Subah Shayari Morning Shayari Good Morning Shayari

Subah Shayari

ज़िंदगी शम्अ की मानिंद जलाता हूँ ‘नदीम’
बुझ तो जाऊँगा मगर सुबह तो कर जाऊँगा

अहमद नदीम क़ासमी

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रात आ कर गुज़र भी जाती है
इक हमारी सहर नहीं होती

इब्न-ए-इंशा
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कोई पास आया सवेरे सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे सवेरे

सईद राही
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नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है
ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे

शकील बदायूनी

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कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई
शाम से सुब्ह हुई सुब्ह से फिर शाम हुई

शाद अज़ीमाबादी

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हम ऐसे अहल-ए-नज़र को सुबूत-ए-हक़ के लिए
अगर रसूल न होते तो सुब्ह काफ़ी थी

जोश मलीहाबादी

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नींद आती नहीं तो सुबह तलक
गर्द-ए-महताब का सफ़र देखो

नासिर काज़मी

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रोने वाले हुए चुप हिज्र की दुनिया बदली
शम्अ बे-नूर हुई सुब्ह का तारा निकला

फ़िराक़ गोरखपुरी

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सुब्ह होती है शाम होती है
उम्र यूँही तमाम होती है

मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम

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सुब्ह सवेरे रन पड़ना है और घमसान का रन
रातों रात चला जाए जिस को जाना है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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लाख आफ़्ताब पास से हो कर गुज़र गए
हम बैठे इंतिज़ार-ए-सहर देखते रहे
– जिगर मुरादाबादी

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शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं

वसीम बरेलवी

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ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है

अल्लामा इक़बाल

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तू नया है तो दिखा सुब्ह नई शाम नई
वर्ना इन आँखों ने देखे हैं नए साल कई

फ़ैज़ लुधियानवी

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जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी
जब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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लहजा कि जैसे सुब्ह की ख़ुश्बू अज़ान दे
जी चाहता है मैं तिरी आवाज़ चूम लूँ

बशीर बद्र

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दिल की बेताबी नहीं ठहरने देती है मुझे
दिन कहीं रात कहीं सुब्ह कहीं शाम कहीं

नज़ीर अकबराबादी

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मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा

अमीर क़ज़लबाश

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बुज़ुर्ग कहते थे इक वक़्त आएगा जिस दिन
जहाँ पे डूबेगा सूरज वहीं से निकलेगा

राहत इन्दौरी

Subah Shayari

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