Urdu ke ustaad shayar: हम यहाँ चार ग़ज़लें पेश कर रहे हैं. मीर, ग़ालिब, इक़बाल और फ़ैज़ की इन ग़ज़लों के हमने चार-चार शेर ही लिए हैं. हमने सभी ग़ज़लों में रदीफ़ और क़ाफ़िए की पहचान के लिए हमने उन्हें रँग दिया है. लाल रँग से नज़र आ रहा हिस्सा रदीफ़ है और रदीफ़ के पहले नीले रँग में रँगा हुआ हिस्सा क़ाफ़िया है.
___________________________
1.
देख तो दिल कि जाँ से उठता है
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है
बैठने कौन दे है फिर उसको
जो तिरे आस्ताँ से उठता है (आस्ताँ- चौखट)
यूँ उठे आह उस गली से हम
जैसे कोई जहाँ से उठता है
इश्क़ इक ‘मीर’ भारी पत्थर है
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है (ना-तवां: कमज़ोर)
~ मीर तक़ी मीर Urdu ke ustaad shayar
_________________
2.
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मगर लिखवाए कोई उसको ख़त तो हमसे लिखवाए
हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन (ख़ुल्द- जन्नत)
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
~ मिर्ज़ा ग़ालिब Urdu ke ustaad shayar
________________________
3.
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल (अहल-ए-महफ़िल: महफ़िल के लोग)
चराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ (बे-अदब: जिसके अन्दर तमीज़ न हो)
~ अल्लामा इक़बाल Urdu ke ustaad shayar
_________________________
4.
दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के (शब् ए ग़म- ग़म की रात)
वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं (मयकदा- शराब ख़ाना) (ख़ुम-ओ-साग़र: शराब का बड़ा प्याला)
तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन
देखे हैं हमने हौसले परवरदिगार के
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के
वाह्ह्हह्ह्ह्ह बहुत ख़ूब 🙏🌹💞😁