपना नाम लिखा- सी-ओ-आर-वी-यू-एस। अब वह सीधी सरल जोड़ बाक़ी कर लेता है। उसे यह भी जानकारी है कि इंग्लैण्ड की राजधानी का क्या नाम है? यहाँ तक कि वह मेरा नाम भी लिख लेता है। पहले मैंने इसे माहों, तारीख़ों और दिनों के नाम सिखलाए थे। आज जब मैंने जानना चाहा कि आज कौन सा वार है तो साफ सुथरे अक्षरों में इसने लिखा- एफ-आर-आई-डी-ए-वाई।

कॉर्वस खाना खाने के तौर तरीक़ों में भी अपनी बुद्धिमानी और हुनर का परिचय दे रहा है। आज जब इसके लिए एक प्लेट में मैंने टोस्ट तथा दूसरे में जैली रखी तो चोंच से इसने जैली टोस्ट पर लगाकर टुकड़ा मुँह में डाला।

22 अक्टूबर

अब इस बात का स्पष्ट प्रमाण मुझे मिल गया है कि कॉर्वस दूसरे आम कौओं से अलग रहना चाहता है। आज दोपहर को मूसलाधार बरसात हुई और मैंने देखा कि गड़गड़ाहट की आवाज़ के साथ ही शीशम का एक पेड़ उखड़कर धराशायी हो गया। जब बरसात रूकी और शाम हुई तो कौओं की काँव-काँव ने जैसे आसमान ही सिर पर उठा लिया। आस-पड़ौस के सब कौए टूटे हुए पेड़ को घेर कर क्रंदन कर रहे थे। मैंने यह जानने के लिए कि आख़िर माजरा क्या है- अपने नौकर प्रहलाद को भेजा। उसने बतलाया – “साब। पेड़ के नीचे एक कौआ मरा पड़ा है और इसी से दूसरे कौंए चिल्ल-पौं मचा रहे हैं“ मैं समझ गया कि वह कौआ निश्चय ही बिजली गिरने से मरा होगा। ताज्जुब है कॉर्वस ने न तो कमरे से बाहर कदम ही रखा और न ही इस दुर्घटना से वह किसी तरह प्रभावित ही दिखा। (Satyajeet Ray Kahani)

वह तो अपने पंजों से पैंसिल दबाये -‘प्राइम नंबर्स’ लिख रहा था – 3,5,7,9,11,13 ………..

क्रमशः

घनी कहानी छोटी शाखा: सत्यजीत रे की कहानी “कॉर्वस” का तीसरा भाग
घनी कहानी छोटी शाखा: सत्यजीत रे की कहानी “कॉर्वस” का चौथा भाग
घनी कहानी छोटी शाखा: सत्यजीत रे की कहानी “कॉर्वस” का पाँचवाँ भाग
घनी कहानी छोटी शाखा: सत्यजीत रे की कहानी “कॉर्वस” का अंतिम भाग

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