15 साल तक एक साथ रहने की वजह से पत्नी ने कभी पति के नाम कोई चिट्ठी न लिखी, अब जबकि वो तीर्थ पर है तो उसने एक चिट्ठी लिखने की सोची. इस पत्र में वो बचपन में जो गुज़री वो बातें साझा करती है और बताती है कि किस तरह उसकी शादी हुई और वो माँ बनी तो लेकिन उसकी बेटी जन्म होते ही मर गयी और वो मझली बहु ही रह गयी. वो बताती है कि कैसे उसके घर के अन्दर औरतों का अनादर होता है और इसी वजह से शायद जब वो मौत के मुहाने पर थी तब भी उसे डर न लगा. इस बीच उसकी बड़ी जेठानी की बहन बिंदु अपने चचेरे भाइयों से बेहद परेशान होकर अपनी बहन के पास आ जाती है लेकिन जब बड़ी जेठानी के पति को ये बात पसंद नहीं आती तो उसे भी अपनी बहन बला की तरह लगने लगती है. बिंदु को घर में नौकरानियों जैसे काम दे दिए गए. उसकी घर में बुरी हालत देख लेखिका उसे अपने अपने साथ कर लेती है. अपने पत्र के आगे के हिस्से में वो अपने पति से शिकायत करती है कि किस तरह बिंदु के साथ घरवालों ने भेदभाव जारी रक्खा, इसके अतिरिक्त उसने पत्र में बताया कि किस तरह से बिंदु उससे स्नेह रखती थी और कैसे उसका मन लग जाता था. वो बताती है कि घर के लोग बिंदु के ऊपर किसी तरह का इलज़ाम लगाने से न चूकते थे. वो कहती है कि जिस तरह तुम लोगों का क्रोध बढ़ रहा था उसी तरह बिंदु की उम्र भी बढ़ रही थी और तुम लोग अस्वाभाविक ढंग से परेशान हो रहे थे. घर के लोगों ने बिंदु की मर्ज़ी की परवाह न करते हुए बिंदु की शादी करा दी, बिंदु को शादी के दूसरे दिन मालूम हुआ कि लड़का पागल है. ये भी ज़ाहिर हुआ कि सास भी आधी पागल है. किसी तरह बिंदु तीसरे रोज़ ही वहाँ से भाग आई. इसके बाद हंगामे का माहौल बन गया. हंगामे की शान्ति के लिए बिंदु अपने ससुराल वालों के साथ चली गयी. परन्तु पत्र लेखिका को बिंदु की चिंता सताने लगी और इसका हल निकालने के लिए उसने अपने भाई शरद को कलकत्ते से बुला लिया. शरद प्रदर्शनकारी था और इस लिहाज़ से वो इस तरह के काम कर सकता था. शरद के घर आ जाने से पत्र लेखिका के पति को अच्छा न लगा. बहरहाल, बिंदु इस बीच एक और बार भागी और अपने चचेरे भाईयों के पास गयी जिन्होंने उसे फ़ौरन ही ससुराल वालों के हवाले कर दिया. शरद को उसकी बहन ने ये ज़िम्मेदारी दी कि किसी तरह वो बिंदु को पुरी की ट्रेन में बैठाए. शरद इस काम को करता उसके पहले ही उसे मालूम हुआ कि बिंदु ने आत्महत्या कर ली. इस बात पर भी लोग बिंदु को ही कोसने लगे. अब आगे…
ऐसा ही था बिंदु का दुर्भाग्य। जितने दिन जीवित रही, तनिक भी यश नहीं मिल सका। न रूप का, न गुण का – मरते वक्त भी यह नहीं हुआ कि सोच-समझकर कुछ ऐसे नए ढंग से मरती कि दुनिया-भर के लोग खुशी से ताली बजा उठते। मरकर भी उसने लोगों को नाराज ही किया।
जीजी कमरे में जाकर चुपचाप रोने लगीं, लेकिन उस रोने में जैसे एक सांत्वना थी। कुछ भी सही, जान तो बची, मर गई, यही क्या कम है। अगर बची रहती तो न जाने क्या हो जाता।