Umair Najmi ShayariUmair Najmi

1. Umair Najmi Shayari

बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं
लगेगा लगने लगा है, मगर लगेगा नहीं   Umair Najmi Shayari

नहीं लगेगा उसे देख कर, मगर ख़ुश है
मैं ख़ुश नहीं हूँ, मगर देख कर लगेगा नहीं !

हमारे दिल को अभी मुस्तक़िल पता न बना,
हमें पता है तेरा दिल इधर लगेगा नहीं

2.

सब इंतज़ार में थे कब कोई ज़बान खुले
फिर उसके होंठ खुले और सबके कान खुले

हमारी आँख में ख़द्दर के ख्व़ाब बिकते थे,
तुम आए और यहाँ बोसकी के थान खुले

ये कौन भूल गया उन लबों का ख़ाका यहाँ
ये कौन छोड़ गया गुड़ के मर्तबान खुले

3.

शब् बसर करनी है, महफ़ूज़ ठिकाना है कोई,
कोई जंगल है यहाँ पास में सहरा है कोई

वैसे सोचा था मुहब्बत नहीं करनी मैंने,
इसलिए की कि कभी पूछ ही लेता है कोई

दुःख मुझे इसका नहीं है कि दुःखी है वो शख़्स
दुःख तो ये है कि सबब मेरे इलावा है कोई

जानता हूँ कि तुझे साथ तो रखते हैं कई,
पूछना था कि तिरा ध्यान भी रखता है कोई

4.

बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे ग़ैर हो
देखा रुका झिझक के कहा “तुम उमैर हो?”

मिलते हैं मुश्किलों से यहाँ हम ख़याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालों की ख़ैर हो

कमरे में सिगरेटों का धुआँ और तेरी महक
जैसे शदीद धुँध में बाग़ों की सैर हो

हम मुतमईन बहुत हैं अगर ख़ुश नहीं भी हैं,
तुम ख़ुश हो क्या हुआ जो हमारे बग़ैर हो

पैरों में उसके सर को धरें इल्तिजा करें
इक इल्तिजा के जिसका कि सर हो न पैर हो

5.

झुक के चलता हूँ कि कद उसके बराबर न लगे
दूसरा ये कि उसे राह में ठोकर न लगे

ये तिरे साथ तअल्लुक़ का बड़ा फ़ायदा है
आदमी हो भी तो औक़ात से बाहर न लगे

मीम तारीख़ सा माहौल है दरकार मुझे
ऐसा माहौल जहां आँख लगे डर न लगे

माँओं ने चूमना होते हैं बुरीदा सर भी
उनसे कहना कोई ज़ख़्म जबीं पर न लगे

तुमने छोड़ा तो किसी और से टकराऊँगा मैं
कैसे मुमकिन है कि अंधे का कहीं सर न लगे Umair Najmi ki shayari

6.

बड़े तहम्मुल से रफ़्ता-रफ़्ता निकालना है
बचा है तुझमें जो मेरा हिस्सा निकालना है

ये रूह बरसों से दफ़्न है तुम मदद करोगे
बदन के मलबे से इसको ज़िन्दा निकालना है

नज़र में रखना कहीं कोई ग़म-शनास का हक़
मुझे सुख़न बेचना है ख़र्चा निकालना है

निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा
अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है

मैं एक किरदार से बड़ा तंग हूँ क़लमकार
मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है

 7۔

पहुँची है किस तरह मेरे लब तक नहीं पता
वो बात जिसका ख़ुद मुझे अब तक नहीं पता

एक दिन उदासियों की दवा ढूँढ लेंगे लोग
हम लोग होंगे या नहीं तब तक नहीं पता

मैं आज कामयाब हूँ ख़ुशबाश हूँ मगर
क्या फ़ायदा है यार उसे जब तक नहीं पता

8.

मेरा हाथ पकड़ ले पागल, जंगल है
जितना भी रौशन हो जंगल जंगल है

मैं हूँ तुम हो, बेलें पेड़ परिंदे हैं
कितने अरसे बाद मुकम्मल जंगल है

मुझमें कोई गोशा भी आबाद नहीं
जंगल है सरकार मुसलसल जंगल है

9.

तुमको वहशत तो सिखा दी गुज़ारे लायक़
और कोई हुक्म कोई काम हमारे लायक़

माज़रत मैं तो किसी और के मसरफ़ में हूँ
ढूँढ देता हूँ मगर कोई तुम्हारे लायक़

घोंसला छाँव, हरा रंग समर कुछ भी नहीं
देख मुझ जैसे शजर होते हैं आरे लायक़

मुझ निकम्मे को चुना उसने तरस खाके ‘उमैर’
देखते रह गए हसरत से बेचारे लायक़

~ उमैर नज्मी (Umair Najmi Shayari)
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